Tuesday, January 31, 2023

प्रत्यक्ष से परे पत्रकारिता की दुनियाँ में झाँकते हुए


                (अभिव्यक्ति)

निश्चित ही प्रत्येक मनुष्य चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए निजी संघर्षों को दबाएं अपनी अलग ही छवी लेकर घुम रहा है। ऐसे ही पत्रकारिता के दुनियां में जब युवा बतौर पेशे के रूप में कदम रखता है,तो निश्चय ही वह वास्तविक धरातल से पृथक वैचारिक पृष्ठभूमि में अपने कल्पनाओं को तरासता है। एक ऐसे किसी युवा पत्रकार के रोजाना का एक दिन चुराने का प्रयास किया हूंँ। लगभग वर्ष 2011-12 के दरमियान एक युवा पत्रकार रोज की तरह अखबार दफ्तर के लिए  निकल रहा था। छोटे से 10बाई 10 के खरैल के कच्चे मकान से कैरियर की गाड़ी को धक्का देने के प्रयास चल रहा था। ग्रेजुएशन के पहले वर्ष के तत्काल बाद नौकरी की कोई मजबूरी नहीं थी बल्कि खूद को साबित करने के इरादे से पत्रकारिता में कदम रखा गया था। दफ्तर के पहुंचते ही सामने आफिस ब्वाय लोचे (लोचन जी) धुल झाड़ते हुए स्वागत  किया। तभी किसी ने फोन से सूचना दिया की पास के गांव में खेत में लगी रबी की फसल में आग लग गई है। जाना तो बेचारे युवा पत्रकार को था। नए जॉब के चलते अक्सर दफ्तर से बाहर का सफर पैदल ही या लिफ्ट के भरोसे होता था। जाना भी जरूरी था, तो पैदल ही सहीं बढ़ते तेज धूप के बीच खेत तक पहुंचना तो हुआ। मगर मरहम के बजाय शायद लोगों के युवा पत्रकार के सवाल नमक जैसे लग रहे थे। फोटो और लोगों के वर्जन लेने के बाद, निकल ही रहा था की एक और फोन ब्यूरोचीफ का आया की तुरंत नगर के एफसीआई गोदाम पहुंचें,वहां मजदूर संघ वाले किसी विरोध प्रदर्शन  के तैयारी में है। फिर वहां से अच्छे फोटो और वर्जन लेकर, नगर से बाहर पत्थर खदान वाले गांवों के लोगों की स्टोरी भी कवर कर लेना। हुकुम की नाफरमानी तो की नहीं जा सकती है। तो संभवतः सभी जगहों पर पहुचना भी जरूरी था। जैसे तैसे करके अंतिम लक्ष्य पत्थर खदान से पीड़ित लोगों के गांव वह पत्रकार पहुंचा। संभवतः वहाँ एक वृद्ध व्यक्ति मीडिया ट्रायल्स को अच्छे से समझता था। इसलिए आग बुला हुआ था, बोला- क्या सर आप लोगों को कोई काम धंधा नहीं है क्या? जो रोज -रोज फोटो लेने आ जाते हो? क्या आप सच में सच छाप पाएंगे और क्या उसका कोई हल निकल पायेगा। या फिर यहां के ठेकेदारों से साठगांठ रखने वाले हमारी परेशानी के हल होने दे पायेगें। उसके सवाल में दर्द तो था। जैसे तैसे करके वह युवा पत्रकार दफ्तर पहुँचा। उसने दिन भर की क्रमशः रिपोर्ट तैयार कर डेस्क में प्रेषण के लिए भेज दिया। रात्रि के साथ दिनचर्या का समापन हुआ। अगली सुबह के अखबार में सारे समाचार छपे लेकिन जिस बुजुर्ग की दर्द से संजोकर रिपोर्ट तैयार किया था; वह नहीं छपा। पूछने पर जगह ना होने का बहाना देकर समाचार को नहीं छपने का बहाना आला प्रभारियों ने दे दिया। बहरहाल, शायद उस समय वह युवा पत्रकार समझ नहीं पाया की कोई बड़ा खेल हो गया।


लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़