आज शहद हूँ,
लबों से लगा ले मुझें।
क्या पता???
कल ये स्वाद हो, ना हो।
बढ़ा रहा हूँ रोज,
इतिहास की ओर कदम,
आज हूँ,तो हुँ,
कल साथ हम हो, ना हो।
बदलते दौर से,
इक ख़बर उड़ने लगी है,
पूराने हो गए तो,
जाने,ये अहसास हों,ना हो।
मालूम है मुझे ये भी,
गुप्त गुफाओं सा खो जाऊँगा!
क्या पता फिर कभी,
ढूढ़नें का प्रयास हो,ना हो।
जितनी देर हूँ ठहरा,
ताप ले मुझे जी भर कर,
हो सकता है कल,
ये आकाश दीप हो, ना हो।
बड़े माशुमियत से बोली,
जिन्दगी कानों को पास आकर,
मेरे आलिंद के स्पंदनों कहो,
तुम मेरे साथ आज हो, ना हो।
यहीं पर सारे नर्क-स्वर्ग,
जो बना सको मेरे आशिक तुम,
क्या पता कल ये राही,
पुखराज, साथ हो ,ना हो.....।।
*©पुखराज यादव "पुक्खू"*
महासमुन्द
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