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कितना मैनें पुल को पुल किया,
वो राही तुम क्या जानोंगे...!
मेरा ना तो नाम लिखेगा बिल्डर,
ना तुम देखकर भी, ना पहचानोंगे।
बस पहचान बन गई मेरी मजदूरी,
मेरे मेहनत को मोल से तोड़ोगे।
असल मेरी सिद्दत को ना जानोंगे।
फिर भी पर्दे पीछे मुस्कुराता रहूँगा।
मेरी यही दास्तां,इतनी ही आशमा,
मै कौन हूँ,भला तुम क्या जानोंगे।
©पुखराज यादव "राज"
pukkhu007@gmail.com
कितना मैनें पुल को पुल किया,
वो राही तुम क्या जानोंगे...!
मेरा ना तो नाम लिखेगा बिल्डर,
ना तुम देखकर भी, ना पहचानोंगे।
बस पहचान बन गई मेरी मजदूरी,
मेरे मेहनत को मोल से तोड़ोगे।
असल मेरी सिद्दत को ना जानोंगे।
फिर भी पर्दे पीछे मुस्कुराता रहूँगा।
मेरी यही दास्तां,इतनी ही आशमा,
मै कौन हूँ,भला तुम क्या जानोंगे।
©पुखराज यादव "राज"
pukkhu007@gmail.com