Friday, September 23, 2022

स्वतंत्रता के सहिष्णु-वातावरण में अभिव्यक्ति के आजादी के मायने? / Meaning of freedom of expression in a tolerant environment of freedom?


                           (अभिव्यक्ति

आंग्लभाषायी शब्द लिबर्टी का अर्थ स्वाधीनता को परिभाषित करता है जो हिन्दी रूपांतरण या अर्थ में बंधनों का अभाव या मुक्ति या अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने के भाव को प्रदर्शित करता है, निर्बाधता की इसी परिधि को स्वतंत्रता की संज्ञा दी जा सकती है। हमारे संसद का इतिहास स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का इतिहास के रूप में स्मृति पर है। सरलार्थ में स्वतंत्रता की परिभाषा, 'व्यक्ति की अपनी इच्छानुसार कार्य करने की शक्ति का न्याय है।' यानी किसी क्षेत्र विशेष में यदि किसी समूह को स्वतंत्रता प्रदान की गई है तो तात्पर्य यह है की स्वच्छंद होकर वे अपने इच्छानुरूप कार्य करने के लिए मुक्त हैं। स्वतंत्रता, स्वतंत्रता की स्थिति, विशेष रूप से राजनीतिक अधीनता, कारावास, या दासता के विरोध में निर्बंध होने का भाव है। वहीं इसके दो सबसे आमतौर पर मान्यता प्राप्त विभाजन राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता हैं।
           स्वतंत्रता किसी भी राष्ट्र के नागरिक के लिए सर्वोपरि है। स्वतंत्र नागरिक अपनी इच्छा से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है। अपना भरण-पोषण कर सकता है। कहीं घूम-फिर सकता है। अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है। पराधीनता के बेड़ियों से मुक्त व्यक्ति अपने मनपसंद सेवा क्षेत्र का चयन कर सकता है। किसी भी स्वतंत्र क्षेत्र या राष्ट्र में स्वतंत्र का पर्याय है पूर्ण स्वतंत्रता, लेकिन इस अवस्था में भी एक गंभीर विषय जन्म लेती है। जैसे कुछ भी करने की आजादी, लेकिन क्या उस स्वतंत्रता पर नियंत्रण रखना आवश्यक नहीं है। जिस प्रकार एक परिवार का सामान्य नियम होता है। ठीक वैसे ही स्वतंत्र क्षेत्र में नीति, नियम और विधान निर्मित होते हैं। स्वतंत्रता अपने जीवन को अपनी इच्छानुसार जीने का विकल्प है। जहाँ आप चाहते हैं, वहाँ रहने के लिए। जो पसंद हो वो खाने के लिए और यह जानने के लिए कि आपका दिल क्या चाहता है? इसका मतलब यह है कि स्वतंत्रता जीवन के विभिन्न पहलुओं पर लागू हो सकती है और स्वतंत्रता एक पूर्ण शब्द नहीं है। स्वतंत्रता सम्मान सुनिश्चित करने के बारे में है न कि स्वतंत्र रहने के लिए, ना कि प्रतिरोधात्मक विरोध में कुछ भी अनिष्ट करके स्वतंत्रता के बोध का पर्याय बनाने का प्रयास करना है।
          बहरहाल, हमारे भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार मूल अधिकारों में सम्मिलित है। इसकी 19, 20, 21 तथा 22 क्रमांक की धाराएँ नागरिकों को बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित छः प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करतीं हैं। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय संविधान में धारा 19 द्वारा सम्मिलित छह स्वतंत्रता के अधिकारों में से एक है।
            हालिया परिदृश्य में सशक्त लोकतंत्र की व्यवस्था में आलोचना और अभिव्यक्ति की आजादी महत्वपूर्ण और आवश्यक है। लेकिन राष्ट्रहित की प्रासंगिकता और राष्ट्र की सार्वजनिक और निजी तौर पर संरक्षण का दायित्व प्रत्येक नागरिक का होना अनिवार्य शर्त है। वर्तमान दौर में अभिव्यक्ति की आजादी के आड़ में कभी अवक्षेपण तो, कभी जातिवाद के मुद्दों में वर्णों का घर्षण या राजनीतिक दल-दल की राजनीति में देशहित के जगह स्वहित के संकरित विचारों से कहीं ना कहीं सुरक्षात्मक परिवेश का हनन किया जाता है। जो अभिव्यक्ति के आजादी के दायरे में नहीं है। अभिव्यक्ति की आजादी मिलना जरूरी है परंतु झूठे, कुतर्की और चालाक लोग इसी आजादी का जब विभिन्न माध्यमों से दुरुपयोग करते हैं। निश्चित ही समाज में असंतोष, तनाव और हिंसा का माहौल निर्मित होने लगता है। जो लोग ऐसा कर रहे हैं वे आने वाले समय में हमें उस ओर धकेल देंगे जहां किसी को कुछ भी बोलने की आजादी नहीं होगी। जबकी प्रयास यह होना चाहिए की अभिव्यक्ति के आजादी से नकारात्मक स्वरों को आग देने के बजाए सकारात्मक विचारों, बौद्धिक विचारधाराओं का संचार हो। लेकिन वर्तमान दौरान में किसे वक्त इन सब के विषय में चिंतन करने का, सभी अपनी डफली-अपना राग रोते जा रहे हैं। नैतिकता के गौरवशाली भवन अब ऐतिहासिक खंडहरों की भांति हो गई जहाँ लोग कुछ विशेष दिनों में पर्यटकों की तरह जाते हैं। 

लेखक 
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़