Sunday, September 9, 2018

जंग नहीं है हल....by Poet Pukkhu

इस पार भी हूँ,
      उस पार भी हूँ।
सरहद के दोनो,
      पार मै हीं,मैं हूँ।

जंग मैनें नहीं,
      न उसने शुरू की।
जंग पर जलता,
      अंगार भी मै हूँ...!

अपनी विड़म्बनाएं,
      किसे दिखाऊँ...???
किसे दुखित् हृदय,
       का राग सुनाऊँ???

राजनीति के तवे में,
          रोटी सिके जाते है।
इधर कभी तो उधर से,
         जंग-बीज भरे जाते हैं।

कभी सीजफायर,
         कभी शीतयुध्द।
बम-गोले दागो तुम,
        यह आदेश पाते है।

जंग नहीं हल कोई,
         फिर भी क्यों चंद लोग।
जंग-जंग की डफली,
         गालों-गाल बजाते.. है।

मैनें वचन दिया है,
       मातृ भू की रक्षा को।
मैनें वचन दिया है,
       सरहद की रक्षा को।
मैनें वचन दिया है,
       मेरे राष्ट के जन को।
मैनें वचन दिया है,
       कर्तव्य के प्रण को।
इसलिए आदेश सुन,
      कार्रवाई में लग जाता हूँ।
चाहें कोई हो उस पार,
       मै तो बस आर्डर बजाता हूँ।

जंग नहीं है कोई हल,
        जंग नहीं है कोई हल....
यह गीत नित-नित..,
        मन ही मन गुनगुनाता हूँ।

       *©पुखराज यादव "पुक्कू*
                      महासमुन्द