Tuesday, January 31, 2023

छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य नाचा पर मंडराते विलुप्ति के बादल



                   (अभिव्यक्ति)

साहित्य जगत में हास्य को प्रधान कहा जाता है। ऐसे पद्य या गद्य रचना जिससे हास्य की अनुभूति हो वह हास्य से ओत-प्रोत सृजन कहा जाता है। हास्य , नाटक के प्रकार या अन्य कला जिसका उद्देश्य मुख्य आविभिन्नारणाओं के अनुसार मनोरंजन करना है। यह एक ओर ट्रैजेडी के साथ और दूसरी ओर प्रहसन,कार्टून और हास्य मनोरंजन के अन्य रूपों के विपरीत है। हास्य की क्लासिक अवधारणा की शुरुआत हुई थी प्राचीन काल में अरस्तु कालीन चौथी शताब्दी ईसा पूर्व का ग्रीस और वर्तमान के माध्यम से बना हुआ है। यह अंतर्निहित है कि यह मुख्य रूप से प्रासंगिक व्यक्तियों के बजाय सामाजिक प्राणियों के रूप में चिंतित है, और इसका कार्य स्पष्ट रूप से सुधारात्मक है। हास्य कलाकार का उद्देश्य समाज अपनी प्रतिबद्धताओं और कुरीतियों को अधिकार देने के लिए एक दिखाना चाहता है, इस आशा में कि परिणामस्वरूप, वे यथोचित हो जाएंगे। 20वीं सदी के फ्रांसीसी दार्शनिक हेनरी बर्गसन ने सुधारात्मक उद्देश्य के लिए इस विचार को साझा किया हंसी ; विशेष रूप से, उन्होंने महसूस किया, अजीब का उद्देश्य हास्य चरित्र को अपने समाज के समान वापस लाता है, जिसके तर्क और रूढ़िवादिता को वह तब छोड़ देता है। जब वह ध्यान में जो जीवन के कारणों से होता है, वह उस पर ध्यान नहीं देता है।
              छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य  में भी हास्य का संगम देखने को मिलता है। मुख्यरूप से छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार लोक नृत्य के कई प्रकार जैसे, नाचा, बस्तर के भतरा जनजातीय समुदाय से जुड़ा भतरानाट, पंडवानी, रास लीला को प्रदर्शित करती रहस, बस्तर के मुड़िया जनजातीय विशेष माओ पारा, बुंदेलखंड की छाप या प्रभाव को प्रदर्शित करती राई, करमा और रास का संगम प्रदर्शित करती दाहिकांदो, हास्य की विधा में गम्मत और खम्ब स्वांग लोकनाट्य में स्थान रखते हैं। 
         हास्य नाट्य शब्द एक विरोधाभास की तरह लग सकता है। श्रेणी नाटक, विशेष रूप से चलचित्रों और टीवी के संदर्भ में, आमतौर पर कुछ गंभीर और संभवतः दुखद होता है। दूसरी ओर, हास्य इसके विपरीत है। लेकिन नाटक मंच पर प्रदर्शित होने के लिए लिखे गए साहित्य की शैली को भी संदर्भित करता है, और जब तक नाटक रहा है, हास्य इसका एक हिस्सा रहा है। जबकि ट्रैजिडी लंबे समय से नाटक की सबसे प्रतिष्ठित और गंभीर शैली रही है, हास्य नाटक हमेशा इसके साथ मौजूद रहा है। समय के साथ कॉमिक नाटक का रूप बदल गया है। हास्य नाट्य आम तौर पर समाज में मज़ाक उड़ाने के लिए अतिशयोक्ति का उपयोग करता है। कई हास्य में, सामान्य सामाजिक नियमों को छोड़ दिया गया है या उल्टा कर दिया गया है और हास्य बताती है कि वे कितने मूर्ख हैं।
              टेलीविज़न की बढ़ती संंघनता और चैनलों के भरमार से पहले छत्तीसगढ़ के अंचल पर नाट्य विधा में नाचा लोकप्रियता के चरम पर था। नाचा प्रस्तुतियाँ मुख्यत: चार प्रकार की होती हैं। पहली- खड़े साज नाचा, जो कि इस विधा की सबसे पुरानी विधा है। दूसरी- गंडवा नाचा जो कि शादियों में गंडवा समुदाय के संगीतकारों द्वारा संगीतमय  प्रस्तुती के साथ प्रदर्शित किया जाता है। तीसरी, खानाबदोश देवार समुदाय का देवार नाचा, और चौथी, बैठे साज़ या गम्मत नाचा जो कि सर्वाधिक लोकप्रिय है। देवार नाचा विधा को छोड़कर, सभी नाचा विधाओं में महिला पात्रों को पुरुष कलाकारों द्वारा महिला के छत्तीसगढ़ी पारम्परिक परिधान में प्रस्तुत किया जाता है। नाचा में कलाकार की भाव भंगिमा को महत्त्व दिया जाता है। नाचा सामान्यतः  रात में आयोजित होती हैं।
             नाचा छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य का अब विलुप्ति के कगार पर है। एक ओर जहां हास्य केे स्तर पर अश्लीलता भरे शब्दों का प्रयोग वहींं दूसरी ओर टेलीविज़न और इंटरनेट पर समिटते दर्शकों के कारण माटी से जुड़े लोकनाट्य विघटन की ओर बढ़ रहा है। बहरहाल, नाचा को सहेजने का प्रयास भी किया जा रहा है। डिजिटल क्रांति की देन है कि नाचा अब यूट्यूब और रिल्स के प्लेटफार्म में अपलोडेड हैं। लेकिन दर्शकों की कमी से जुझते कई फनकार हास्य की विधा में धनी तो हैं लेकिन सामाजिक पृष्ठभूमि पर पाई-पाई के लिए मोहताज हैं।


लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़