Monday, November 28, 2022

डेटिंग साइट वाला इश्क या अपग्रेड वाला अपराध / dating site love or upgrade crime





                ( अभिव्यक्ति )


किसी भी रिश्ते की इमारत की मजबूती दो लोगों के आपसी सामंजस्य और विश्वास के बुनियाद पर खड़ी होती है। इसी तर्क की ओर भारतीय फिल्म उद्योग के स्वर्णिम युग यानी ब्लैक एन्ड वॉइट सिनेमा के 1956 दौर में गीतकार शैलेन्द्र ने फिल्म चोरी-चोरी के लिए लोकप्रिय गीत, जहाँ मैं जाती हूँ वहीं चले आते हो; लिखा। जिसके फिल्मांकन में तत्कालीन लोकलाज और गरिमा का पालन और वास्तविक सोशल डिस्टेंसिंग का पालन उस गीत के दृश्य अर्थात् चलचित्र में दिखाई देता है। इंटरनेट की दुनियां जैसे ही आम जीवन पर पड़ी लोगों की दुरियां कम होने लगी। औद्योगिकीकरण और नगरीकरण के लीला में रिश्तों के बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच दूरियों में भी रिश्तों को जुड़ाव, बढ़ाव, स्वभाव और हाव-भाव में खासा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। पुराने जमाने में रिश्तों की बुनियाद या कहें दो विपरित लिंगीय लोगों के बीच के रिश्तों का धरातलीय नींव शादी के गठबंधन से होता था। लेकिन इंटरनेट और हाई-फाई कनेक्टिविटी वाले इस अपग्रेडेशन के दौर में रिश्तों की नयी परिभाषाएं लिखी जाने लगी है। कुछ रिश्ते ऐसे भी बनने लगे हैं जो वर्चुअल यानी आभाषी पटल पर निभायें जा रहे हैं। इन रिश्तों की शुरुआत की भूमिका को डेटिंग का नाम दिया गया है। डेटिंग का शाब्दिक अर्थ वैसे तो कुछ और ही कहानी बयान करता है जो एक मानवशास्त्रीय, सामाजिक निर्माण है। मुख्य रूप से भारतीय परम्परा में यह स्वीकार्य नही है; हालाँकि, डिजिटल युग ने कुछ शानदार बेहतरीन डेटिंग ऐप्स को जन्म दिया है और वे गलत भी नहीं हैं। स्टेटिसा डॉटकॉम  के अनुसार, डेटिंग ऐप्स पर लगभग 31 मिलियन भारतीय उपयोगकर्ता हैं। उनमें से 67 प्रतिशत केवल पुरुष हैं। वहीं बात करें भारतवर्ष में डेटिंग साइट्स की संख्या की तो अनुमान है कि दुनिया भर में 8,000 से अधिक प्रतिस्पर्धी ऑनलाइन डेटिंग साइट और प्लेटफॉर्म हैं। कितने लोग ऑनलाइन डेटिंग का उपयोग करते हैं? 2021 में, दुनिया भर में 323 मिलियन लोगों ने नए लोगों से मिलने के लिए डेटिंग ऐप्स या डेटिंग साइटों का इस्तेमाल करते हैं। आकड़ें बताते हैं की ग्लोबल विलेज की कल्पना ने लोगों को कितने करीब लाकर रख दिया है। वहीं भारत में, केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच के संबंधों को वैध माना जाता है जब दोनों के बीच विवाह होता है। भारत में विवाह के बिना विषमलैंगिक संबंध को नाजायज माना जाता है। लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर भारत में कोई विशेष कानून नहीं है। लेकिन ऐसा भी नहीं है की यह स्वीकार्य नहीं है।
              हाल फिलहाल में लोगों की बढ़ती पारिवारिक-सामाजिक दूरी के मद्देनजर लोग वर्चुअल संबंधों की ओर बढ़ने लगे हैं। वहीं मिलने-मिलाने के वन-टाईम कंडिशन से लेकर लिविंग तक के व्यक्तिगत संबंधों वाले पाठ्यक्रम के फॉलोवर्स बढ़ने लगे। जहाँ खासकर युवावर्ग अपने आईडेंटिटी की तलाश में या फिर पालकों के हिदायतों को उलझन समझने की बड़ी भूल कर बैठते हैं। वहीं डेटिंग के पृष्ठभूमि पर तैयार एक दूसरे के उपयोक्ता प्रोफाइल के आधार पर व्यक्ति का आलकन कर संबंधों को आगे बढ़ाने की हवा दे बैठते हैं। बड़ा सवाल यह भी उठता है की जो जैसे सोशल साईट्स पर दिखता है या तीस सेकेंड की विडियो में जैसे दिखता है। ठीक क्या वह वैसे व्यक्तित्व का धनी होगा? क्या यह संभव नहीं यह कोई वर्चुअल तौर पर ठगी या षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं है। हाल की कुछ अपराधिक घटानाएं ऐसे उदाहरणों की ओर इंगित करते हैं। पालक या माता पिता कभी भी अपने बच्चे के लिए अहित नहीं सोचते हैं।उनका डाटना, चिल्लाना या समझाना भविष्य में आने वाले खतरों से बचाना और उत्तम चरित्र के लिए प्रेरणा देना होता है।
         बहरहाल, वर्तमान समय में ऐसे ही लिविंग-रिलेशनशीप की घटना पूरे देश में चर्चित है। जिसमें प्रेम के नाम पर अक्षम्य पाप करे वाले दोषी को फाँसी की सजा के लिए मांग की जा रही है। वहीं देश के बड़े कलमकार से लेकर आमजनों में आक्रोश उफान पर है। हैरत करने वाली बड़ी बात है की क्या किसी मनुष्य की मनुष्यता इतनी घिनौनी और निचले स्तर पर पहुंच सकती है; जो अपने ही प्रेम के तुकड़े-तुकड़े करके शरीर के टुकड़े प्रतिदिन बिखेरता फिर रहा हो। ऐसे पिशाच को क्यों ना नगर के बीच चौराहे पर सार्वजनिक रूप से फांसी दि जाये ताकि ऐसे विचार रखने वाले कुत्सित और प्रेम के भेष में अपराधिक मानसिकता वाले मनोरोगियों को सबक मिले।
               ऐसे घटना संकेतक है ऐसे रिलेशनशिप में पड़ने वाले लोगों के लिए की वर्चुअल मोड पर इंस्टेंट बनने वाले रिलेशन या वन नाइट स्टैण्ड की कल्पना पालने की कपोपकल्पना कितनी बड़ी भयावह और जघन्य अपराध का भागी बना सकता है। वहीं युवा वर्ग में व्याप्त प्रेम संबंधों की विश्वसनीयता यदि बेडरूम के बंद दरवाजों के अंदर नग्नता ओढ़कर साबित करना हो, तो निश्चय समझना आवश्यक है की आप किसी षड़यंत्र में फस तो नहीं रहे हैं। क्योंकि वर्तमान लिव-इन-रिलेशन की प्रथा बुनियादी तौर पर भारतीय संस्कृति में व्याप्त शादी नामक संस्था की व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने को आमादा है। वहीं वर्चुअल संबंधों के लिए यह भी आवश्यक है की ऐसे संबंधों की पृष्ठभूमि वर्चुअल ही रहने दे। वहीं अपनी गोपनीयता और निजीकत्व की सुरक्षा अपने हाथों में रखना अति आवश्यक है। वरना, वर्चुअल मोड पर अपराधिक मंशा लिए फिर रहे मानसिक तौर पर मनोरोगियों के अगले शिकार आप हैं। वहीं पुरूषों से कहीं अधिक वर्चुअल मोड पर महिलाएं ऐसे अपराधिक तत्वों के लिए सॉफ्ट टार्गेट सिद्ध होती हैं।



लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़