मिला चाहे उटज ही क्यों न मुझे।
पर नुतन बेर क्रांति सी निकलेगी।
भ्रम भरो ना मन तुम ऐ...थपेड़ो,
श्रम पुष्प भी तृप्ति सी..खिलेगी।
कर्म ,कर पर है निर्भर नित-नित,
लक्ष्य साध,यहां भ्रांति कई मिलेगी।
अभी तनिक ना बैठूंगा,न विश्राम,
पहाड़ डगर पर कई क्लान्ति मिलेगी।
क्षण-क्षण का खेल क्षण पर भारी,
पूर्ति पूनः प्यारे यहां क्षति नहीं मिलेगी।
समर जैसे द्वार पर आन खड़ी जो,
फिर कोई घड़ी की न अवनति मिलेगी।
चाहे जो हो,पर पुखराज बनुंगा मैं,
पहान को पहचान कहां महंति मिलेगी।
भेद लक्ष्य रखना है नुतन शिखर तो,
विजय श्री के पूर्व कहां सुशांति मिलेगी।
पग पर पहान प्रहार के पीर बिनू,
हे ! प्रहर्ता,प्रादुर्भूत ख्याति नहीं मिलेगी।
चाहे अभिलाषा हो या ना हो तो भी,
बीन परिश्रम के जीवन गति नहीं मिलेगी।
मिला चाहे उटज ही क्यों न मुझे।
पर नुतन बेर क्रांति सी निकलेगी।
भ्रम भरो ना मन तुम ऐ...थपेड़ो,
श्रम पुष्प भी तृप्ति सी..खिलेगी।
*पुखराज यादव पुक्कू*
महासमुन्द
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pukkhu007@gmail.com