Wednesday, January 4, 2023

विद्यार्थियों में गणित का डर या रोज़गार अल्पता की चिंता


                (अभिव्यक्ति) 

बातों ही बात में बल्लू काका अपने बेटी की बड़ाई करते हुए बोले कि, बिटिया डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही है। देर सवेरे डॉक्टर तो बन हीं जायेगी। ओ... लल्ला सूनों इंजीनियरिंग की पढाई के बाद आप चपरासी से लेकर मुख्यमंत्री तक कुछ भी बन सकते हैं। हाँ किस्मत ने साथ दिया तो धोखे में इंजिनियर बना जा सकता है। बल्लू काका की बात में दम तो था पर आकड़ों पर यकिन करके ही दम लेते हैं। हम भी जो गणित वाले ठहरे। बीते बरसों के आंकड़े तलाश किये तो समझ आया कि, इंजीनियरों को जॉब मिलने के प्रतिशत में साल दर साल कमी हो रही है। वर्ष  2009-10 में डिग्री पूरी करने के बाद 60 फीसदी इंजीनियर जॉब पाते थे। लेकिन वर्तमान में  यह आकंड़ा शेयर मार्केट की तरह और गिर पड़ा है। वर्तमान में केवल 30 से 35 फीसदी इंजीनियर ही उसी साल नौकरी में आ पाते हैं, और बाक़ियों को लंबा संघर्ष करना पड़ता है। इंजीनियरों की बाढ़ को देखते हुए कंपनियों ने अपना कार्मिक भर्ती प्रक्रिया में बदलाव किया है। कंपनियां बीई के बजाए बीएससी को तरजीह देने लगी हैं। जिससे इंजीनियरों के बेरोजगार रह जाने के आंकड़े में बढ़ोतरी हुई है। वास्तव में कंपनियों का दृष्टिकोण है कि बीएससी पास कार्मिक 15 से 20 हज़ार रुपए में खुशी-खुशी अपने करियर की शुरुआत करता है। लेकिन इंजीनियर शुरुआत से ही बिना परफॉर्म किए अपनी ग्रोथ, इंक्रिमेंट की बातें करते हैं।
             बात करें छत्तीसगढ़ में तो राज्य में अभियांत्रिकी की पढ़ाई 33 कॉलेजों में हो रही है। इन कॉलेजों में इंजीनियरिंग की 11381 सीटें हैं। इसमें से रायपुर, बिलासपुर व जगदलपुर के शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज में 852 सीटें हैं। यानी आगामी सत्र में लगभग 12 हजार सीटें इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों के लिए तैयार रहेंगी। लेकिन गौर करने वाली बात यह है की राज्य में इस साल 12वी गणित से पास होने वाले विद्यार्थियों की संख्या पूर्व वर्ष के विद्यार्थियों  की संख्या से गिरावट में दर्ज हुई है। वर्ष 2016 में 27176, वर्ष 2017 में 27811, वर्ष 2018 में 25428, वर्ष 2019 में 22656, वर्ष 2020 में 23299, वर्ष 2021 में 21864, वर्ष 2022में 19115 और इस वर्ष 17169 बच्चे बरहवी गणित की परीक्षा दे रहे हैं। इनमें से आधे बच्चे कृषि,वानिकी, फार्मा सहित वर्तमान में रोजगार मूलक कोर्स की ओर बढ़ जायेंगे और फिर इंजीनियरिंग की सीटें एडमिशन की भीड़ तलाशती एकांत चित्त हो जायेगी। एक ओर राज्य में गणित जैसे गंभीर विषय के लिए बच्चे की अभिरुचि कम होना, चिंतन का विषय है। वहीं दूसरी ओर रोजगारोन्मुखी संसाधनों की अल्पता पालकों में गणित के बजाय अन्य विषयों की पढ़ाई के लिए बच्चों में मानसिक दबाव भी गणित के लिए युवा पौध की कमी के कारण है।
         वहीं मार्क एच. एशक्राफ्ट गणित की चिंता को तनाव, आशंका, या डर की भावना के रूप में परिभाषित करता है। जो गणित के प्रदर्शन में हस्तक्षेप करता है। यह एक ऐसी घटना है जिस पर अक्सर गणित में छात्रों की समस्याओं की जांच करते समय विचार किया जाता है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अनुसार, गणितीय चिंता अक्सर परीक्षण चिंता से जुड़ी होती है। यह चिंता संकट पैदा कर सकती है और संभावित रूप से गणित से संबंधित सभी कार्यों के प्रति अरुचि और परिहार का कारण बन सकती है। गणित की चिंता का अकादमिक अध्ययन 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ, जहां मैरी फाइड्स गफ ने गणित के प्रति कई लोगों की फोबिया जैसी भावनाओं का वर्णन करने के लिए मैथेमाफोबिया शब्द की शुरुआत की। पहला गणित चिंता माप पैमाना 1972 में रिचर्डसन और सुइन द्वारा विकसित किया गया था। इस विकास के बाद से, कई शोधकर्ताओं ने अनुभवजन्य अध्ययनों में गणित की चिंता की जांच की है । हेम्ब्री ने गणित की चिंता से संबंधित 151 अध्ययनों का मेटा-विश्लेषण किया। अध्ययन ने निर्धारित किया कि गणित की चिंता गणित उपलब्धि परीक्षणों पर गणित के खराब प्रदर्शन और गणित के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण से संबंधित है। हेम्ब्री यह भी सुझाव देते हैं कि गणित की चिंता सीधे गणित से बचने से जुड़ी है। ऐशक्राफ्ट सुझाव देता है कि अत्यधिक चिंतित गणित के छात्र उन स्थितियों से बचेंगे जिनमें उन्हें गणितीय कार्य करने होते हैं। दुर्भाग्य से, गणित से बचने का परिणाम कम योग्यता, अनुभव और गणित अभ्यास में होता है, जिससे छात्रों को अधिक चिंतित और गणितीय रूप से प्राप्त करने के लिए तैयार नहीं किया जाता है। कॉलेज और विश्वविद्यालय में, चिंतित गणित के छात्र कम गणित पाठ्यक्रम लेते हैं और विषय के प्रति नकारात्मक महसूस करते हैं। वास्तव में, एशक्राफ्ट ने पाया कि गणित की चिंता, आत्मविश्वास और प्रेरणा जैसे चर के बीच का संबंध बहुत नकारात्मक है। 
          साल दर साल राज्य में गणित केे विद्यार्थियों की गिरती संख्या भावी समय में अच्छे इंजीनियर, गणितज्ञ और गणित के विषयों के विशेषज्ञ निर्मित करने में दुर्बलता ना प्रदर्शित करे।


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़