Monday, January 2, 2023

हिंग्लिश से बढ़ते हिंदी व्याकरण में अशुद्धियों का अवलोकन : प्राज


             (अभिव्यक्ति)


भाषा और संस्कृति के बिना मनुष्य केवल एक और महान वानर होगा। मानवविज्ञानी के पास भाषाविज्ञान में कौशल होना चाहिए ताकि वे उन लोगों की भाषा और संस्कृति सीख सकें जिनका वे अध्ययन करते हैं। सभी मानव भाषाएँ प्रतीकात्मक प्रणालियाँ हैं जो अर्थ संप्रेषित करने के लिए प्रतीकों का उपयोग करती हैं।
           आदिकाल में जब मनुष्य  के पास भाषा नहीं थी तो वह चित्रों के माध्यम से संप्रेषण करता था। इस पद्धति को पिक्टोग्राफ यानी पाषाण चित्र कहा जाता है। मानवविज्ञानी और पुरातत्वविद रॉक कला को अचल चट्टान की सतहों पर उकेरी गई, खींची गई या चित्रित छवियों के रूप में परिभाषित करते हैं। चट्टानों में उकेरी गई या उकेरी गई छवियों को पेट्रोग्लिफ्स कहा जाता है। पेंट या अन्य पिगमेंट से बने चित्र चित्रलेख कहलाते हैं। वहीं भाषा के अविष्कार के संबंध में पौराणिक कथाओं में भाषा की उत्पत्ति की खोज का एक लंबा इतिहास है। अधिकांश पौराणिक कथाएं मानव को भाषा के आविष्कार का श्रेय नहीं देती हैं, लेकिन मानव भाषा से पहले एक दिव्य भाषा की बात करती हैं। जानवरों या आत्माओं के साथ संवाद करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रहस्यमय भाषाएं, जैसे कि पक्षियों की भाषा , भी आम हैं, और पुनर्जागरण के दौरान विशेष रुचि थी। देवों की भाषा यानी संस्कृत के संदर्भ  में विभिन्न  साक्ष्य मिलते हैं कि संस्कृत भाषाओं के इंडो-यूरोपीय परिवार से संबंधित है। यह तीन प्रारंभिक प्राचीन प्रलेखित भाषाओं में से एक है जो एक सामान्य मूल भाषा से उत्पन्न हुई है। जिसे अब प्रोटो-इंडो-यूरोपीय भाषा के रूप में संदर्भित किया जाता है। वैदिक संस्कृत का तिथि- 1500-500 ईसा पूर्व और  यूनानी सी. 1450 ईसा पूर्व और प्राचीन यूनानी सी. 750-400 ईसा पूर्व के आसपास के संदर्भ  में उत्पत्ति हुई है। संस्कृत से अन्य इंडो-आर्यन भाषाओं की तरह, हिंदी सौरसेनी प्राकृत और सौरसेनी अपभ्रंश संस्कृत अपभ्रंश 'भ्रष्ट' के माध्यम से वैदिक संस्कृत के प्रारंभिक रूप का प्रत्यक्ष वंशज है,जो 7वीं शताब्दी में उभरा है। मन के अंदर जो भी भाव उत्पन होते हैं उनको बताने का काम शब्द करते हैं। किसी भाषा की समृद्धि शब्द निर्भर करती है की उसमे शब्द का महत्वपूर्ण योगदान है। भाषा में लगतार नए शब्द शामिल होते हैं। हम हिंदी भाषा में उत्पति के द्वारा  निम्नलिखित प्रकार के शब्द-संग्रह देख सकते हैं। देशी शब्द, विदेशी शब्द, तत्सम शब्द, तद्भव शब्द, अन्य शब्द सम्मिलित होते हैं। जहां वे शब्द जो स्थानीय भाषा के शब्द होते है, ये देश की विभिन्न बोलियों से लिए जाते है, अर्थात् तत्सम् शब्द को छोड़ कर, देश की विभिन्न बोलियों से आये शब्द देशज शब्द कहलाते हैं। वहीं अरबी, फारसी, अंग्रजी या अन्य किसी भी दुसरे देश की भाषा के शब्द जिनका हिन्दी भाषा में प्रयोग कर लिया जाता है उन्हें विदेशी शब्द कहते हैं। 
             तत्सम शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों, तत् + सम् से मिलकर निर्मित हुआ हो। जिसका मतलब होता है ज्यो का त्यों अर्थात संस्कृत के समान। जिसे हम संस्कृत से बिना कोई बदलाव करे उपयोग में लाते है, जिनकी ध्वनि में कोई परिवर्तन नहीं होता। इनका उच्चारण कठिन होता है। कोंकणी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, तेलुगू, कन्नड,हिंदी आदि काफी शब्द संस्कृत से लिए है। वहीं तद्भव शब्द, तत्सम का परिवर्तित या आसान रूप है। इसमें उच्चारण सरल हो जाता है। तद्भव का शाब्दिक अर्थ है – “उससे बने”  संस्कृत भाषा में परिवर्तन होने कारण पाली, प्रकृत, अपभ्रंश भाषाओं से गुज़री हिंदी में रूप परिवर्तन हुआ है।
                वर्तमान दौर में दो भाषओं के संगम स्थली पर नवीन भाषा का जन्म कर दिया जा रहा है। जो मूल भाषा पर अतिक्रमण ह्रास के रूप में दिखाई पड़ता है। जैसा की हम जानते हैं कि सामान्य रूप से सांस्कृतिक परिवर्तन और भाषा से इसके संबंधों पर विचार किया जाएगा। अब तक सीखे गए व्यवहार का सबसे बड़ा हिस्सा, जो कि संस्कृति में शामिल है, मौखिक निर्देश द्वारा प्रसारित किया जाता है, अनुकृति द्वारा नहीं। कुछ लेखन स्पष्ट रूप से शामिल है, विशेष रूप से शैशवस्था में, सीखने की प्रक्रिया में, लेकिन आनुपातिक रूप से यह शायद ही महत्वपूर्ण है। भाषा के उपयोग के माध्यम से, किसी भी कौशल, तकनीक, उत्पाद, सामाजिक नियंत्रण के तरीके आदि को समना जा सकता है, और किसी की आविष्कारशीलता के अंतिम परिणाम किसी अन्य व्यक्ति को बौद्धिक क्षमताओं के साथ उपलब्ध दावों जा सकता है। यानी भाषा की उत्कृष्ट और व्याकरण का संरक्षण अनिवार्य पद्धति है। दो भाषाओं के संकरण से उत्पन्न मूल भाषा को अशुद्धि युक्त करता हैं। जैसे हिंग्लिश की अवधारणा पर आधारित नव भाषा ना तो हिन्दी के व्याकरण  में शुद्ध है और ना तो अंग्रेजी में। हिंग्लिश की बात करें तो साहित्य समाज का दर्पण है । यदि समाज में सामान्य बोलचाल में ऐसी भाषा का प्रयोग बढ़ा है, तो साहित्य भी भला इससे अछूता कैसे रह सकता था । आज साहित्यकारों ने भी इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। हिंग्लिश के प्रयोग के उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त और भी कई कारण हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत में व्यावसायिक शिक्षा में प्रगति आई है । अधिकतर व्यावसायिक पाठ्यक्रम अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध हैं और विद्यार्थियों के अध्ययन का माध्यम अंग्रेजी भाषा ही है । इस कारण से विद्यार्थी हिन्दी में पूर्णतः निपुण नहीं हो पाते, क्योंकि अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त युवा हिन्दी में बात करते समय अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने को बाध्य होते हैं ।  हिन्दी भारत में आम जन की भाषा है । इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में समाचार-पत्रों एवं टेलीविजन के कार्यक्रमों में भी ऐसी ही भाषा के उदाहरण मिलते हैं । इन सबका प्रभाव आम आदमी पर पड़ता है । आज ‘हिंग्लिश’ का भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग ढंग से प्रयोग होने लगा है, जिसका असर सूचना प्रौद्योगिकी, इण्टरनेट, चैट, मोबाइल मेसेज तथा हिन्दी ब्लॉगिंग के रूप में दिखने लगा है ।  वर्तमान में आम आदमियों से लेकर बुद्धिजीवियों तक में इसका प्रचलन बढ़ता जा रहा है। लेकिन इस भाषायी संकरण से उत्पन्न  नव भाषा हिन्दी के गरिमा को ह्रास करने में आमादा है।

लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़