Wednesday, September 26, 2018

Kamini (Prathamya Kavya Sadhana)- By Pukhraj Yadav "Pukkhu"

New HINDI POETRY E-BOOK BY PUKHRAJ YADAV "PUKKHU"


                                 

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Sunday, September 9, 2018

सबकुछ लिखा है...._By Poet Pukhraj Yadav"Pukkhu"

.        *🕴Reality in Bits....*

कुछ तो लिखना होगा,
       और कुछ तो लिखा होगा?
चाहे जितना मगर उसने,
       कुछ तो भाग दिया होगा?

यों सोचें की मंजिल को,
       राही तक रहगुजर दिया होगा?
कल्प दिया ज्यों कल्पकार को,
        कर्मा सा हस्त शिल्पकार को।
जों मेहनत दिया किसान को,
        आश दिया हरेक इन्शान को।
पेशा दिया पेशेवर को,
         हृदय दिया हृदय-वर को।
मोहन को मोह दिया,
         वैसे भाग में कुछ तो दिया होगा??

किस चीज से डर,
        कौन-सा यह है अपना घर..
सारे अतिथि ठहरे हैं पल भर,
        पूरा नाट्यमंच तो है नाश्वर...

मैं भी अभिनेता,
        और तू भी हैं अभिनेता..!
चल उठ मुस्कुरा,
        छोड़ चिंताएँ सारी की सारी,
बेफिक्र,रहना ही जिंदगी,
        बांकि पटकथा तो लिखा होगा..!!

कुछ नामूराद भी है,
        पल-पल में जो बैठे रोते है।
विडम्बनाओं की आँच पर,
        उचकते-उछलते फिरते है।
ज्यादा हुआ तो पीर,
         रेत के किले सा ढ़हते है।
जाने इनके रगों में क्या??
          पानी-पानी ही बहते हैं।

हो सकता है कि यों भी,
           लिखा होगा भाग में...।
लिख-लिखकर ही मिलेगा,
           तो भी ह्रास थोड़ी कुछ होगा??
जो है लिखा उस कलमकार ने,
           पुक्कू तेरे भाग में वही लिखा होगा!!!

       *©पुखराज यादव "पुक्खू"*
                   9977330179
          pukkhu007@gmail.com
                   Mahasamund

कुछ तो हूँ, ख्वाब.......By Poet Pukhraj Yadav "Pukkhu"

आज शहद हूँ,
      लबों से लगा ले मुझें।
क्या पता???
      कल ये स्वाद हो, ना हो।

बढ़ा रहा हूँ रोज,
       इतिहास की ओर कदम,
आज हूँ,तो हुँ,
       कल साथ हम हो, ना हो।

बदलते दौर से,
       इक ख़बर उड़ने लगी है,
पूराने हो गए तो,
       जाने,ये अहसास हों,ना हो।

मालूम है मुझे ये भी,
       गुप्त गुफाओं सा खो जाऊँगा!
क्या पता फिर कभी,
        ढूढ़नें का प्रयास हो,ना हो।

जितनी देर हूँ ठहरा,
       ताप ले मुझे जी भर कर,
हो सकता है कल,
       ये आकाश दीप हो, ना हो।

बड़े माशुमियत से बोली,
       जिन्दगी कानों को पास आकर,
मेरे आलिंद के स्पंदनों कहो,
       तुम मेरे साथ आज हो, ना हो।

यहीं पर सारे नर्क-स्वर्ग,
       जो बना सको मेरे आशिक तुम,
क्या पता कल ये राही,
       पुखराज, साथ हो ,ना हो.....।।

       *©पुखराज यादव "पुक्खू"*
                        महासमुन्द
                    9977330179

जी लेने दे.......

इक गज़ब की प्यास है,
          री जिंदगी थोड़ी पी लेने दें...
रूठ जइयों चाहे फिर,
          आज तो मजे से जी लेने देँ...।
लौटी फिर प्रभा आज,
          फिर मेरे ख्वाब सी लेने दे….।
गज़ब प्यास ही जीना,
           साथ तेरे मुझे जी लेने दे....!

Love you Jindagi...love u
              ©पुखराज यादव

आप किस पक्ष में है??

ना तुमसे वफा की उम्मीद है,
ना उनसे जो आज विपक्ष में है।
जानो तुम वादे है या सिर्फ वादें,
क्या जाने बाते किस पक्ष में है।

दलित शोषित, सवर्ण रोषित,
पेट्रोल भी जैसे कटाक्ष में है।
आम आदमी की तो छोड़ो जी,
कर्मचारी भी ठने विपक्ष में है।

और संविधान पुछता तिरंगे से..
काहे हो हल्ला हंगामा संसद में है।
विकास के नाम पर प्रचार क्यो?
आप भी, लगता दस जनपद में है।

कितने कौशल के भागी हुए,देखो?
बैठे सारे के सारे लगता गर्त में है।
हो सकता है कुछ अवसर वादी भी हो,
मगर रोजगार पूर्ण कितने शर्त में हैं।

सारे एक ही थाल के चट्टे-बट्टे,
आपके खादी में रंगरोंगन एक से है।
किसे कहे सच्चा उम्मीदवार है,
सभी के परछाईं दिखते अनेक से है।

ना तुमसे वफा की उम्मीद है,
ना उनसे जो आज विपक्ष में है।
जानो तुम वादे है या सिर्फ वादें,
क्या जाने बाते किस पक्ष में है।

         *पुक्खू यादव*
             महासमुन्द

What to do?.......by Poet Pukhraj

Hey...!!! Honey
You are dear of my life..
Fury,fury of mind site..
Say what I, say what I..
Think any think so...

That filling are so.. so high..
So what to do, what are no to do..!
Say any one ask me to do,do,
So what to do,what are not to do..

Feeling are orison,feelings are motion,
So im try, feel....this life..
Im well come to all tide..
Who got trvels so high... so high..
And just come right now,try to cross sea,
So what to do,what are not to do..

Orenate hey honey,
You and me with both are we..
Im try to won you & your heart..
Just im try just im try...
Say any one..
So what to do,what are not to do..

       *✍🏻Pukhraj Yadav "Pukkhu"*
                         Mahasamund

क्यों परिवर्तित है कूलिनी?

अब कूल तजकर क्यों जाती कूलिनी,
क्या तप का ताप क्षरण में है मालिनी।

या दोहन कर बैठा अति मनु अज्ञान,
क्यों रुष्ठ तीर से हो तज चली,शैवालिनी।

परिवर्तित है नियम तो,यंत्र भी बिफरे,
जैसे विपरित होकर गिरती है हालिनी।

स्वच्छ कौन? कौन यहां निर्मल है??
नहीं बनती अब ग्रहण करे जो नलिनी।

किसके भाग में है अमृत अंबु तनिक,
मानो हो चली है सुई- ढेर की फलिनी।

धूमिल लो फिर हूई प्रकृति और चित्त,
फिर कौन बनेगी मर्दानी सी कुंडलिनी।

संस्कार से सिंचित संसार करों सब,
पूर्ण जगत्  तुम्हारा संभालो हे! शालिनी।

अब कूल तजकर क्यों जाती कूलिनी,
क्या तप का ताप क्षरण में है मालिनी।

         *✍🏻पुखराज यादव "पुक्खू*
                     9977330179
                   Mahasamund

मै सन्नाटा हूं......by Poet Pukhraj

खामोश बैठा,
     मेरी ना दोस्ती कोलाहल और खलल से।
ना मतलब कोई,
     कल ना आज और न आने वाले कल से।

पर मानवों तुमसें,
    मै भी डर सा जाता हूँ,
मेरे आड़ में तुम क्या से क्या बन जाते हो?
कभी चोरी,डकैती,लूट पाट भी करते तुम।
और तुम अस्मत से भी, खेल जाते हो....
बदनाम मैं भी होता है, पर मै खामोश ही,
क्या कहूँ?? डर मुझको भी लगता क्योंकि,
         जनाब, मै सन्नाटा हूँ
          मै भी सन्नाटा हूं.…..!!!

    *✍🏻 पुखराज यादव "पुक्कू"*
               9977330179

वेदनाओं का छंद

किससे बयां करें,
        और कह भी दोगे तो क्या होगा?
थोड़ा भाव भरेगा,
        थोड़ा जख्म़ पर महरम मलेगा?
फिर थोड़ा वो भी,
        शब्दों में लपेट कर परोस देगा!!
हो सकता है तुम्हे,
        नायक सा खड़ा करे समाज पर,
या भून ही डालेगा,
       आलोचनाओं के दहकते आग पर।
इससे ज्यादा क्या होगा??
       ना भरेगा मन, ना पीर तनिक घटेगा।
क्यों बयां करू ये सोंच,
       कह भी दोगे तो क्या होगा???
       कह भी दोगे तो क्या होगा???

         *✍🏻पुखराजय यादव*
                 9977330179

साहित्य और विज्ञान के बीच की वार्तालाप

विज्ञान- *"कैसे हैं!!!*
साहित्य- *बस बढ़िया , और आप*
विज्ञान- *हम तो रोज नये-नये आयाम को छू रहे है!! आप अपनी सुनाओ??*
साहित्य- *बस ठीक कह लीजिए क्योंकि, मुझे शिखर देने वाले मेरे कल्पकार तो आजकल बीजी है। शायद जहां हूं वही पर ही स्थिर हूँ, अच्छा है आपको जो चाहते है उनमें लगन है...मेरे अालिंदी के स्पंदनों में अभी वो कमी है।*
______________________________________________
समाप्त् बांकि आप समझदार है आप मै क्या कहना चाह रहा हूँ....

                            आपका
                  "पुखराज यादव "पुक्कू"
                          महासमुन्द

बस नशा,नशा है!!!!

देख इशारे तेरे,लगता शरारतों के तुफां को उसने, तुझमें.....परोसा है।
आहिस्ते आँखों से ना परोस युँ मोहब्बत,मेरा दिल न संभलेगा भरोसा है।

खुल रही हो जैसे,किताब के पन्नो से गहरे सारे राज, पढ़ते-पढ़ते अब तो,
बढ़ रही है धड़कने वैसी,पीछे तेरे चलते-चलते,जैसे कोई नशा दर नशा है।

और झट्टककर गेशूंओं से बारिश के बूंदें ना बिखराया करों तुम जी..….....,
अाज़िम ही दिल मेरा बड़ा मचल-मचलकर कहता,यार आज तो जलसा है।

कवित्त पे गढ़ता चलूँ सूरत पर तेरी,छंद दो चार वार दूँ रंग  पर तेरी गोरी,
थोड़ी गज़ल- नज़्म्, लिख दूं तुम्हे खजुराहों-सा और गढ़ू  रूप-नक्शा है।

किस्तों में जैसे हो रहा सौन्दर्यदर्शन,बार-बार पीछे पड़ा मन का भौरा है।
देख लूँ, ऐ मल्लिका भर निगाहों में अब तो तुम्हे,दिलचस्प हर किस्सा है।

                            *"पुखराज यादव "पुक्कू"*
                                        महासमुन्द
                                   9977330179

सोचता हूँ कि नक्सली बन जाऊँ ....??? - by P.Raj


                 (लघुकथा)

घनघोर जंगल में नक्सलियों की बैठक चल रही थी,लगभग १२-१५नक्सली होंगे। मै भी एक कतार में बैठा था, सभी अपने-अपने एरिया के उगाही से प्राप्त फंड का ब्यौरा दे रहे थे।

- *"कामरेट! लाल सलाम!!!* (तेज आवाज में सरदार बोले)
मै सकपकाया हुआ खड़ा हूआ। और बोला
- *"लाल सलाम कामरेट! ऐ हफ्ता मं ज्यादा रिकवरी नइ होए हेl*

ते आवाज के साथ सरदार बोला-
- *"अर्ररररे... मोला कुछ पता नइ हे हमला तो चाहिए फंड चाहे कइसनो निकालो तभे तो लाल क्रांति आही।"*

मै बोल उठा-
*"-लाल क्रांति सरदार???"*

सरदार बोले-
*"हव, कामरेट लाल क्रांति!!! अभी तो बंदुक अऊ बांकि सबो जिनिस के व्यवस्था हमर शहरी कामरेट मन करत हे। आने वाले समय मं बड़े हमला करना हे।"*

तभी किसी ने अचानक ही एेके 47 सेवन से दनादन गोलियां बरसाना चालू कर दिया। लगा जैसे कुछ गोलियों के छर्रे मेरे चहरे पर पड़ रहे हो....।
लगातार गोलियों की तड़तड़ाहट और बारूदी शोरगुल के बीच एक आवाज सुनाई दी- *"अजी...उठीये ना कितना सोते रहोगे?? सुबह के सात बजने वाले है चलो उठो।"*

मै उठा फिर चेहरे पर हाथ रखते हुए दे की पानी के छीटे पड़े है। चुपचाप बेड से उठा और कहा अर्रे वो तो ख्वाब था। मैने आवाज देते हुए कहा- *"वेणू सुनती हो आज कमाल का सपना था जी।"*

*"-बस,बस रहने दो आप और आपके सपने, चलो पुक्कू जी दफ्तर नहीं जाना है क्या आपको??"*

*"-हां...हां... जाना है मैम जी, पर..."*

*"-कोई पर ..वर नही चलो जाओ नहाने चलो आप चुप चाप।"*

मै दफ्तर के लिए तैयार होने चला गया फिर अनायास ही मन में ख्याल आया कि कम पढ़े लिखे और नादान परिंदों को कुछ अवसरवादी गलत राह पर ढ़केल देते है। और दुर्भाग्य यह है कि नक्शलवाद जैसे राष्ट्रविरोधी संगठनों में आज भी बच्चों को भर्ती कराये जा रहे है। उन्हे तो पता तो पता भी नहीं क्रांति क्या है?? किससे लड़ना है?? क्यो लड़ना है?? क्यों हथियार उसने उठाया है?? नक्सल संगठनों में जुड़ने से पहले क्यों युवा ये नहीं सोचतो कि *क्यो नक्सली बनूँ??*

       ✍🏻 *पुखराज यादव "पुक्कू"
                    9977330179
                   महासमुंद (छ.ग.)

The Ferry-man.... By poet Pukhraj

See, again river in boom....
And Evening stay in slopes..

Gone mostly Imp of there side,
Why you late in coming,Ferry-man.

Whats say? Whats pain in here,
Feel like here helplessness..

Morning, Noon and evening cuts,
Empity some time stay of night.

Lets go ferry-man, there side...
This are time of climax..start.

Kiddie,Young and then older all i see,
And again recycle time all of part..

Lets go ferry-man,
           lets go divine parth,
Im Ask u, hey !!ferryman,
            You have to come
             You have to come...

       *✍🏻Pukh Raj Yadav"Pukku"*
                       9977330179
                      Mahasamund

हे!!!! मल्लाह.....

देख फिर नदी उफान पर है,
और खड़ी शाम ढ़लान पर है।

जाना भी उस पार जरूरी है,
मल्लाह तेरे आने मे क्यों देरी है।

कितनी वेदनाएं है क्या कहूँ??
लगता यहां कोई मजबूरी है।

पता कौन करे? राह जीवन के,
मल्लाह, तेरा आना जरूरी है।

सुबह,दोपहर और शाम हुई है।
रिक्त होने में रात की कुछ देरी है।

ले चल रे !! मल्लाह मुझे उस पार,
अंतिम फैसले की लगी बेरी है।

नादान,मौला फिर श्याना सब हुआ,
फिर से ये चक्र जीने की फेरी है।

ले चल मल्लाह मुझे उस पार तू,
तेरा आना, अब तो बहूत जरूरी है।

      *पुखराज यादव"पुक्कू"*
                 महासमुन्द

Just A Commen-man

Not love Silence am I,
But its Habit, think so...
Silience, Silence all...
So Relief its...

Who Fight?
Who onset?
Who have time?
In going depth of politics points,
Who care about it?
To go.. To go... To go
Table to table for Ask to help!!!!
Im commen-man,
Not special or specificated,

We have habit,
Gone in line to line..
Not in style & time!!!
For fight political-man.

Im fight for 2time food,
Im fight my poorness.
I have no more time for all,
Who care's it.
Whats going in future??

Im try to getting 2time food,
And no any think. & why?
Politicals flower growing in!!!!!!
Im just Commen people, Sir,
Im just commen people,Sir
Im not a fighter of social machanism...
Just commen-man...

      *🎤Pukh Raj Yadav "PUKKU"*
                        9977330179
                     MAHASAMUND

Create your life

What?? Written for you life,
Immerge in last won end....
Im like free Gull of oseon,
Plan im play to every wind.

If you wont rest and rest,
So sure fuzzy you get success,
Do to hard duty of bit life,
Very tuff in Earth getiing Relex.,

Onset to Onset, Done well 1st,
Espy one by one prossess,
Then, last have you get great,
That, called parson won success.

Furnish you ownself 1st,
Time gone to past and late,
Merle of merlin is your choice,
You create your lifes all fate..

       *✍🏻Pukh RaJ Yadav "pukku"*
                       Mahasamund

सिर्फ कोलाहल है...!!!!

मन है न तन मे है।
ना,गर्भ में है ना गगन में है।
कौन बांचे पीर पराई?
अंदर ही ..जैसे संघन में है।

और शहर का कब्जा,
गांव तक हो चला है।
नागरिकी भी तो सखी,
बड़ी गज़ब बला है।

यहां परोस परदेश कहां कम,
यहां नहीं होते नदियों में संगम।
रेत भी प्यासी बरसो से बैठी,
अपनत्व की बारिश होता कम।

बड़ा बनने या यार तना है,
लगता है मानो गुरूर घणा है।
शिष्टाचार विलुप्त होने को है,
फर्क पड़ा किसे, न लक्षणा है।

शोर बड़ा है मेरे आशिकी,
ना तू सुनता, ना मै सुनता...
मिलता ना कोई भला हल है।
महंगी शहरी माया और,और,
खाली यहां कोलाहल है...
सिर्फ यहां कोलाहल है......।

   *✍🏻पुक्कू यादव*
      Justonmood

क्यों बनी तू...पतुरिया_ by Poet Pukkhu

हाय ! किसने तुम्हारे मन को इतना मंदन किया।
किसने .. तुम्हारे विचारों को इतना क्षरण किया।

क्यों तोडी़ लोक लाज की सीमाएं री फगुनियाँ,
क्यों बन बैठी री .......ऐ! लता,तू......पतुरिया।

ईह कथा देख तुम्हारी व्यथा से भर जाता हूँ।
अति आँश्रु भरा हृदय में शोकजलधि पाता हूँ।

किसने... क्षरण किया मन की कोमलता को,
किसने... तर्पण किया मन की निर्मलता को।

क्या.. नैतिकता के पतन का कोई कारण था।
क्या सामाजिकता किया पतन को धारण था।

शिष्ट कहने वाले इन मानवों में से कौन पापी?
जिसने किया तुम्हारा मानसिक.. शोषण था।

क्या क्या रही होगी कथन कारण और क्षण,
क्यो बन गई जो, ऐ ! लता........तू पतुरिया।

कितनी रातें रोज-रोज....जला चुकि होगी तू।
कितना खूद में खूद...को मिटा चुकि होगी तू।

सोचता मन की क्या रही होंगी परिस्थितियाँ,
जो मोल मे क्रय-विक्रय की बनी स्थितियाँ युँ।

क्या समाज के ठेकेदारों सुध ना आया होगा?
जाने क्यों हुई युँ लता,यह प्रश्न न छाया होगा?

कुछ तो लोभ में,कुछ अपहरण से, डर....से,
कुछ बहला फुसलाकर,देह-व्यापार में आती।

क्या प्रहरियों के बीना मिलीभगत सब होगा?
क्या अपराध -संरक्षण भी पाप समान होगा?

कौन ये सब सोचे?? किसके पास है पहरियाँ।
क्यों बन बैठी री, ऐ ...! लता तू ......पतुरिया।

         *©पुखराज यादव "पुक्कू"*
                          महासमुन्द

जंग नहीं है हल....by Poet Pukkhu

इस पार भी हूँ,
      उस पार भी हूँ।
सरहद के दोनो,
      पार मै हीं,मैं हूँ।

जंग मैनें नहीं,
      न उसने शुरू की।
जंग पर जलता,
      अंगार भी मै हूँ...!

अपनी विड़म्बनाएं,
      किसे दिखाऊँ...???
किसे दुखित् हृदय,
       का राग सुनाऊँ???

राजनीति के तवे में,
          रोटी सिके जाते है।
इधर कभी तो उधर से,
         जंग-बीज भरे जाते हैं।

कभी सीजफायर,
         कभी शीतयुध्द।
बम-गोले दागो तुम,
        यह आदेश पाते है।

जंग नहीं हल कोई,
         फिर भी क्यों चंद लोग।
जंग-जंग की डफली,
         गालों-गाल बजाते.. है।

मैनें वचन दिया है,
       मातृ भू की रक्षा को।
मैनें वचन दिया है,
       सरहद की रक्षा को।
मैनें वचन दिया है,
       मेरे राष्ट के जन को।
मैनें वचन दिया है,
       कर्तव्य के प्रण को।
इसलिए आदेश सुन,
      कार्रवाई में लग जाता हूँ।
चाहें कोई हो उस पार,
       मै तो बस आर्डर बजाता हूँ।

जंग नहीं है कोई हल,
        जंग नहीं है कोई हल....
यह गीत नित-नित..,
        मन ही मन गुनगुनाता हूँ।

       *©पुखराज यादव "पुक्कू*
                      महासमुन्द

सफर है....

ये जिंदगी,
ये सफर...।
बहूत है...,
चलते रहिए।

कई मोड़,
कई छांव,
कई पड़ाव,
सफर है...।

कल नहीं,
आज यहीं..!
गूजरे फिर,
बीता,सफर है।

बहुँत है और,
चुनौतियाँ....!
कई लहर है,
जैसे मोतियाँ।

चल निकले,
उस पार को।
ठहरे क्यो??,
बेकार को...!

तारीख वही,
पहचान नया!
घर वहीं है,
मेेहमान नया!

और,और नहीं,
ढ़लती ये शाम।
क्षण चार बस,
दूजा कर काम।

क्या मिला,
ये फिक्र नहीं।
क्या छोड़ना,
ये सोच ज़रा।

जाना दूर है,
पल-दो-पल,
तेरा-मेरा..
यहां सफर है।

बस सफर है,
बस सफर है।।

*✍🏻पुक्खू यदू*
      महासमुन्द

कुत्ते की दूम......


                             (लघुकथा)

एक मित्र के पान-पैलेस के अंदर, बैठा हूआ था। सिगरेट की डीबिया लेकर मन में एक मोनालिसा का चित्र था उसे डिबिया के ऊपर उतारने का प्रयास कर रहा था तभी-

- " भाई-भाई कैसा है यार??"
- " भला चंगा हूँ!!"
- "रामू भाई, एक सिगरेट देना तो यार कश की तलब लगी है।"
(रामू ने उसे सिगरेट दिया)
- "क्या यार?? ये सिगरेट छोड़ क्यों नही देता??"
- " छोड़ देता लेकिन सामाजिक सेवक हूँ इसलिए नहीं छोड़ता।"
- "वाह रे बिगड़े नवाब..इसमें कौन सी समाज सेवा???"
- "देख ऐसा है, सिगरेट बनने से पहले, तम्बाकू चुनने वाले,फिर वनोपज मंडी फिर फैक्टरी तक जाती है। सोच कितने लोग इसके पीछे रोजगार से जूड़े है। अगर नहीं पीयुंगा तो उनका घर कैसे चलेगा मेरे यार!!!!" (और जोर से ठहाके की आवाज हुई)
- "गज़ब हो! कैसे गलत चीज को भी जस्टीफाई कर रहे हो वाह।।"

(मन में विचार आया- सही कहा है किसी ने कुत्ते का दूम कभी सीधा नहीं हो सकता।)
         ✍🏻 *पुखराज यादव "पुक्कू"*
                           महासमुन्द

नक्सली कौन???-by Poet Pukkhu

सोचों तो क्या इल्ज़ाम लगा जिनपे,
वो आपको पाक नजर क्या आते है।
जाने क्यों देशहित को पक्ष-विपक्ष,
और राजनीतिक मुद्दा ये बना जाते है।

लगी सारी मीडिया बटोरने सुर्खियाँ,
दल-दल में कैसे वे सेवक बट जाते है।
हाय ! दर्द में वो तड़प रहे होंगे यकिनन,
जो सपूत नक्सल से भीड़ वीरगति पाते है।

कैसा मंच सजा है लोकतंत्र का देखों,
अपराधी खुले खत धमकी के,दे जाते है।
और उससे ज्यादा चंद रोटी सेकू नेता,
इसमें भी तर्क-कुतर्क करते दिख जाते है।

शायद यही हाल है जो नक्सल-नक्सल,
अमरबेल से शनैः-शनैः वृक्ष को खातेे है।
अब तो छोड़ो अए नेताओं अपना हित,
देशहित, राजनीति से कही ऊपर आते हैं।

       *"पुखराज यादव "पुक्कू"*
                   महासमुन्द

आ बैल मुझे मार


             (लघुकथा)

यकिनन इस प्राणीजगत् में मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो कई बार आपने अदम्य शौर्य का परिचय देता है। जैसे चांद पर कदम रखना,जैसे आसमान पर पंख पसारना। लेकिन कई बार अपने ही करनी का हरजाना भरना पड़ता है। जैसे प्रकृति की चेतना करने के बजाय वही मनुष्य ज्वालामुखी के मुख पर खड़ा होकर पुछता है- *"बता तेरा नाम क्या है?* *जल्दी बोल क्या नाम है????*

✍🏻पुखराज यादव पुक्कू
           महासमुन्द

आप से ही कह रहा हूँ...by Pukkhu

कैसे-कैसे कवित्व के कवि कवित्री,
कंगुरिया को कैसे कदाचित करते कच।
कभी करो कवित्त काव्य को कृतामृत,
कच्चे-कच्चे विद्यार्थी हम भर दो ज्ञान रज।
        *पुखराज यादव*
              महासमुन्द

परिश्रम ही जीवन है....

मिला चाहे उटज ही क्यों न मुझे।
पर नुतन बेर क्रांति सी निकलेगी।
भ्रम भरो ना मन तुम ऐ...थपेड़ो,
श्रम पुष्प भी तृप्ति सी..खिलेगी।

कर्म ,कर पर है निर्भर नित-नित,
लक्ष्य साध,यहां भ्रांति कई मिलेगी।
अभी तनिक ना बैठूंगा,न विश्राम,
पहाड़ डगर पर कई क्लान्ति मिलेगी।

क्षण-क्षण का खेल क्षण पर भारी,
पूर्ति पूनः प्यारे यहां क्षति नहीं मिलेगी।
समर जैसे द्वार पर आन खड़ी जो,
फिर कोई घड़ी की न अवनति मिलेगी।

चाहे जो हो,पर पुखराज बनुंगा मैं,
पहान को पहचान कहां महंति मिलेगी।
भेद लक्ष्य रखना है नुतन शिखर तो,
विजय श्री के पूर्व कहां सुशांति मिलेगी।

पग पर पहान प्रहार के पीर बिनू,
हे ! प्रहर्ता,प्रादुर्भूत ख्याति नहीं मिलेगी।
चाहे अभिलाषा हो या ना हो तो भी,
बीन परिश्रम के जीवन गति नहीं मिलेगी।

मिला चाहे उटज ही क्यों न मुझे।
पर नुतन बेर क्रांति सी निकलेगी।
भ्रम भरो ना मन तुम ऐ...थपेड़ो,
श्रम पुष्प भी तृप्ति सी..खिलेगी।

  *पुखराज यादव पुक्कू*
            महासमुन्द
        9977330179
   pukkhu007@gmail.com

जाने क्या होगा???- by Pukkhu

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                             (लघुकथा)

सड़क के किनारे खड़ा था।लगभग शाम के यही कोई ५-६ के बीच का वक्त हो। गाड़ियों की आवाजाही और थोड़ा शहरी माहौल का मजे ले रहा था। रोड़ के उस पार अचानक मेरी नज़र झाड़ियों से लगे एक मेंज पर बैठे दो कपल्स पर पड़ी। वो एक-दुसरे में कुछ इस तरह से पास आ रहे थे कि उनके बाजुं में जो चाट-ठेले वाले भाई साहब को रास नहीं आ रहा था। बार-बार उनको करीब आता देख ठेले में रखे बर्तन से विरोधावाज प्रस्तुत कर रहे थे। सामने से पुलिस की पीसीआर वेन गुजर रही थी, वह रूकी। दो पुलिसकर्मी उतरे।

बुलंद आवाज में एक सिपाही बोला- "क्या हो रहा है यहां!!!!????"

लड़का- "सर कुछ नहीं हम तो ट्युशन स्टडी का, डिस्कशन कर रहे है।"

सिपाही- "हमें क्या चम्पू समझता है....!!!, क्या उमर है रे तेरी..!!!!"

दुसरा सिपाही- "ई छोरी कोण लारी सै तेरी, बहिन हे का??"

लड़का(डरते हुए)- "जी १७साल, और मेरी फ्रेंड है ये।"

सिपाही- "चलो भागों यहां से नहीं तो लगाऊंगा डंडा!!!"

दोनो (लड़का-लड़की) हड़बड़ी में स्कुटी से सरपट भागे।।

सिपाही आपस में बाते करते हूए--

-" देख रहे हो साहब जी...बचपनें में जवानी वाले खेल हो रहे है। भगवान जाने क्या होगा देश का???"

- "कुछ अपनी गलती है रामसिंग,कुछ पाश्चात्य प्रचार और कुछ नग्न नाचते विज्ञापनो का है सार"

       By-
     ✍🏻 पुखराज यादव "पुक्कू"
                    महासमुन्द
                9977330179