*____// आरंभ तो,हो//____*
पथ पर प्राथम्य भरदे,
स्वत: बिम्ब दिखेगा...!
मनोगत् जो साकार कर,
स्वप्न कलम खिलेगा...!
यों हृद्रुज सब में है।
शोक करेगा या निखरेगा।
और यमन हो मिथक,
फिर पवन चल निकलेगा।
सारगंध की अभिलाषा,
सारे रखते है प्यारे लेकिन,
विषधर विद्विष से कौन?
भला कौन पहले निपटेगा।
और उँजरिया की चाह हो,
तो पथिक और बढ़ेगा...!
ईसर वही समझता है प्यारे,
जो ठोकर पग-पग पर,
खाकर और अटल संभलेगा।
*🤺पुखराज यादव"पुक्खू"*
महासमुन्द
9977330179
पथ पर प्राथम्य भरदे,
स्वत: बिम्ब दिखेगा...!
मनोगत् जो साकार कर,
स्वप्न कलम खिलेगा...!
यों हृद्रुज सब में है।
शोक करेगा या निखरेगा।
और यमन हो मिथक,
फिर पवन चल निकलेगा।
सारगंध की अभिलाषा,
सारे रखते है प्यारे लेकिन,
विषधर विद्विष से कौन?
भला कौन पहले निपटेगा।
और उँजरिया की चाह हो,
तो पथिक और बढ़ेगा...!
ईसर वही समझता है प्यारे,
जो ठोकर पग-पग पर,
खाकर और अटल संभलेगा।
*🤺पुखराज यादव"पुक्खू"*
महासमुन्द
9977330179