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(लघुकथा)
सड़क के किनारे खड़ा था।लगभग शाम के यही कोई ५-६ के बीच का वक्त हो। गाड़ियों की आवाजाही और थोड़ा शहरी माहौल का मजे ले रहा था। रोड़ के उस पार अचानक मेरी नज़र झाड़ियों से लगे एक मेंज पर बैठे दो कपल्स पर पड़ी। वो एक-दुसरे में कुछ इस तरह से पास आ रहे थे कि उनके बाजुं में जो चाट-ठेले वाले भाई साहब को रास नहीं आ रहा था। बार-बार उनको करीब आता देख ठेले में रखे बर्तन से विरोधावाज प्रस्तुत कर रहे थे। सामने से पुलिस की पीसीआर वेन गुजर रही थी, वह रूकी। दो पुलिसकर्मी उतरे।
बुलंद आवाज में एक सिपाही बोला- "क्या हो रहा है यहां!!!!????"
लड़का- "सर कुछ नहीं हम तो ट्युशन स्टडी का, डिस्कशन कर रहे है।"
सिपाही- "हमें क्या चम्पू समझता है....!!!, क्या उमर है रे तेरी..!!!!"
दुसरा सिपाही- "ई छोरी कोण लारी सै तेरी, बहिन हे का??"
लड़का(डरते हुए)- "जी १७साल, और मेरी फ्रेंड है ये।"
सिपाही- "चलो भागों यहां से नहीं तो लगाऊंगा डंडा!!!"
दोनो (लड़का-लड़की) हड़बड़ी में स्कुटी से सरपट भागे।।
सिपाही आपस में बाते करते हूए--
-" देख रहे हो साहब जी...बचपनें में जवानी वाले खेल हो रहे है। भगवान जाने क्या होगा देश का???"
- "कुछ अपनी गलती है रामसिंग,कुछ पाश्चात्य प्रचार और कुछ नग्न नाचते विज्ञापनो का है सार"
By-
✍🏻 पुखराज यादव "पुक्कू"
महासमुन्द
9977330179