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Wednesday, October 31, 2018

क्या मेरी परिभाषा नहीं?_____by Poet Pukhraj Yadav "Raj"

________///👣क्या मेरी परिभाषा नहीं?///__________

जाने किस वर्चस्व की......ठनी है।
जाने कौन सी बेमतलबी ध्वनि है।
                     क्यों हर बात पर मुझें.. टोकते हो?
                     मेरी राहों में पत्थर क्यों फेकते हो?
धर्म या समाज के नाम पर.....या
कभी रिश्तों के पहचान पर .....!
                     हर कहीं तुम रोकते,तोड़ते,मरोड़ते,
                     मेरी अस्तित्व पर छाप...छोड़ते हो।
क्या मेरी आजादी,आजादी नहीं?
क्या मेरी आबादी, आबादी नहीं?
                     क्यों पुरूष ही प्रहरी है समाज का?
                     क्या पाप है होना औरत-जात का?
कभी जेवर को कलेवर कहते हो?
तो भी मंशा वही... आधिपत्य की!
                      क्या मेरी कोई अभिलाषा नहीं...?
                      जो बोलो वो,बोलूँ,जो कहो वो,कहूँ?
जो पहना दो,पहनूँ?,जैसा कहो,करूँ?
क्या एक नारी की,कोई परिभाषा नही?
                      तुम ऐठ-ऐठकर भरलो चाहे आशमां,
                      मेरी चाहत की क्या कोई जमी नहीं?
और नसिहतें भी और दो चार धरलो,
थोड़ी मुट्ठी बाहर हूँ जमकर पकड़ लो।
                      क्या शर्म नहीं आती तनिक तुम्हे...!
                      मै ही हूँ,जो करती सृजनित तुम्हे....!
क्या मेरी कोई...परिभाषा नहीं..!
क्या मेरी कोई अभिलाषा नही..!
                        रचना-
         *©पुखराज यादव "राज"*
           pukkhu007@gmail.com

एक शेर अर्ज है...(भाग 04)

*बहर* - मदीद

(फाइलातुन फाइलुन >< 2)

मदीद
(2122, 212, 2122 ,212)

हाल क्या पूछे,अभी जानेंजाँ तुमसे मेरा।
लापता तो आज हमें, तूझमें हो जाने दें..।

*✍🏻पुखराज यादव "राज"*

एक शेर अर्ज है(भाग03)

*बहर* - मुत़कारिब

(चार फ़ऊलुन)

कभी प्यार में जान देने चले थे।
वही आज नादान हूए फिरते हैं।

*✍🏻पुखराज यादव "राज"*

एक शेर अर्ज है (भाग 02)

*बहर*- (22 22 22 22)

पागल दीवाना जाने क्या ना हूए।
एक तुझे अपना कर जाने... को।

   *✍🏻पुखराज यादव "राज"*

एक शेर.....अर्ज है....भाग-01

*बहर-* ख़फीफ़-
    (२१२२ २२१२ २१२२)

रूह मेरा मौजी बड़ा है यकीनन।
रोज आवारगी के लत में फिरता है।

*✍🏻पुखराज यादव"राज"*

कल कौन आएगा_____by Pukhraj Yadav "Raj"



        *(सायली विधा)*

निहाई...
टूटती चली...!
भुरकुस कौन उठाएगा?
किसे पुकारें..,
आओं....!

कौन??
नरकंत बनकर,
धरा धर लेगा,
जाने कौन??
आयेगा..!!

सबको,
घरउ-घरउ,
सोंच ने घेरा,
कौन भावी,
कहलाऐगा...!

कौन??
विदूर होगा??
कौन धरासुर होगा..
कौन बाट,
दिखायेगा??

डफली,
थाप छोड़,
भावी द्वार दस्तक,
देती सूनों,
प्राथम्य..!

कौन??
प्रहार इषु,
अभिमन्यु सा झेलकर,
ताव देता,
मुस्कुराएगा..!

और,
चाह हो,
भीनी भक्षण को,
 पुक्खू.. तुझे..!
सून...!!

छोड़,
सारे मेहर,
अपने दरमियां अब,
तब जाकर,
हसाएगा..!

तभी,
विजयश्री को,
पथ पर समिप,
खूद को,
पाएगा..!

भभ्भड़,
मांगती सारथी,
सोंच क्या तू?
नायक बन,
पाएगा..!

सालमञ्जिका,
बनना सरल,
और भुवा सा...
पर पराधिन,
ठहरे।

क्या,
विपरित धारा,
चीरते बढ़ पाएगा,
असलेउ है..
पथ..!

बोल,
अग्निपथ पर,
मुस्कुराते मुस्कुराते तू,
आहिस्ते अग्रसर,
जाएगा...!

©पुखराज यादव "राज"
 pukkhu007@gmail.com
        9977330179

क्या हुआ______by Pukhraj Yadav "Raj"

____//////____
      (सायली- विधा में)

अलहदा,
जो मिज़ाज,
ठहरी अपनी तो,
पहूचें तुम्हारे,
पास...!

मुस्कुराकर,
कह बैठी,
बीमारी लगी खाश,
डरकर बोले,
क्या...???

क्या???,
है इसका,
बताईए तो ईलाज,
दवा इश्क,
और....।

इश्क,
वबा है,
करवा ले जल्द,
ईलाज आप,
आज...।।

©पुखराज यादव

जीत लें क्षितिज____by Pukhraj Yadav "Raj"


           (हाईकू)
            5-7-5

जाने क्या कौन?
बात की राढ़ खड़ी,
अपने बीच.....।

तू खींचे होठ,
मै भी खीचूँ होठ,
क्या है रे खिंज।

प्रागल्भ्य भर,
और आत्मविश्वास..
फिर जो जीत..।

चौफेरी होना,
लिखा भाग उसने।
ढूंढना चीज.....।

द्वंद ना टीस,
भली प्यारे सूनले,
का है अज़िज...।

भीति तोड़ती,
मेहनत की छंद,
रखो ये सीख...।

रंग रंग की,
काहे टक्कर भाई,
न है तू धृष्णु....।

और ना है तू,
समाज रोधी कोई,
बिगड़ी चीज...।

मार सीकर,
मानवता प्रेम का,
जीतें क्षितिज...।

मार बेलक,
कुरूतियों पर चोट,
पुक्खू अज़िज..।

*©पुखराज यादव "राज"*
  pukkhu007@gmail.com
 9977330179

कभी भूलना नहीं____by Pukhraj Yadav "Raj"



      *(सायली विधा)*

ख़्वाब,
बनकर सही,
मगर बात तो,
होने लगी,
खुलकर।

हमने,
ना सोचा,
मिल जाएंगे युँ,
जैसे शरबत,
घुलकर।

और,
कई परवान,
चढ़ चलेंगे साथी,
प्राथम्य हो,
बढ़कर।

आशिक,
आवारा और,
जाने क्या-क्या?
नवाजे नाम,
तूलकर।

तेरे,
शहर में,
आया,मिल लें,
गिले-सिकवे,
भूलकर।

बड़े,
शब्दों से,
आसाँ होने लगा,
शाम सा,
ढ़लकर।

फिर,
याद तेरी,
कहने लगी आकर,
भूलना नहीं,
भूलकर।

©पुखराज यादव"राज"
pukkhu007@gmail.com

मजदूर की मजदूरी____by poet pukhraj Yadav "Raj"

_____/////_____

कितना मैनें पुल को पुल किया,
वो राही तुम क्या जानोंगे...!

मेरा ना तो नाम लिखेगा बिल्डर,
ना तुम देखकर भी, ना पहचानोंगे।

बस पहचान बन गई मेरी मजदूरी,
मेरे मेहनत को मोल से तोड़ोगे।

असल मेरी सिद्दत को ना जानोंगे।
फिर भी पर्दे पीछे मुस्कुराता रहूँगा।

मेरी यही दास्तां,इतनी ही आशमा,
मै कौन हूँ,भला तुम क्या जानोंगे।

      ©पुखराज यादव "राज"
        pukkhu007@gmail.com

और गैर हो गई___by Poet Pukhraj Yadav "Raj"

.    *🤨
आलिंदी.... के स्पंदनों से,
और थी या...और हो गई।
देखे जो गौर.. से तुम्हे तो,
जाने क्यों..जी गैर हो गई।

सलामती....की दुआएँ भी,
तुम्हारी लो..... खैर हो गई।
रह जाते चुप्पी दबाए...हम,
गलियों की तेरे शैर हो गई।

और जीद ही जीद थी तो,
होते,होते लो बैर... हो गई।
तेरे महल.. से छोटा दिखा,
मेरे घर..का खदर शायद..,
मेरी मुफलिसी भी दीवाने..
जाने...... कैसे शेर हो गई।

कभी पता थे आज लापता,
तेरे खतों से...मुंडेर हो गई।
हई गौर से देखने की खता,
और  होते होते गैर हो गई।

    ©पुखराज यादव "राज"
       pukkhu007@gmail.com

मेरी प्रेमिका______by Pukhraj Yadav "Raj"

_____________///❤///_____________

कुछ तो रहस्य है तुममें,
      कुछ तो हास्य है तुममें?
              खामोश रहती मगर हसी,
                     बहूत राज छूपें है तुममें।

कभी मुस्कुराती कभी लजाती,
         कभी शैतानियां,या नादानियाँ
                 लाजवाब बातों से भरी तुम ना,
                        कभी करती रहती तुम मनमानियाँ।

कभी हाथ पकड़ लिए चलती,
        कभी जला कर संग,दीये चलती।
                कभी रेत पर बनाती मरीचिका,
                        कभी बन जाती तुम मेरी प्रेमिका।

हर सफर पर साथ चलते,
       दोनों डगमगाते और संभलते
              बस प्यारी सी तुम ख्वाब़ हो?
                     तुम मेरी किताब हो,किताब हो!!

              *©पुखराज यादव "राज"*
               pukkhu007@gmail.com

मिथक_____by Poet Pukhraj Yadav "Raj"

_____//////______

इंतजार में,
क्या-क्या ना बना बैठे?
कभी बातों की बातें...
परोसते रहे खुद को तो,
कभी यादों से मुलाकातें।
कभी खूद को राही...
तुमको भुलभुलैयां जंगल..
तुममे कई बार खोते रहे..!
कई बार खूद को पाते रहै।
इंतजार में.........
कितनी बाते बनाते,
परोसते,बाटते,जाँचते रहे।
बस तेरे इँतजार में.....
    *©पुखराज यादव*

बेवजह.....by poet Pukhraj Yadav "Raj"

__________////_________

क्या? क्या? सोचें?
और कितना याद करें।
किसने कितना कहा?
किसकी कितनी बात करें।
यहां पता तो मेरा याद नहीं?
और कितनी बातें याद करें?
काहे कुछ का कुछ कहे?
क्या कहकर कहना काम आएगा?
या कहना केवल कथन कहलाएगा?
क्या क्या करे? क्या ना!!
कथन कर कमलों के कहां गए?
कितनी बातें भूलें? कितनी याद रखें!!
      *©🕴पुखराज यादव*

My-Insperation....by Poet Pukhraj Yadav "Raj"



आँखों में तेरी,तस्वीर मेरी,
और फिर जांच क्या कहूँ?
गर्म सांसे और आँहें तोरी,
और फिर आँच क्या कहूँ?
बहक उठते थिरकते ताल,
और फिर नांच क्या कहूँ?
मीठी सी शरारत बस कर,
और फिर बांच क्या कहूँ?
तूने प्रेम पढ़ा दिया सखी,
और फिर सांच क्या कहूँ?
चल चल पल दो पल री,
और फिर छांच क्या कहूँ?
तुम ही तो आईना मेरी हो,
और फिर काँच क्या कहूँ?
ये रिश्ता पुक्खूप्रेरणा ज्यों,
और फिर शेष.. क्या कहूँ?

   *©पुखराज यादव*
pukkhu007@gmail.com

ये तो वर्चस्व की लड़ाई है....by Poet Pukhraj Yadav Raj


यहां तो वर्चस्व की लड़ाई है
      सच तो मगर हां लम्बी चढ़ाई है।
किसके फुरसत तनिक भी,
      पढ़ाई से दुजी दुनियाँ की पढ़ाई है।
कौन बाटेगा जाने दु:ख भी,
      यहां मिठाई देख मूह ललचाई.. है।
गैर से लगते कभी कभी तुम,
      जो दर्पण पे अक्श नज़र को आई है।
किसे कहे कि कुछ तो शर्म कर,
       यहां तो मैनें भी ली वहीं,अंगड़ाई है।
पहले तो तुम ऐसे ना थे,जी..
       ये दो रंगों भरी किसकी परछाई...है।
जहां भी,जिधर भी,जैसे-वैसे,
        सारा खेत ही कैसे रंग डाला तुमने!
उलझनों भरी है मगर...
         आँखिर ये है, और वर्चस्व की लड़ाई है।
         वर्चस्व की लड़ाई है..,पुक्खू.............२
         वर्चस्व की लड़ाई है........................।

         *©🕴पुखराज यादव "पुक्खू"*
               Pukkhu007@gmail.com
                🏃‍♂Team-Justonmood

पतन की ओर.....by Poet Pukhraj Yadav "Raj"



क्या समझूँ??
        या ना समझूं??
दुनिया को??, पर..
        मै भी तो हिस्सा हुँ?
जो है गमित क्षण में,
        उसका थोड़ा किस्सा हूँ।
लाख सवाल खड़े,
        मानवता के प्रतिक पे?
या हो कर्तव्य के,
        मूल्यों के नजदिक पे?
हर मानव मानो भूला रे,
        नैतिक पथ का झूला रे..
पर किसे पड़ी है सबकी,
        सब अपने में,सब भूला रे।
ऐब की जैसे होड़ हो,
       तैयार सारे लेकर खटोला रे।
मैल ही मैल भरा मन,
       किसने कितनाअंदर टटोला रे।
और जनक है अपराधों के,
       मन में बैठा पहने भ्रमक चोला रे।
और पता नहीं तुम आओगे,
       मेरे विचारों सटीक भवर पर....
या हो जाओगे तटस्थ बन,
       उफनते देख तपित लहर पर....!
क्या समझू????
          या ना समझूँ???
दुनिया को??,पर
          मै भी तो हिस्सा हूँ.....!!!!
          मै भी तो हिस्सा हूँ.....!!!!

       ©पुखराज यादव "राज"
     pukkhu007@gmail.com

हाय री महंगाई.....by poet Pukhraj Yadav "Raj"

.           *🍁हाय...!!! री महंगाई*

एक ही तो रोटी बची थी,
          की छिनने तुम घर तक चले आए।
क्या कम था भाव तुम्हारा,
          जो नाक सिकोड़ते तंग गली में चले आए।

महंगी,महंगी सारे ख़्वाब है,
          और महंगाई में जीना पड़ता महंगा।
कुछ बचा रखे तो जेवर तो,
          बिकवाने को फिर से तुम चले आए।

कीमतों के जैसे दोहन पर हो,
          गरीबों के झोली में ख्वाहिश का तमाचा,
जैसे लगने लगा है,क्या कहू?
          लेकर नव अलंकरण महंगाई क्यों आए।

क्या पता किसकी नीति नियत,
           या पॉलिसी पर दोष मड़ने का वक्त नहीं।
दो रोटी,चार में बाटते बराबर पहले,
           अब एक भूख चखाना आखिर क्यों आए।

एक ही रोटी थी बची थोड़ी सी,
            उसे छिनने भी तुम दौड़े चले, घर आए।
महंगाई तू सजती जा रही री,
             मुझे जलाने,ये अलंकरण में क्यों आए??

             *©पुखराज यादव "पुक्कू"*
                       9977330179

Aaj Na Lokh paunga _ by Poet Pukhraj Yadav "Raj"

.      *🍁आज ना लिख पाऊंगा...*

शब्दों में लपेट मरहम,
        आज ना लगा पाऊंगा।
ना तो कोई लतिफें भी,
        यार...गढ़ ना पाऊंगा।
क्या कहे गम है कि,
         या गमों के सागर पे हम,
मुस्कान झूठी और ना,
         ना तारिफें झुठी जरा सी।
ना कोई  तिखी तकरार,
         ना नोक झोंक मीठी सी।
ना बर्फी,ना कोई असर्फी,
         ना कोई अहसांस दे पाऊंगा।
देखा है जबसे मैने,
         दर्द की झलक जब से।
बस बेबस सा बैठा मै,
         ऐ..प्रेरणा आज नींद है फिर,
और वेदनाए चरम पर,
         आज ना लिख पाऊंगा.....!!
         आज ना लिख पाऊँगा.....!!

  *🕴आपका- पुक्खू यादव*
             9977330179

किससे पूछे, किसने ऐसे बना दिया मुझें? (कहानी) by Pukhraj yadav "Raj"



मै एक चरवाहा हूँ, मुझे हमेशा ये बताया गया की हम फलां राज्य के है,और हम इस राष्ट्र के रहवासी है। मेरे पिता जी अक्सर कहते थे- "बेटे!!! अगर देश के लिए कुछ कर गुजरने का मौका मिले तो जरूर कदम बढ़ाना,इससे बड़ा सौभाग्य नहीं होता है।" मुझे भी मेरे नेशनल एंथम पर गर्व है और रहेगा। एक दिन चाय की टपरी पर बिल्लू काका जो हमारे गांव में थोडे पढ़े लिखे है, बतला रहे थे कि सेंट्रल गवर्मेंट कोई नई पॉलिसी लाने वाली है, जिससे हमारा गांव जो राष्ट्र के छोर पर है उसे पड़ोसी मुल्क को अधिग्रहण देने को राजी हो गई है।

मेरे तो पल्ले ही नहीं पड़ी वो बात,क्या है मै चरवाहा जो ठहरा। अब मुझसे पूछे कोई कि मेरी बकरियां एक दिन में कितना दूध देती है,कितना घास खाती है,तो मै फिर किसी पलटन के नवोधा जवान की तरह पटर-पटर सारे हिसाब लपेट दूँ। और वैसे भी गवर्मेंट के योजनाएं हम तक पहूचने तक बूढ़ी ताई की तरह हो जाती है, तो फिर ये नई कोई चीज पार्टिशन जाने कौन बला है जब आएगा तब देंखेंगे। मुझे तो सिर्फ बकरियों की देख-भाल और उनके पोषण की चिंता लगी रहती है। क्या करें हमने भी मैट्रिक में हैट्रिक लगाके जैसे तैसे पास कर ही ली। वैसे भी मास्टर जी बहुत अकडू टाईप के है एक दिन बोले बेटे २+२=४ होते है फिर दुसरे दिन बोले ३+१=४ फिर बोलते है ८÷२=४ हमारे तो गणित में डिब्बा गुल के जैसे आसार शुरू से थे। मास्टर जी पुछे बताओ २+२=?? मैने् जवाब दिया मास्टर जी ४ , फिर पूछे १+१=?? मैने कहां ३, फिर तो मास्टर जी जो भड़के हमपे लगा की जैसे महाभारत के कुरूक्षेत्र में कौरवों के सेनापति पितामह: भीष्म अर्जून पर बरस रहे हो। खैर हम तो कुछ दिनो के मेहमान है सोचकर सब झेल लिये, लेकिन क्या पता था कि ये कुछ-पल,कुछ पल को निकलनें में ३बरस लग जाएंगे। और फिर बापू ने हमारे रिपोर्ट के मद्देनज़र हमें पैत्रृक कौशल विकास के गूर सिखाते हूए हमें जरवाहे का पोस्ट दे दिया। इसमें भी फायदा है जितनी सर्विस बेहतर उतनी है पैसे ठनाठन गिरते है जेब में...! ऐसे ही दिन गुजरते रहे मेरे फिर.....एक दिन वो पल भी आया जब मेरा गाव दुसरे मुल्क की अधिग्रहित क्षेत्र घोषित हो गया।

                       *😕पार्टिशन के बाद*

मै रोज की तरह अपनी बकरियां चराने निकल पड़ा, वैसे आपको बता दूं अब हमारे गाव में दोनो तरफ पुलिस की चौकसी रहती है। कटिली तारों का पता नहीं क्यों कई जगहोे पर जाल बिछाया जा रहा है। खैर ये बात तो अच्छी है जिस गांव में चोरी की घटनाओं पर पुलिस जांच करने नहीं आती थी वहां अब पुलिसिया पहरा २४घंटे रहता है। तकरीबन दो बजे के आस पास मेरी बकरियों की झुण्ड मे-से दो बकरियां हमारे पुराने मुल्क की सीमा को पार कर गई...मै पीछे भागा....!!!एक तो पकड़ में आ गई लेकिन दूसरी तेज थी मै भी भागा एक खेत की मेंड़ पर फिसला तभी कुछ लोग दिखाई दिये। वो दौड़ते हुए आ रहे थे, ओह पुलिस के साहब लोगो थे। मैने सोचा कितने भले लोग है, मेरी मद्द को दौड़ पड़े है सभी...मै बोला- "अब तो पकड़ी जाएगी....री बकरी कितनी भाग सकती है। भाग"...

तभी एक पुलिस वाले साहब ने मुझ पर बंदुक तान दी और बोले- " अबे....हाथ ऊपर कर...हाथ ऊपर कर!!!"

मैं हाथ ऊपर किया...लगभग २५पुलिस वाले मुझे घेरे खड़े थे सभी के हाथों में बंदूक... इसी बीच इनके झूंड को चीरते हूए कोई और साहब मेरे सामने आए। मै समझ गया ये इन सब के बड़े साहब है।

-"कौन है तू???"(साहब बोले)

-"मै धनवा सिंग!!" (मै)

-"कहां रहता है??"

-"जी सामने वाले गांव में"

-"कब से तेरा बार्डर के इस पार से उस पार आना जाना होता है?"

-*जी साहब!! समझा नहीं!!"

-"अबे जो पूछ रहा हू साले वो सीधे-सीधे बोल!! नही तो ऐसी जगह लात मारूंगा... ना तो उठ पाएगा और ना बैठ। समझा"

-"साहब!!! मेरी बकरी चरते-चरते इस पार आ गई तो लेने आ गया।"

-"तेरे पास पासपोर्ट है??"

- "ये क्या होता है??"(मैने पूछा)

साहब अपने जवानों से बोले- " देख रहो हो...जवानो बार्डर पार वालों ने कैसे इसको ट्रेन्ड करके भेजा है!! साला बड़ा भोला बनता है, लगाओं हथकड़ी और ले चलों कैम्प के अंदर वहीं पूछताछ करेंगें!!!"

(दो जवानों ने जोर से लात मारा मैं जमीन पर गिर पड़ा,फिर पता नही उनको क्या लगा नही जानता लेकिन मेरे हाथ को पीछे ये लोहे की जंजीर से बाँधा और मारते हुए लिये जा रहे थे। समझ ही नहीं आ रहा था क्या करू और फिर डर के कारण कुछ बोल भी न सका। कैम्प के अंदर मुझे एक लोहे की राड़ में खड़ा करके बांध दिया गया और सब चले गए।)

तकरीबन दो घंटों बाद बड़े साहब फिर आए मै प्यास से तड़प रहा था, वो बोले-

- "कुछ खाएगा बे??"

-"साहब प्यास लगी है!!"

-"तू मेरा साला लगता है क्या बे!! जो तेरी खिदमत करता रहूँ, जो पूछ रहा हूँ साफ साफ बता दे!! तूझे गोस्त खिलाऊंगा और पानी भी पिलाऊंगा...!!!"

-"साहब मै कुछ नहीं जानता, मै तो चरवाहा हूँ साहब, पहले इसी मुल्क का रहवासी था!! मै...मुझे छोड़ दीजिए मां रहा देख रही होगी...बकरियों को घर ले जाना है।"

-" साला नौटंकी बाज!! बता तेरा बाप कौन है?? किसके लिए काम करता है?? हथियार सप्लाई करता है या ड्रग्स?? बोल बे!!!"

-"साहब मैं कुछ नही जानता!!!"

-"तेरी मां.......की"

-"साहब मां को गाली मत दो नही तो ठीक नहीं होगा???"

-"साला मुझको धमकी देता है!!रूक तू रूक सूवर कहीं की तू क्या तेरा बाप भी बोलेगा....अब!!!"

(साहब ने बेल्ट उतारी और अंधाधूंध पीटाई करते रहे मै चीखता रहा...पूरे बदन पर चोट के निशान जैसे डीजाईन किये हो लग रहे थे कानपट्टी और होटो से खून निकल रहा था, गाल बेल्ट की मार से फट पड़े, और शरीर के कपड़े मानो चिखड़ों में  बदल गए।)

-"साला कुछ बोलेगा की ....सूवर की खाल है तेरी बे।।"

-"साहब मै चरवहा.....हूं छोड़ दो साहब...."

जोर से आवाज लगाते हूए साहब ने कहा-

-" अर्रे...जवान सूनो!!!"
(कोई पोलिस वाला अंदर आया)

-"जी कमांडेंट"

- "जाओं मेस से एक पैकेट नमक लाना...."

(दौड़ता हुआ वो नमक लाने गया, और बिजली की तेजी से वापस आया)

साहब ने नमक का पैकेट खोला और मुझ पर छिड़कने लगा....मै चीख उठा ताजे जख्म पर नमक की जलन बहूत तेज हो रही थी.....मै चिल्लाने लगा...आहहहह......साहबबब...माफ कर दीजिए .....आहहहहहहह छोड़ दीजिए.....मै चरवाहा हूँ.....आपके पैर पड़ता हूँ......माफी दे दो साहब.....आअअअअआआ....

पर साहब के जुल्म कम ना हुए, सिपाही को बोले इसके हाथ खोल दो और उल्टा मोड़कर घूटने के बल बिठा दो। उस सिपाही ने वैसे ही किया, फिर साहब सिपाही से बोले -"तुम बाहर जाओं!!", वह निकल गया...मै लगातार चीखे जा रहा था,कि तभी उस साहब ने अपने पैंठ की जीप खोली और मेरे उपर मूत्र विसर्जित कर दिया...और बोले-

- "क्या रे क्या बोल रहा था तू, ठीक नहीं होगा...तेरी &%&%& का,तेरी जात का...$$$$$, तेरी...बह$$$ की....साला अतंकी कहीं का"

और पीटाई होते होते रात के लगभग ११बज गए, फिर साहब ने अपने सिपाही को आवाज दिया- "अर्रे.....गुलाब चंद कहां हैं अंदर आओ इस सुवर के पिल्ले के हाथ खोलो और बाहर ले आओ.....

वो सिपाही मुझे किसी किड़े मकौड़े की तरह खिचते हूए बाहर ले आया। उधर साहब बोल रहे थे -"आज जमकर फायरिंग प्रेक्टिस करने को मिलेगा जवानों सब अपनी अपनी राईफल तैयार कर लो...टार्गेट को मैं भगा रहा हूँ जिसकी गोली से ये मरेगा उसके नाम से आज जाम छलकेगा"

सारे जवान खुश नज़र आ रहे थे, तभी एक के चहरे पर मायुशी देखा???समझ तो मै भी नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा था सब!!!

फिर साहब मुझसे बोले- "अबे धनवा....यही नाम बताया है  ना रे तू....चल तुझे एक मौका देता हूँ....भाग जा....5मिनट का टाईम है तेरे पास जहां चाहे वहां भाग जा...जा तेरे गांव चले जा।।"

मै भी तो गांव और पड़ोस के गांवों के सारे रास्ते,गुप्त रास्तों से वाकिफ था। मेरे अंदर जैसे भाग जा सुनकर नई ऊर्जा दौड़ने लगी... फिर मै उठा हाथ तो पहले ही खुले थे , मैं दौड़ पड़ा जरा भी ना रुका....थोड़े दूर ही गया था की गोलियों की जैसे बारिस होने लगी...। मैं बचते बचाते एक पेड़ के पास गया फिर भागते हूँ कटिली तार के पास पहूचा मैनें कुछ नहीं देखा ना सोचा बस कूद गया...इधर मेरे गांव के रक्षासिपाही भी फायरिंग करने लगे...पता नहीं किस ओर की गोली अचानक पैर में आ लगी। और मै कटिली तार के किनारे पर गिरा...पर रूका नहीं....झटके देकर उठा कंधे का मांस छिल निकला...पर खुश था मै मेरे गांव के अंदर हूँ।.....

...                       *एक हफ्ते बाद*

पोलिस की सायरन बजाती हूई गाड़ी मेरे घर दाखिल हूई...। किसी सिपाही ने बताया की चलो तुम्हे थाना चलना है...सरहद पार से इंफार्मेंशन की तुम मॉल सप्लाई का काम करते हो... चलो...मुझे थाना लाया गया...फिर से वहीं सब कुछ हुआ वही सवालात-वही हाल और वहीं गाली गौच का महौल....एक महिने तक जेल के अंदर रहा.... समझ ना पाया गलती मेरी थी की बकरी की थी...घर लौटा तो पता चला बाबू जी जिल्लत झेल ना सके,मां और वो दोनों ने आत्मदाह कर लिया...! बकरियों का भी कोई पता नहीं चला....जेल में ही मेरी दोस्ती आगां रसुल से हुई...अब उसी के साथ बिजनेश संभालता हूँ.....बिना पासपोर्ट के लोगों को ट्रेवल्स कराता हूँ बार्डर के इस पार से उस पार....!!! पहले पता नहीं था हम जैसे को दोनो तरफ की सेना रेफ्युजी कहती है।....क्या करू अब मेरा सिर्फ एक ही धर्म है वो है "पैसा"। दोनो पार मेरी दोस्ती है और दोनो सरहद की सेना मुझे ढ़ूंढ़ती फिर रही है...बड़े-बड़े पोस्टर्स लग गए है। मुझे पहले-पहले लगा की मै अकेला हूँ लेकिन मुझसे तो कई रेफ्युजी इस सरहद ने बना दिये।।

-      _रचनाकार-
                 ©पुखराज यादव
            pukkhu007@gmail.com

ये है मोहब्बत.....by poet Pukhraj Yadav "राज"

.       *❤Thats called love*

क्या गज़ब पूछ बैठे वो,
इशारे ही इशारें में....!
सिर्फ लबों से उफ्फ निकली,
देख उनके नजारें में...!

कितनों-कितनों ने जाने??
क्या क्या लिखा है मोहब्बत को।
हमने तो कहाँ बस इतना...!
अक्षय धन है मेरे खजाने में......!

और जाने कैसे बयां करूँ?
क्या है इश्क की इबादत,मेरे दिल,
अजी मोहब्बत अधूरी हो सकती है,
लेकिन खत्म नहीं होती जमाने में।

       *पुखराज यादव "राज"*
             9977330179

❤ये लब कह बैठेंगे......_by Poet Pukhraj Yadav "Raj"

______///❤ये लब कह बैठेंगे///______

रोको ना आज,कुछ इस कदर,
तेरे सीने से लग जाएंगे।
की लबों से लब टकराए,
कुछ तेरे नशे में खो जाएंगे।
युँ..असर इँश्किया..
आज हो सकता है।
बस भी करो.....
लब ये कह बैठेंगे.......!

हो सकता है लहराकर,
टकराएंगी शरारतें तेरी...
मेरे दिल से हू-ब-हू जैसे लहर..
हो सकता है तेरी छूअन हो,
होटो के दरमियां थोड़ी ठहर-ठहर।
या हो सकता है...
लबों पर लब कुछ इस हाल में हों,
की लबों से पार बैरन हवा लैटे...
और आह की आवाज...
हलक पर चुप्पी दबाए बैठी मुस्कुराए...
हो सकता है...आप तो कभी हम...
इक दूजे को सताएंगे...
हो सकता है टकराकर...
दोनो के लब मुस्कुराएंगे।
हो सकता है....
इतना ना कर अए हसी,
ये लब कह बैठेंगे.....।

समंदर की लहरों सी,
या रेतिली पवन की चाल सी,
या फिर आकाशगंगा सी,
मिलन को करती पड़ताल सी,
इन लबों को पास आ जाने दे,
थोड़ी तड़पन है और इश्क की तपन में,
आज भागीरथ सा दोनो लबो के बीच,
सरसरी सी लहर फूट जाने दे।
हो सकता है...लाज पर्दों के बार निकल बैठेंगे,
आज सारी हद हम,तोड़ बैठेंगे।
इतना ना धड़क दिल कि...मै थराथरा उठूँ,
बहकू और लड़खड़ा उठूँ....
हो सकता है ये लब कह बैठेंगे।

और तू...चुम्बक मै अयस्क,
और आकर्षण प्रेम बन सज लेंगे।
इक मीठी चूभन,छूवन से दोनो में,
तन,मन में ज्वार सा भर देंगे।
करीब इतना बढ़ों की एक बंधन सा,
लब आपस में अद्वितीय गढ़ लेंगे।
फिर लब-लब में खोकर,
कुछ तो हलचल सा कर देंगें...
और बढ़े ये तेरा शुरूर-ए-तलब,
हो सकता है ये लब कह बैठेंगे।
हो सकता है ये लब कह बैठेंगे।

_*पुखराज यादव"पुक्खू"*
 Pukkhu007@gmail.com

आरंभ तो हो...._ by poet Pukhraj Yadav "Raj"

*____// आरंभ तो,हो//____*

पथ पर प्राथम्य भरदे,
स्वत: बिम्ब दिखेगा...!
मनोगत् जो साकार कर,
स्वप्न कलम खिलेगा...!

यों हृद्रुज सब में है।
शोक करेगा या निखरेगा।
और यमन हो मिथक,
फिर पवन चल निकलेगा।

सारगंध की अभिलाषा,
सारे रखते है प्यारे लेकिन,
विषधर विद्विष से कौन?
भला कौन पहले निपटेगा।

और उँजरिया की चाह हो,
तो पथिक और बढ़ेगा...!
ईसर वही समझता है प्यारे,
जो ठोकर पग-पग पर,
खाकर और अटल संभलेगा।

 *🤺पुखराज यादव"पुक्खू"*
              महासमुन्द
          9977330179

Think about it....._ by Poet Pukhraj Yadav "Raj"

.         *💃🏻Think About it....*

जाने अब की फिल्मों में,
           पहले सा मजा क्यों नहीं आता है।
पहले की फिल्मों से क्या??,
           डायरेक्टर कुछ भी न सीख पाता है।
पहले स्क्रीन प्ले को देखकर,
           पब्लिक चिल्लाती थी मार-मार-मार,
तब जाकर विलेन मारा जाता था।
           जाने क्यों फिल्मों में वो मजा न आता है।
अब तो फिल्में ही यार समझ,
           किस पब्लिक को बराबर ही नहीं आता है।
जाने अब की फिल्मों में सिर्फ,
           मसाला ही क्यों छौंक मार परोसा जाता है।
और अश्लिलता बेहया होकर,
            70mm के पर्दे पर नंगा नाच दिखाता है।
जाने अब की फिल्मों में यारों,
            पहले सा मजा बिलकुल भी नही आता है।
   
          *🕴कवि-पुखराज यादव"पुक्कू"*
                          9977330179

घोषविक्रय हुई मानवता_ by Poet Pukhraj yadav "Raj"

*घोषविक्रय हुई मानवता*

नैतिक मूल्यों का पतन बढ़ा है,
      अमानवीयता का चलन बढ़ा है।

रोज घटनाओं का अम्बार बने,
      लगता जैसे मानवता मंदन गढ़ा है।

किससे पूछे किसने रौंदा भाई,
     मद्द को कई हाथ उठते मगर क्या??
विडियो ग्राफी से फूरसत कहां,
     और लगता मद्द से ज्यादा प्रचार बड़ा है।

चींख-चींख कर दम तोड़ गई,
    कई बालाएं मुसिबत के दौर पर,
क्या फर्क पड़ा है जनाब मगर,
    बहरों का, ये संसार घना बड़ा है।

कितनी पतुरिया बना दी जाती,
    कितनी मासूम गुड्डियों को तोड़कर..
कितनी बहुएं जला दी जाती,
    दहेज,संतान और शंका के मोड़ पर।

और हो हल्ला है सामाजिक में,
    कहते फिरते तुम तो आशिकमिज़ाजी,
तुम्हारे से तो मेरा धर्म बड़ा है,
    व्यवहारिक पेंच यही पर फसा पड़ा है।

कहीं दगें,कही हिंसा,कही आतंक,
      रोज रंगते अख़बार के पन्ने इनसे तो,
क्या यह कह दूं तुम ही बताओ,
       कि मनुष्यता ह्रास के कगार पे खड़ा है।

जाने कितने ताले मन के खोलनें पड़े,
       जाने लोगों में कब अपनापन लौटे फिर,
चल फकिरे गाता चल तू, पुक्खू रे,
        घोष विक्रय होती मानवता और सखी,
        भीड़ बड़ा है....
                  भीड़ बड़ा है....
                            भीड़ बड़ा है....।
     *कवि- पुखराज यादव"पुक्खू"*
                9977330179
           Justonmood.com

नई दिशा _by Poet Pukhraj yadav "Raj"



इसने ना,उसने किया?
यार कितनी बहाने और।
तुमनें क्या किया कभी,
किया है क्या इस पे गौर।

तामझाम और अनैतिक,
सारी ख्वाहिशें हैं तेरी तो।
कभी अपने कर्तव्य पर,
कर्म का साधा कोई ठौर।

बेवजह ही जीयें जा रहे,
बस बहाने सीखलो प्यारे,
क्या मक्सद है नहीं कोई,
क्या नज़र ना आती भोर।

शनै:-शनै: दीवा ढ़लेगा,
चल लिख संदेश नव और।
नैतिकमूल्यों के चमक पे,
तू बनने को चल सिरमौर ।

  *पुखराज यादव "राज"*
      9977330179

पढ़कर देख कभी मुझे....by Poet Pukhraj yadav "Raj"

*🙂पढ़कर देख कभी... मुझे*

नज़र फेर,अगर बैठे तो क्या हुआ...!
यादें भूल,ठहर बैठे तो क्या हुआ...!
नहीं टूटते,आसमां से रिश्ते राही हमारी.!
पल भर ही,नज़र मिले तो क्या हुआ...!
पहले जरा,बेहद,फिर उम्दा,अब अमादा,
तूझ पर हूए,फिदा तो खता क्या हुआ...!
युँ तो पता है,दिल तुम्हें की जिक्र होगा...
वीरानों में ही,तेरा नाम लूं तो क्या हुआ?
यकिन है..!,यादें मेरी दलिलें देंगी तूझे,
माना फैसले में घड़ी फिसली तो क्या हुआ?
       _*पुखराज यादव "राज"*
       Pukkhu007@gmail.com

ऐ दिल सून....by Poet Pukhraj Yadav "Raj"

.        *❤अए दिल सून....*


तुझसे आशिकी तो नहीं,
    लेकिन आशिकी से कम भी नहीं।
मुझमें कहीं ना कहीं हो,
    ना कहना,मै लापता तो तुझमें नहीं।
कई ख़्वाब पिरोता हूँ,
    मगर होते यार पूरे कुछ भी नहीं।
माना,ये दौर शिकायतें,
   और हिदायतों की है चल निकली,
यत्न कर देखो दो-चार तो,
   चाहे पत्ता टूटे एक भी.... नहीं।
माना आशिकी तो नहीं,
   मगर मेरी जाँ,आशिकी से कम भी नहीं।
      *पुखराज यादव "राज"*
   pukkhu007@gmail.com

ख से ख़्याल तक- by Poet Pukhraj yadav "Raj"



.        *❤ख से ख़्याल तक*

चलो.. आज गुफ्तगू हो जाने दें ख्यालों में।
हो सकता है जवाब मिलने लगे सवालों में।

तेरे छत से मेरा आंगन माना नीचे है बड़ा,
फकिरी नहीं झलकती दीवा के ज्वालों में।

ठंड़ी रेत,गर्म मरूथल सब पे चला ठहरकर,
अनुभव किये,जीवन के भिन्न-भिन्न प्यालों में।

बीन तेल,सब्जी महकती है पकते-पकते,
हूनर चाहिए धूनकी लगाने का हर हालों में।

चलो आज गुफ्तगू हो जाने दें ख्यालों में।
हो सकता है जवाब मिलने लगे सवालों में।

         *©पुखराज यादव पुक्खू*
           pukkhu007@gmail.com

कौन सोचता है??_ by Pukhraj Yadav Raj

_____/// कौन सोचता है??///_____

दर्पण,मेरे मन से कहता हर क्षण..,
कहां.....चले सुजल्प बाणी वाले।
किसके ठेके पर है निर्भर जन लीला,
रोज जलती स्त्री चलती सुजड़ी तेज,
कहां गए सर्व सुरक्षा वादे वाले सारे।

किसने निकुञ्ज पर मरूथल परोसा,
किसने है दोला में शोक रख... झोला।
नारी को डरी-डरी.... और भयभंगूर,
परिध्वंश थल समझ किसने बोला।

किसके मन के लुआठा सुलगा.. पड़ा।
क्या सम्मान भरी नज़रें शुष्क बड़ी है।
क्या मन में शुचि प्रति प्रेम नहीं तनिक,
क्या पाप लिहित करना पाठ सही है।

अर्रे मोध,अर्रे पापी सुनो तुम,कर्ण खोल,
नारी का सम्मान करना ही सबसे बड़ा।
कु-सोंच की बुकचा जला दो तुम सारे,
देवी से ही भूत-वर्त-भावी जीवंत खड़ा।

   *©पुखराज यादव "पुक्खू"*
    pukkhu007@gmail.com
            9977330179

हे हरि.. by Poet Pukhraj yadav "Raj"

_______///🙏🏻हे..!!हरि///______

हे प्रभू..! परनौत पड़ूँ,परखारूँ पग तेरो।
हृ हर ह्रास,हानि हरते हो हरि हर क्षण मेरो।

मै मानस मात्र, पर प्राण पावन हो आप मेरो।
फिर काहे गावली करते चंद चंदन ओंगे,तेरो।

मेरी नियति नाहिं लिखै हो आप जटाना घेरो।
लूल हुई है बुद्धि कुछ की, जो आडम्बर पेरो।

अरूणशिखा ना काटू, ना बहाऊँ लहू तनिक,
होते हो,जो आप प्रशन्न तो प्राण हर लो मेरो।

यज्ञ को यियक्षु मै भी हूं,अश्वमेघ को,ना घेरो।
मेरे हरि सब देख रहे है....आडम्बर ना फेरो।

लूमविष-सा डंक ना समाज पर... उड़ेलो।
परञ्च औषध बनो तुम,आंदू पुरानी तोड़ो।

और अरस ना होने दो,... सुनो तो तुम भी,
आओं जगत् में हरि प्रेम घोले,उर हरि डेरो।

इषण है री पुक्खू सुनी लीजौ चल भजन ई,
राम,कृष्ण और जन-जन प्रभू है साक्ष्य मेरो।

      © पुखराज यादव "राज"


          pukkhu007@gmail.com

थोड़ी आशिकी- by Pukhraj Yadav "Raj"

______///थोड़ी आशिकी///______

संभलकर ही तुम रखना कदम जानेंजाँ,
ये पत्थर है तेरा पागल फिसल जाएगा।

मुस्कुराहटें इतनी ना गुलजार कर और,
दीवाना दिल फिर कहां संभल पायेगा।

शरारतों की जैसे झड़ी,लगी रहती तेरी,
क्या पता फिर वक्त कब निकल जायेगा।

थोड़ी मेरी सुनों-थोड़ी अपनी कहों तो,
फिर ये दिन दो-चार युँ ही निकल जायेगा।

आ रही है हवा इश्क के नाम की बड़ी,
भरलों सासें फिर मौसम बदल जायोगा।

गर्म आहों में भी,पता तो है मेरे नाम की,
यों ना हो कहीं लबों से नाम उछल जायेगा।

पत्थरों से ना दिल लगाना प्रिये तुम कभी,
इक ना इक दिन पुखराज तो मिल जायेगा।

      ©पुखराज यादव "राज"
             9977330179