(बिचार)
छत्तीसगढ़ी लोककला म लोकनृत्य जम्मों छत्तीसगढ़ के जनजीवन के झांकी ल जुरमिल के दिखाय के परियास करथे। झगरा-झंझट, माथा के ठन अऊ चिंता ले बाहिर गांव वे जिनगी म मुस्कावत ममखे के मिलजुल के संगेसंग रहय के परम्परा के बखान गांव के एकता ह उजागर करथे। छत्तीसगढ़ के भुइँया के गुरतुर बानी अऊ खांध ले खांध मिलाके एक ताल म नाचत मनखे के बिधुन थिरकना के पहचान हरे लोकनृत्य ह। लोकनृत्य जइसे सुआ, करमा, पंथी राउत नाचा, चंदैनी, गेड़ी, नृत्य, परब नृत्य, दोरला, मंदिरी नृत्य, हुलकी पाटा, ककसार, सरहुल शैला गौरवपाटा, गौरव, परथौनी, दशहरा जम्मों माटी ले जुड़े हवय। छत्तीसगढ़़ के लोकनृत्य म इहाँ के लोककला हर पराण हरे। चाहे असाड़, सावन हो चाहे कातिक के महिना, प्रकृति के रंग ला घोरत फागुन होय चाये, अमरईया के तरी बीते घाम के महिना जम्मों दशा म मिश्री के मिलास घोलत कर्मा,ददरिया अऊ बांस के संगीत म सुग्घर हिरदे के पीरा ला जुड़ावत संझा के बेरा, ठेलहा के बेरा म राग अलाप लेके मन थिराय के तीर्थ झलकथे लोककला म। मनखे मन के उल्लास, उमंग अऊ उत्साह के संगेसंग परंपरा के पर्याय घलो हरे।
जम्मों सामाजिक, धार्मिक अऊ आनी-बानी के परब के बेरा म छत्तीसगढ़िया मनके अपन भावना ल बियक्त करके के लोकनृत्य हर परमुख उद्विलास हरे। छत्तीसगढ़ के नृत्य परंपरा हर शब्द के सीमा म बांधे नइ बंधाय अइसन अनंत अऊ असीम हवय। हमर छत्तीसगढ़ मं सबले ज्यादा पसंद करे जाथे सुआ नृत्य ल। गांव के चिन्हारी अऊ सुंदरता ल बरबस सुआ नृत्य में देखे ले बनने। नान्हे नोनी का, बड़़े माईलोगिन दीदी-बहिनी मन ये नृत्य अब्बड उत्साह ले...ओ बेरा मं सुरू करथे, जब छत्तीसगढ़ महतारी से कोरा ले उपजे धान सोनहारी हो जथे। आये देवारी के तिहार ले पहली सुरू होवईया ए नाच के समापन के पड़ाव हर गौरी-गौरा के बिहाव संग जुड़ाथे। सुआ नचकारिन बहिनी मन गांव के घरोघर के मुहाटी मं ताली के थाप मं आसित बरसावत, टुकनी म धान भरके बिदा लेथे। ये टुकनी म माटी ले बने सुआ देवता के परतिक कहिलाथे। नाचत-गावत सुआहारिन दीदी मन के ये दृश्य मन मोह लेथे। मूल मं धियान करन त सुआ नाच हर मया के प्रतिक हरै, जेमा शिव और गौरी के नाम प्रमुखता ले उजागर होथे।
उसने हमर राज म रहिइया सतनामी पंथ के भाई मन अपन परंपरागत पंथी नृत्य, जौन माघ महीना के पून्नी में गुरू घासीदास के अवतरण दिवस के उपलक्छ म करे जाथे। जैतखाम म पालो चढ़ाय अऊ पूजन करे जाथे। इही जैतखाम के चारों मुड़ा गोल घेरा बनाके गीत गाथे अऊ नाचथे। पंथी नृत्य सुरु म देवताओं के स्तुति करे जाथे। गीतों मं गुरू घासीदास का चरित्र ह प्रमुख होथे। जेमा मानुष के जिनगी के गौरव गाथा के संग ओखर तन के क्षण भंगुरता ल बताय जाथे। पंथी-नृत्य म मृदंग अऊ झांझ बाजा के थाप म आगु तो नाच थोरकिन धीर होथे फेर लय बेरा के संगेसंग बढ़त जथे।
देवारी के तिहार संग राउत नाचा के सुरवात होथे। जेमा राउत अपन घर ले काछन मारत निकलथे।गांव के जन्मों राउत सगा संग गांव के मित-मितान मन सिंग बाजा के संग जेखर घर के गरवा चराथे उखर घर सोहई बांधत चलथे। ये जन्मों गांव के मनखे मनबर बड़े परब हरय। दस-बीस दिन चलईया ये नाच ह जेठौनी के दिन थिराथे। गांव मं गोवर्धन खुंदाय अउ गोधन के रक्छा बर प्रेरित करत, राउत मन छत्तीसगढ़ी दोहा मं संदेस अऊ आसित बरसाथे।
छत्तीसगढ़ी के लोकनृत्य म राज के लोक कला के छटा देखे ले बनथे। इँहा रहइया जनजातीय संगी मन के कर्मा गीत मन के अंतस ल छू लेथे। मांथर, थाप, रावणहत्था, मोरचोंग, टिमकी, गाड़ा बजा, निसान अऊ किसम-किसम के बाजा मन के थाप म, अपन क्षेत्रीय रंग के ओन्हाँ के बिसेस महत्व हवय।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़