(अभिव्यक्ति)
शिक्षा, विद्यार्थी और शिक्षक के संदर्भ में पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. अब्दुल कलाम के अनुसार कि, शिक्षा ज्ञान और ज्ञान के माध्यम से अंतहीन यात्रा है। वह लिखते हैं कि शिक्षा प्रणाली को हमारे बच्चों के चेहरों पर मुस्कान बरकरार रखनी चाहिए। वह यह भी लिखते हैं कि शिक्षा को चरित्र का निर्माण करना चाहिए और छात्रों में मानवीय मूल्यों को विकसित करना चाहिए। यानी शिक्षा के प्रति शिक्षक और विद्यार्थी दोनो के दायित्वों और भुमिका में निष्ठा आवश्यक अवयव है। वर्तमान परिदृश्य में शिक्षा जीवन की सभ्यता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक हम कभी भी सीखते हैं, कहने का तात्पर्य है शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है। शिक्षा हमें यथोचित दुनिया को बहुत व्यापक रूप से जानने में मदद करती है। औपचारिक शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण प्रकार की शिक्षा प्रक्रिया में से एक है। कुछ संगठन हैं जो स्कूली शिक्षा प्रदान करने के लिए जिम्मेदार हैं। सरकार और निजी क्षेत्र दोनों शिक्षा की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। भारत सरकार शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाती है। विभिन्न संसाधन सामग्री, मध्याह्न भोजन, मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, यूनिफॉर्म आदि प्रदान करना। शिक्षा बदलते समाज का वाहक है। "स्कूल एक लघु समाज के रूप में कार्य करता है"। पर्यावरण और दर्शन का बहुत प्रभाव छात्रों की पढ़ाई पर पड़ता है। सभी विद्यालयों की विद्यालय संचालन की अपनी अनूठी शैली होती है।
बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना हर माता-पिता का सपना होता है। माता-पिता निजी और सरकारी स्कूलों के बीच सबसे बड़ा अंतर सीखने के माध्यम का पाते हैं। कई निजी स्कूलों के संचार का माध्यम अंग्रेजी है। निजी स्कूल छात्रों के दैनिक जीवन में अंग्रेजी को शामिल करने की कोशिश करते हैं। वास्तव में, अब अधिकांश निजी संस्थान अंग्रेजी के अलावा अन्य विदेशी भाषाएं भी पढ़ाते हैं। यह माता-पिता को आकर्षित करता है जबकि सरकारी संस्थानों में बच्चों को क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जाता है।
निजी स्कूल छात्रों को आकर्षित करने के लिए पाठ्येतर और सामाजिक गतिविधियों या इंटर-स्कूल प्रतियोगिताओं से संबंधित अधिक विचार लाते हैं। इन गतिविधियों के माध्यम से वे बच्चों को भविष्य में चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करते हैं। वे आत्मविश्वास बढ़ाने और प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व में सुधार करने का प्रयास करते हैं। कुछ अच्छे सरकारी स्कूलों के अलावा, ये गतिविधियाँ कम या अनुपस्थित हैं।
निजी और सरकारी दोनों स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा अलग-अलग मानकों पर आधारित है। अधिकांश निजी स्कूल सीबीएसई बोर्ड से संबद्ध हैं, सरकारी स्कूल राज्य बोर्ड से संबद्ध हैं। इन दो अलग-अलग बोर्डों द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम में बहुत अंतर नहीं है। फिर भी, अधिकांश माता-पिता मानते हैं कि निजी स्कूल प्रवेश परीक्षा के स्तर के लिए जो आवश्यक है, उससे आगे जाकर पढ़ाने की कोशिश करते हैं।
कुछ अच्छे और नामी सरकारी स्कूलों को छोड़ दें तो अधिकांश सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता है। इसके कारण निम्न आय वर्ग के परिवार भी बेहतर भविष्य के लिए अपने बच्चों को निजी संस्थान में भेजने की कोशिश कर रहे हैं। यदि सरकार अच्छे औसत और स्कूलों की निगरानी के लिए फंडिंग शुरू करे तो सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार किया जा सकता है। शिक्षकों को भी अपने काम के प्रति समर्पित होना चाहिए। उन्हें अपना काम ईमानदारी से पूरा करना चाहिए। सरकार और शिक्षक दोनों का सहयोग ही सरकारी स्कूलों की मौजूदा छवि को बदल सकता है।
उपरोक्त सारे आकलनों में आप गौर करें तो आपको लगेगा की मैं निजी स्कूलों की फाइव-स्टार वाली चकाचौंध में धरातलीय बात से मुह मोड़ लिया हूँ। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं वास्तव में शासकीय स्कूल में अध्यापनरत् शिक्षकों के परिदृश्य में शासनात्मक तंत्र के ब्यूरोक्रेट्स शिक्षक को सिर्फ शिक्षक नहीं मानते है। प्रत्येक गांव में एक स्कूल और वहां कम से कम एक शिक्षा यानी बैठे बिठाए एक बड़ा नेटवर्क की तरह उपयोग करते हैं। जिनसे विभिन्न गैर-शैक्षणिक गतिविधियों में जबरन घसिटा जाता है। वहीं दूसरी ओर शासकीय स्कूलों में एक शिक्षक की नियुक्ति मात्र से शिक्षा व्यवस्था पर सुधार की कल्पना आकाशीय पुष्प खिलाने जितना कार्य है। वहीं बार-बार बदलते पैटर्न योजनाओं के कागजी कार्रवाई में शिक्षक उलझकर रह जाता है। बहरहाल, ऐसा भी नहीं है पूरा सिस्टम खराब है लेकिन शिक्षा की व्यवस्था के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण संसाधनों के दरकार में सरकारी स्कूल आज भी तीव्र इच्छाशक्ति और मैकेनिज़्म की राह देख रहे हैं।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़