Pages - Menu

Wednesday, October 31, 2018

और गैर हो गई___by Poet Pukhraj Yadav "Raj"

.    *🤨
आलिंदी.... के स्पंदनों से,
और थी या...और हो गई।
देखे जो गौर.. से तुम्हे तो,
जाने क्यों..जी गैर हो गई।

सलामती....की दुआएँ भी,
तुम्हारी लो..... खैर हो गई।
रह जाते चुप्पी दबाए...हम,
गलियों की तेरे शैर हो गई।

और जीद ही जीद थी तो,
होते,होते लो बैर... हो गई।
तेरे महल.. से छोटा दिखा,
मेरे घर..का खदर शायद..,
मेरी मुफलिसी भी दीवाने..
जाने...... कैसे शेर हो गई।

कभी पता थे आज लापता,
तेरे खतों से...मुंडेर हो गई।
हई गौर से देखने की खता,
और  होते होते गैर हो गई।

    ©पुखराज यादव "राज"
       pukkhu007@gmail.com