(राष्ट्रीय वन शहीद दिवस विशेषांक)
(अभिव्यक्ति)
बिश्नोई धर्म के श्री गुरु जम्बेश्वर भगवान् के श्रीमुख से निकले दोहे से आज के कथन की प्राथम्यता करना चाहुँगा। वे कहते हैं कि, 'उणतीस धर्म की आंकड़ी, हृदय धरियो जोय। जाम्भोजी जी कृपा करी नाम विश्नोई होय।।' बिश्नोई धर्म में बताए गए 29 कर्तव्यों के निर्वाहन करने वाले ही सच्चे बिश्नोई अनुयायी होते हैं। इन 29 कर्तव्यों में प्रमुख्यता से पर्यावरण और पशु-पक्षियों के संरक्षण के लिए सतत् रहा है।
11 सितंबर को सन् 1730 में देश में खेजड़ली क्षेत्र में हुए नरसंहार के इर्दगिर्द एक ऐतिहासिक घटना का जिक्र करना चाहूंगा। तत्कालीन राजस्थान के राजा महाराजा अभय सिंह के आदेश पर सैनिकों ने नए महल के लिए लकड़ी उपलब्ध कराने के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई चालु कर दिया। उस दौरान, अमृता देवी के रूप में पहचानी जाने वाली एक महिला ने पवित्र खेजड़ली के पेड़ के बजाय अपना सिर चढ़ा दिया। इस घटनाक्रम से गुस्साए गांव के लोगों ने इसका विरोध किया और पेड़ों की जगह अपने प्राणों की आहुति दे दी। उसका सिर काटने के बाद, सैनिकों ने अमृता के बच्चों सहित 350 से अधिक लोगों का वध कर दिया। इस नरसंहार को सुनकर हैरान राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को लोगों को मारना बंद करने का आदेश दिया। बिश्नोई समुदाय के लोगों से माफी मांगी गई । इसके साथ-साथ, राजा महाराजा अभय सिंह ने यह घोषणा कि, बिश्नोई गांवों के आसपास के क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई और जानवरों की हत्या नहीं होगी। बिश्नोई पेड़ों और जानवरों को नुकसान पहुंचाने से सख्ती से वर्जित व्रत के समान मानते हैं।
इसी घटना की ऐतिहासिक भूमिका जिसमें आम जनों ने अपने प्राणों की आहुति देकर वृक्षों के रक्षण करने वाले की स्मृति में प्रतिवर्ष ११सितम्बर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है। वर्तमान परिदृश्य में वन्य जीव-जंतू, वन संपदा के हनन में लिप्त तस्करों और शिकारियों द्वारा ड्यूटी के दौरान शहीद हुए वन रक्षकों की सलामी के लिए यह दिवस समर्पित है। जैसा कि नाम से पता चलता है, यह दिन उन लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने पूरे भारत में जंगलों, जंगलों और वन्यजीवों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। यह दिवस वर्ष 2013 में आधिकारिक तौर पर पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा घोषणा किए जाने के बाद अस्तित्व में आया। राष्ट्रीय वन नीति, 1988 का मुख्य उद्देश्य पर्यावरणीय स्थिरता और पारिस्थितिक संतुलन के रखरखाव को सुनिश्चित करना है जिसमें वायुमंडलीय संतुलन भी शामिल है जो सभी जीवन रूपों, मानव, पशु और पौधे के निर्वाह के लिए महत्वपूर्ण हैं। प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ की व्युत्पत्ति इस प्रमुख उद्देश्य के अधीन होनी चाहिए। भारतवर्ष में संघन वनों का राज्य जैसे मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, छत्तीसगढ़ सबसे हरे-भरे वन संपदाओं से परिपूर्ण राज्य हैं। जहाँ वन कर्मचारी लगातार निर्भयता से अपनी सेवा देते हैं। ये उनका दायित्व भी है और कर्तव्य भी की वे वन संपदा का संरक्षण करते हैं। वन शहीद दिवस विशेष में देश के कई शैक्षणिक समाज और संस्थान बड़े पैमाने पर जंगलों, पेड़ों और पर्यावरण की रक्षा करने की आवश्यकता पर लोगों में जागरूकता लाने के लिए कार्यक्रम और कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। शोधकर्ताओं का अनुमान पर आधारित आकड़े कहते हैं कि प्रतिवर्ष 15 अरब पेड़ काटे जाते हैं। मानव सभ्यता की प्राथम्यता के बाद से, पेड़ों की वैश्विक संख्या में लगभग 46 फीसदी की गिरावट आई है। दूसरी ओर, पौधों की आवश्यकता के बारे में लगातार जागरूकता लाने के कारण, यह अनुमान है कि दुनिया भर में हर महीने 158 मिलियन पेड़ लगाए जाते हैं। बहरहाल, वन्य परिधि में वन रक्षकों के निरंतर प्रयास का भागीरथ है की वन्य जीवों की संख्या पहले से विलुप्तप्राय से संरक्षण की स्थिति में है। छत्तीसगढ़ में फैले 55,547 वर्ग कि.मी. वन क्षेत्र में पूरी तत्परता से वन विभाग के रक्षक पूरे दमखम से अपनी सेवा देते है। वन के संरक्षकों को नमन करते हुए राष्ट्रीय वन शहीद दिवस की अद्वितीय कहानी वन के विशाल संसार में दबकर दफ्न रह जाती हैं।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़