Tuesday, January 31, 2023

फूहड़ फैशन के ठूंठ में नग्नता ओढ़ती युवा पीढ़ी : प्राज






                (अभिव्यक्ति) 

वर्तमान परिदृश्य में परिधान और परिधान के चयन का अघोषित युद्ध छिड़ा हुआ है। खासकर चलचित्र या सिनेमा उद्योग में उपयोग की जाने वाली वेशभूषा के लिए बहस कोई नई नही है।अपितु कभी रंगों के ताने बाने में नग्नता ओढ़ती लिबास के बीच सेक्सियत कुछ इस कदर परोसा जा रहा है कि हाल के दिनों में बनने वाली फिल्मों का अवलोकन  परिवार के साथ तो देखना दूर, एक दंपति देखने से परहेज करते हैं। वैसे बहस सिर्फ इतना नहीं है की कपड़े छोटे या नग्नताग्राही है। बहस वास्तव में पाश्चात्य वेशभूषा का भारतीय संस्कृति के परिधानों पर होने वाले अतिक्रमण के कारण है। लेकिन बड़ी बात यह है कि कोई यदि इन वेशभूषाओं का विरोध करते हैं तो उसे पुरुषप्रधान  वादी मानसिकता का ग्राही बनाकर लोक कटघरें में खड़ा कर तानों के कोड़े अवश्य मारे जायेंगे। चिंतन का विषय इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि फिल्में वर्तमान का आईना होते है। लोग जो चलचित्र में देखते हैं ठीक उसकी हुबहु नकल करने पर आतुर हो जाते हैं। युवा पीढ़ी इन फिल्मों में काम करने वाले चंद रूपयों के लिए  जिस्म की नुमाइश करने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियों के वेशभूषा और अतरंगी वाक् पट्टूता की कॉपी पेस्ट करने में देरी कहाँ करते हैं। इस स्थिति को लगभग मनुष्य के मृत मस्तिष्क के समरूप देखा जा सकता है। 
           जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है वैसे-वैसे हमारी परंपराएं और संस्कार भी बहुत तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं। आधुनिक फैशन के इस दौर में पारंपरिक भारतीय पहनावे और पश्चिमी पहनावे के बीच की लड़ाई साफ देखी जा सकती है। यह ज्यादातर देश में आज के लोगों द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों के कारण है। पिछले कुछ दशकों में, लोग अपने कपड़ों की शैली को अपनाकर पश्चिमी संस्कृति की ओर अधिक आकर्षित होते देखे गए हैं। पश्चिमी संस्कृति ने ज्यादातर फैशन उद्योग को प्रभावित किया है। आजकल लोग अपनी पारंपरिक संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को पीछे छोड़कर दूसरे देशों की मनोरम प्रवृत्तियों और संस्कृतियों के अनुकूल होने के लिए उत्सुक दिखते हैं। लोग, मुख्यत: युवा, कपड़ों के पश्चिमी रूप की ओर आकर्षित होते हैं। दूसरी ओर, जहां बाजार में भारतीय कपड़ों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है, वहीं पश्चिमी परिधान भी विभिन्न सम्मोहक डिजाइनों और शैलियों में अपनी उपलब्धता के साथ फैशन बाजारों को आकर्षित कर रहे हैं। इसने दोनों फैशन उद्योगों के लिए दूसरे पर काबू पाने और अपनी किस्मों के साथ बाजार में अपनी जगह बनाने के लिए एक स्पष्ट प्रतिस्पर्धा आधारित स्थिति बनाई है।
              भारतीय परिधानों की भव्यता अतुलनीय है! विभिन्न प्रकार के डिज़ाइन, पैटर्न, रंग और शैलियों में भारतीय पोशाक की उपलब्धता उन्हें दुनिया भर में सबसे अधिक मांग वाले परिधानों में से एक बनाती है। भारतीय परिधान न केवल आपको पारंपरिक और जातीय बनाता है बल्कि पहनने वाले के फैशनिस्टता को भी बढ़ाता है। जो प्राकृतिक सुंदरता को आकर्षण और अनुग्रह के साथ प्रदर्शित करता है। इसी वजह से दुनिया भर के लोग भारतीय परिधानों की ओर आकर्षित होते हैं। आजकल, शर्ट, टी-शर्ट, जींस, स्कर्ट, गाउन आदि जैसे पश्चिमी पोशाक दुनिया भर में चलन में हैं, लेकिन पारंपरिक भारतीय कपड़े जैसे साड़ी, सलवार सूट और लहंगा चोली आदि की समृद्धि और आकर्षण को अछूता नहीं छोड़ा जा सकता है। चूंकि फैशन दिन-ब-दिन बदलता रहता है, इसलिए फैशन विशेषज्ञ बाजार में अप टू डेट रहने के लिए भारतीय कपड़ों में अद्वितीय नए डिजाइन और स्टाइल लाकर अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं। चाहे आप अनारकली ड्रेस की तलाश में हों या फैंसी डिजाइनर साड़ी की, आपको हमेशा कुछ नया और अलग मिलेगा।
            पारंपरिक भारतीय परिधानों में लिपटकर अपनी आकर्षक सुंदरता और व्यक्तित्व का प्रदर्शन किया है । इससे भारतीय वस्त्र उद्योग को वैश्विक बाजार तक पहुंचने में मदद मिली है। हालांकि पश्चिमी पोशाक कई तरह के अनूठे डिजाइन और पैटर्न के साथ आते हैं। जो निश्चित रूप से इसे पहनने वाले को आकर्षक रूप देते हैं। पारंपरिक भारतीय कपड़े अभी भी हैं और शायद शादी, मेहंदी समारोह, पवित्र अनुष्ठानों जैसे सभी विशेष और महत्वपूर्ण त्योहार के अवसरों के लिए पहली पसंद हैं।
          लेकिन युवा पीढ़ी जो सभ्यता से पुनः पाश्चात्य की फुहड़ता ओढ़कर पुरापाषाणकाल  के आदिमानवों की भांति वेशभूषा  की ओर अग्रसर है। ऐसा नहीं है की भारतीय परिधान की धमक मार्केट में कम है।बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय परिधानों की मांग में काफी उछाल आया है। विदेशी धरती पर भारतीय परिधानों के प्रति पाश्चात्य के लोगों का रूझान देखकर हृदय आनंदित होता है।वही दूसरी ओर अपने ही स्वदेशी भूमि पर लोगों की उपेक्षा का शिकार होते परिधानों को देखकर आश्चर्य अवश्य होता है। वहीं कुछ ऐसे संकरित या हाईब्रिड मानसिकता  के लोग भी है जो खासकर स्त्रीलिंग परिधानों में छोटे-छोटे डोपिंग करके शरीर को दार्शनिक स्थल बनाने की ओर आमादा है। वास्तव में युवा पीढ़ी को यह भी सलीका सिखना आवश्यक  है कि जो परिधान पारम्परिक है उन्हें उतने ही अपनत्व की भावना से पहनना अवश्य है जितने में शारिरीक भौतिकी का ढ़कना संभव हो जाये। अपितु अंग-प्रदर्शन के मनलुभावन प्रायोगिक प्रयास से नग्नता ओढ़ती यौवन का प्रदर्शन लोगों को कतई बर्दाश्त नहीं होगा।


लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़