Friday, September 23, 2022

पारिस्थितिक तंत्र और ओजोन के मध्य अंतर्संबंधों की व्याख्या/ Interrelationship between ecosystem and ozone explained


                          (ज्ञान-विज्ञान)

ओजोन परत पृथ्वी पर जीवन रक्षक कवच की भांति है। ओजोन के खोज के संदर्भ में विभिन्न कहानी है। वास्तव में ये कहानियाँ या कहें भ्रांतिया ओजोन,ओजोन परत और ओजोन तत्व के संदर्भ में एक ही शब्द के इर्द-गिर्द बुनी गई वर्णकता का पर्याय है। 1839 में जर्मन वैज्ञानिक क्रिश्चियन फ्रेडरिक शॉनबीन अपने प्रयोगशाला में किसी तत्व पर काम कर रहे थे। प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक पदार्थ था। जिसके ऊपर शॉनबीन कुछ रासायनिक और विद्युत प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न गंध की उत्पत्ति की खोज कर रहे थे। ज्ञात तत्व को ओजोन नाम दिया गया।
                      ओजोन यानी  तीन ऑक्सीजन परमाणुओं के संघटनव से बना एक अणु है। जिसे अक्सर ओ 3 के रूप में संदर्भित किया जाता है। ओजोन का निर्माण तब होता है जब गर्मी और सूर्य के प्रकाश के कारण नाइट्रोजन के ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाएं होती हैं। जिन्हें हाइड्रोकार्बन भी कहा जाता है। यह एक हल्के नीले रंग की गैस है और इसमें तीन ऑक्सीजन परमाणु होते हैं। ओजोन, ऑक्सीजन का एक अपरूप है। ओजोन में तीखी गंध होती है, और इसका रंग ठोस और तरल रूप में नीला-काला होता है। यहाँ पर हम केवल ओजोन के तत्व या पदार्थ के बारे में चर्चा कर रहे हैं।
              बात सन्  1913 कि है जब ओजोन परत की खोज फ्रांस के वैज्ञानिक फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की। उन्होने बताया की समताप मंडल में ऑक्सीजन के अपरूप तीन परमाणु वाले ओजोन की एक परत है।इसे ओजोन परत या ओजोन लेयर का नाम दिया गया। ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल में अवस्थित एक परत है। जिसमें ओजोन गैस की अधिक सघनता ज्यादा होती है। ओजोन परत के कारण ही धरती पर जीवन संभव है। ये परत सूर्य के पराबैंगनी किरणों की 93-99 फीसदी  मात्रा को सोंख लेती है। पराबैंगनी किरण पृथ्वी पर जीवन के लिए हानिकारक है। इन किरणों से मनुष्यों में कैंसर होता है और  जानवरों की प्रजनन क्षमता पर भी इनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। समुद्र-तट से 30-32 किमी की ऊंचाई पर इसका 91फीसदी हिस्सा एक साथ मिलकर ओजोन की परत का निर्माण करती है।
          ओजोन परत के खोज के 7 वर्षों के पश्चात् वक्लोरोफ़्लोरोकार्बन गैस की खोज वर्ष 1920 में हुई। इसके दस वर्षों के उपरांत 1930 में अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. थॉमस मिजले के द्वारा अमरीकी कैमिकल सोसायटी के समक्ष क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन का पहला संश्लेषण प्रस्तुत किया गया। तत्कालिन समय में इसकी उपयोगिता ने सारे विश्व में तहलमा मचा दिया।जिसका उपयोग रेफ्रिज़रेटर, हेयरस्प्रे और डिऑडरेंट बनाने वाले प्रोपेलेंट में अधिकता से होता है। इसी दौर में 1950 में डीआर बेट्स और एम निकोलेट ने दुनियाँ का ध्यानाकर्षण इस ओर किया कि पराबैंगनी प्रकाश से वातावरण में मौजूद जलवाष्प के विघटन से जो रसायन बनते है, ओजोन परत क्षय में उनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण है।
               सन् 1985 में सर्वप्रथम ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक के ऊपर ओजोन परत में एक बड़े छेद की खोज की थी। कारणों के विश्लेषण से ज्ञात हुआ कि, 'जब समताप मंडल में क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणु ओजोन के संपर्क में आते हैं, तो वे ओजोन अणुओं को नष्ट कर देते हैं। समताप मंडल से हटाए जाने से पहले एक क्लोरीन परमाणु 100,000 से अधिक ओजोन अणुओं को नष्ट कर सकता है। ओजोन स्वाभाविक रूप से बनने की तुलना में अधिक तेज़ी से नष्ट हो सकती है।' शोधकर्ताओं ने ऐसे सबूत जुटाए जो ओजोन परत की कमी को क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) और समताप मंडल में अन्य हलोजन-स्रोत गैसों की उपस्थिति से जोड़ते हैं। ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (ओडीएस) सिंथेटिक रसायन हैं, जिनका उपयोग दुनिया भर में औद्योगिक और उपभोक्ता अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला में किया गया था। 
            वर्ष 1987 में सीएफसी गैस के उपयोग को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर आम सहमति बनी। इसके उत्पादन पर रोक लगाने के लिए मांट्रियल संधि की गई। जिसके परिणामस्वरूप साल 2010 में सीएफसी के उत्पादन पर वैश्विक स्तर पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। ओजोन के बिना पृथ्वी से पारिस्थितिकी का चक्र निश्चय ही बिगड़ सकता है। ओजोन परत की सुरक्षा के लिए कार्बन रहित सामग्रियों का प्रयोग एवं वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़