(अभिव्यक्ति)
फ़र्ज़ करें की यकायक कोई मानव बस्तियों को उजाड़ने का प्रयास करे या अंधाधुंध बमबारी के साथ इंसान बस्तियों को निस्तोनाबूत करने पर आमादा हो; स्वाभाविक है की उस दौर में जातीय,क्षेत्रीय या धार्मिक भावनओं से पृथक ऊपर उठकर आने वाली मुसीबत का आप डटकर सामना करेंगे। लेकिन यदि विरोधी या प्रतिद्वंदी आपसे तकनीक और बल में बलिष्ठ हो तो निश्चित है की आप तब भी संघर्ष करेंगे। इंसानी बस्तियों को बचाने के प्रयास में सभी एक जुट भी हो जायेंगे। ऐसा ही हाल वर्तमान परिदृश्य में जंगल की जमीन पर हो रहा है। लगातार मानवों की बढ़ती जनसंख्या ने प्रकृति के विभिन्न स्थलों पर इंसानी सभ्यता को अतिक्रमण करने पर मजबूर कर दिया है। जंगल से पहले पेड़ काटे जा रहे हैं फिर जंगली जीवों की बेतहाशा हत्याएं हो रही है। शिकारियों के द्वारा इन बेजुबान जंगली जानवरों की निर्मम हत्या तो आर्थिक लाभ के लिए होती रही है। लेकिन जनसंख्या के बढ़ते अतिक्रमण के स्तरों ने जंगली जीवों के जीवन शैली में खलल पैदा कर दिया है। संभावित है ऐसे में मानवों और जंगली जीवों के बीच संघर्षों का दौर प्रारंभ हो गया है।
आकड़े के आईने से देखने का प्रयास करें तो पायेंगे की वर्ष 2018-19 और 2020-21 के बीच, देश भर में 222 हाथियों को करंट लगने से, 45 को ट्रेन से, 29 को शिकारियों ने और 11 को ज़हर देकर मार दिया गया। बाघों में भी, 2019 और 2021 के बीच अवैध शिकार से 29 मारे गए, जबकि 197 बाघों की मौत की जांच की जा रही है। जानवरों के साथ संघर्ष के मानव हताहतों में, हाथियों ने तीन वर्षों में 1,579 मनुष्यों को मार डाला - 2019-20 में 585, 2020-21 में 461, और 2021-22 में 533 लोगों की इहलिला समाप्त हुई है। ओडिशा में सबसे अधिक 322 मौतें हुईं, इसके बाद झारखंड में 291 अकेले 2021-22 में 133 सहित, पश्चिम बंगाल में 240, असम में 229, छत्तीसगढ़ में 183 और तमिलनाडु में 152 मौतें हुईं। मानव-वन्यजीव संघर्ष, अन्य खतरों के संयोजन में उन प्रजातियों की महत्वपूर्ण गिरावट को प्रेरित किया है जो कभी प्रचुर मात्रा में थीं और जो प्रजातियां स्वाभाविक रूप से कम प्रचुर मात्रा यानी भारी जनसंख्या में थीं, उन्हें विलुप्त होने के कगार पर धकेल दिया गया है।
जब तक तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती है, तब तक विनाशकारी प्रवृत्ति केवल पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता पर अपरिवर्तनीय प्रभाव को खराब करेगी और नष्ट कर देगी। ऐसा प्रभाव वन्यजीवों तक ही सीमित नहीं था। यह उन मनुष्यों को भी प्रभावित करेगा जो जंगली जानवरों के साथ रहते थे। विशेष रूप से जैव विविधता से समृद्ध विकासशील देशों में भौगोलिक विविधता के बीच सुसज्जित हो। भारत मानव-वन्यजीव संघर्ष से सबसे अधिक प्रभावित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मानव आबादी के साथ-साथ बाघों, एशियाई हाथियों, एक सींग वाले गैंडों, एशियाई शेरों और अन्य प्रजातियों की बड़ी आबादी है।भारत के हाथी शायद सबसे अच्छी समस्या का प्रतीक हैं।जानवर अपने मूल आवास के केवल 3-4 प्रतिशत तक ही सीमित हैं। उनकी शेष सीमा वनों की कटाई, आक्रामक प्रजातियों और जलवायु परिवर्तन से त्रस्त है। इस प्रकार जानवरों को संरक्षित क्षेत्रों के बाहर भोजन खोजने के लिए धकेला जाता है जहाँ वे मनुष्यों से टकराते हैं। यह, बदले में, मनुष्यों की मृत्यु के साथ-साथ उनके परिवारों के लिए आजीविका के नुकसान का कारण बनता है।मानव-वन्यजीव संघर्ष को पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं है। लेकिन इसे प्रबंधित करने के लिए सुनियोजित, एकीकृत दृष्टिकोण संघर्ष को कम कर सकते हैं और लोगों और जानवरों के बीच सह-अस्तित्व का एक रूप ले सकते हैं। डब्ल्यू डब्ल्यू एफ इंडिया ने 2003-2004 के दौरान 'सोनितपुर मॉडल' विकसित किया था, जिसके द्वारा समुदाय के सदस्यों को राज्य के वन विभाग से जोड़ा गया था। हाथियों को फसल के खेतों से सुरक्षित दूर भगाने के लिए उनके साथ काम करने का प्रशिक्षण उन्हें दिया गया। हाथियों से फसलों की रखवाली को आसान बनाने के लिए एक कम लागत वाली, सिंगल स्ट्रैंड, गैर-घातक बिजली की बाड़ भी विकसित की थी। परियोजना ने लाभांश लाया था। उदाहरण के लिए, बिश्वनाथ जिले के गोहपुर क्षेत्र में, 2015 में इन हस्तक्षेपों से पहले लगभग 212 हेक्टेयर फ़सल हाथियों के हाथों बर्बाद हो रही थी। बाद में, चार साल तक चलने से फसल का नुकसान शून्य हो गया। इंसानों और हाथियों की मौत में भी काफी कमी आई है।
आपके मन में भी प्रश्न होंगे की आखिर वन्य जीवों के प्रति हमारी जिम्मेदारी क्यों है? और वन्य जीवों का संरक्षण आवश्यक क्यों है? स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र के लिए प्रत्येक जीव का इस पृथ्वी पर उपस्थिति लाजमी है। मानव-वन्यजीव संघर्षों का प्रबंधन इसलिए जैव विविधता 2050 के लिए संयुक्त राष्ट्र के विजन को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है जिसमें तर्क दिया गया है कि, मानवता प्रकृति के साथ सद्भाव में रहती है। जिसमें वन्यजीव और अन्य जीवित प्रजातियों की रक्षा की जाती है। मानव-वन्यजीव संघर्षों का समुदायों की आजीविका, सुरक्षा और भलाई के लिए गंभीर प्रभाव पड़ता है, और संरक्षित क्षेत्रों, वन्य जीवन और जैव विविधता के समर्थन को कम करके संरक्षण प्रयासों को कम करने का जोखिम होता है। वन्यजीवन के खिलाफ प्रतिशोध एक प्रजाति के अस्तित्व के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर सकता है, और पिछली संरक्षण प्रगति को उलट सकता है। उदाहरण के लिए, भेड़िये, भालू और अन्य बड़े मांसाहारी पूरे यूरोप में ठीक हो रहे हैं, जिससे उनकी उपस्थिति को प्रबंधित करने के तरीके पर तनाव पैदा हो रहा है, जिसका कुछ लोगों ने स्वागत किया है और दूसरों द्वारा सुरक्षा और आजीविका के लिए जोखिम के रूप में माना जाता है। बहरहाल, मनुष्यों को समझना होगा की बुद्धिमान जीव मनुष्य है जानवर नहीं उनके विचरण, आवास और जीवन शैली में छेड़छाड़ के बजाय उन्हे निर्भय और स्वतंत्र माहौल दिया जाये। संघर्ष की स्थिति में बचाव तो उचित है लेकिन वन्य जीवों की हत्या स्वीकार्य नहीं है। इस पृथ्वी के संतुलन के लिए प्रत्येक जीव का पारिस्थितिक तंत्र में अनिवार्य सहभागिता है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़