देख इशारे तेरे,लगता शरारतों के तुफां को उसने, तुझमें.....परोसा है।
आहिस्ते आँखों से ना परोस युँ मोहब्बत,मेरा दिल न संभलेगा भरोसा है।
खुल रही हो जैसे,किताब के पन्नो से गहरे सारे राज, पढ़ते-पढ़ते अब तो,
बढ़ रही है धड़कने वैसी,पीछे तेरे चलते-चलते,जैसे कोई नशा दर नशा है।
और झट्टककर गेशूंओं से बारिश के बूंदें ना बिखराया करों तुम जी..….....,
अाज़िम ही दिल मेरा बड़ा मचल-मचलकर कहता,यार आज तो जलसा है।
कवित्त पे गढ़ता चलूँ सूरत पर तेरी,छंद दो चार वार दूँ रंग पर तेरी गोरी,
थोड़ी गज़ल- नज़्म्, लिख दूं तुम्हे खजुराहों-सा और गढ़ू रूप-नक्शा है।
किस्तों में जैसे हो रहा सौन्दर्यदर्शन,बार-बार पीछे पड़ा मन का भौरा है।
देख लूँ, ऐ मल्लिका भर निगाहों में अब तो तुम्हे,दिलचस्प हर किस्सा है।
*"पुखराज यादव "पुक्कू"*
महासमुन्द
9977330179