(अभिव्यक्ति)
बांस को हिन्दी के शब्दकोश में तिनके की जाति का एक लंबा, सीधा, गिरहदार पौधा कहा जाता है। अनस्तित्व की ड्योढ़ी पर अपने अस्तित्व की तलाश करता बांस बरसो से अकेले बढ़ता चला जा रहा है। कभी लोगों ने लोकोक्तियों में बच्चों के बढ़ने और मूर्खता का पर्याय देकर कह दिया बांस जैसे बढ़ गया है। बांस जो कभी पेड़ो की सभ्य श्रेणी में नही आता लेकिन वैश्विक स्तर पर अपनी अलग ही पहचान रखता है। भूमि की गहराई,पानी की थाह और बिजली के तारों को टांगते बांस की उपयोगिता तो वस्तुत: है,लेकिन पहचान लगभग शून्य ग्राही दिखाई देता है। बेचारे बांस को घास की श्रेणी में पटक दिया गया लेकिन जरा भी विद्रोह भावना से पृथक बेजुबान बांस कुछ नहीं बोलते है। कभी नाबालिक अवस्था में तोड़कर दो चार छेद क्या कर दिये बांसुरी कहलाने लगे, बालिग हुए तो बांस वाद्य बनाकर हवा में धून तरासे गए। इनपे बांस गीत लिख, गाए और सराहे गए। मगर ये बांस कुछ नहीं बोलते हैं। इन्हें सबसे सर्वाधिक काटा गया,कभी कुल्हाड़ी की चोट से तो कभी मोड़ कर रटाक करती आवाज में वैमनस्य प्रदर्शन के साथ तोड़ दिया गया। कभी नाले में सड़ते या कभी दो फाड़ हुए किस कोने में फेंक दिए गए है। कभी किसान बांस से छप्पर बनाते या फिर मजदूर को सीढियां का सहारा देते हैं। बांस मांझी के हाथों में पतवार बनते नदी पार कराते या मशीन में मलिन होकर पेपर के सहारे नवाक्षरों के लिए पन्नों की भूमिका में समर्पित हो जाते हैं। बेचारे बांस जाने कितने काम आते है, लेकिन कभी पेड़ नहीं कहलाते हैं।
बांस इस ग्रह पर सबसे तेजी से बढ़ने वाला पौधा है। यह 24 घंटे की अवधि में 47.6 इंच की अद्भुत वृद्धि दर्ज की गई है। वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के संतुलन में बांस एक महत्वपूर्ण तत्व है। बाँस का एक बाग पेड़ों के बराबर स्टैंड की तुलना में 35% अधिक ऑक्सीजन छोड़ता है। बांस के पौधों से उन लोगों के लिए सौभाग्य, धन और भाग्य लाने की उम्मीद की जाती है जो उन्हें घर और काम पर रखते हैं। इन पौधों को घर पर या काम पर रखने के लिए आदर्श स्थान धन भाग्य के लिए दक्षिण पूर्व में और पूर्व में अच्छे स्वास्थ्य के लिए हैं। वास्तु के अनुसार बांस के पौधे रखने के बहुत सारे फायदे हैं।
बांस बाजार के उत्पादों की विविधता में जीवाश्म तेल आधारित उत्पादों, रसायनों और ईंधन की जगह ले सकता है और इस प्रकार जैव आधारित अर्थव्यवस्था को साकार करने की कुंजी रखता है। बांस लगभग सभी उपयोगों में लकड़ी की जगह ले सकता है और इस प्रकार दुनिया के जंगलों पर दबाव कम करने में मदद करता है। बांस के विकास से प्रदूषण कम होता है। इसके पौधे जलवायु में 35% तक कार्बन डाइऑक्साइड को कम करते हैं और अधिक ऑक्सीजन देते हैं। बाँस की जड़ें कटाव को नियंत्रित करने में मदद करती हैं क्योंकि यह जल अवरोध बनाती है; विकसित देश बांस को अपनी फसलों और गांवों को लगातार धोने से बचाने के लिए एक रक्षात्मक घटक के रूप में उपयोग करते हैं।देश का कुल बाँस धारण करने वाला क्षेत्र 15.69 मिलियन हेक्टेयर अनुमानित है। मध्य प्रदेश में बांस का अधिकतम क्षेत्रफल 1.8 मीटर है। हेक्टेयर के बाद महाराष्ट्र 1.6 मीटर हेक्टेयर, अरुणाचल प्रदेश 1.5 मीटर हेक्टेयरऔर ओडिशा 1.2 मीटर हेक्टेयर का स्थान है। वैश्विक बांस बाजार का आकार 2020 में 53.28 बिलियन अमरीकी डॉलर था और 2021 से 2028 तक 5.7% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर में विस्तार होने की उम्मीद है।असम भारत में सबसे अधिक बांस का उत्पादन करता है क्योंकि इसके अधिकांश जंगल विभिन्न प्रजातियों के बांस के बागानों से थर्रा रहे हैं।
बड़ी ही तेजी से बड़ने वाली घास की श्रेणी में रखे जाने वाले बांस से ना सिर्फ जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में मदद मिल सकती है। बल्कि यह ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में भी मददगार साबित होता है। नेशनल बंबू मिशन की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम का मकसद लोगों को बांस को विभिन्न रूप से प्रयोग के लिए उत्साहित करना है। जो पर्यावरण के लिहाज से बेहतर सहयोगी की भूमिका में हैं। बांस जिनके कई व्यापारी उपयोगिता के परिधि में कई लघु और वृहद उद्योग आधारित हैं।जो अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से वैश्विक रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़