खामोश बैठा,
मेरी ना दोस्ती कोलाहल और खलल से।
ना मतलब कोई,
कल ना आज और न आने वाले कल से।
पर मानवों तुमसें,
मै भी डर सा जाता हूँ,
मेरे आड़ में तुम क्या से क्या बन जाते हो?
कभी चोरी,डकैती,लूट पाट भी करते तुम।
और तुम अस्मत से भी, खेल जाते हो....
बदनाम मैं भी होता है, पर मै खामोश ही,
क्या कहूँ?? डर मुझको भी लगता क्योंकि,
जनाब, मै सन्नाटा हूँ
मै भी सन्नाटा हूं.…..!!!
*✍🏻 पुखराज यादव "पुक्कू"*
9977330179