(अभिव्यक्ति)
वैदिक युग के बाद से नारी के स्वतंत्र अस्तित्व को कभी स्वीकार नहीं किया गया। ऐसी परिस्थितियों और विधान बनते चले गए कि वह पिता-पति और पुत्र के अधीन रहने को बाध्य रहे। स्त्री के लिए पति का स्थान ईश्वर से ऊँचा है पति को परमेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। जिसकी चरणदासी बन आजीवन सेवा करना ही स्त्री का परम धर्म बनने के बनाने का प्रयास आज भी निरंतर जारी है। संभवतः नारी की दुर्दशा देखकर ही महाकवि मैथिलीशरण गुप्त ने पुरातन के गौरवशाली इतिहास तथा वर्तमान में नारियों की दुर्दशा देखकर ही लिखा कि,
अबला जीवन हाय! तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।।
वर्तमान समय में भारतवर्ष में महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बन गया है। देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर काफी हद तक बढ़ी है। महिलाएं अपने घरों से बाहर निकलने से पहले दो बार सोचती हैं, खासकर रात में। दुर्भाग्य से, यह हमारे देश की दुखद वास्तविकता है जो निरंतर भय में रहती है। भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए हैं। हालांकि, लोग इस नियम का पालन नहीं करते हैं। वे हमारे देश की वृद्धि और विकास में योगदान करते हैं। फिर भी वे डर के साए में जी रहे हैं। महिलाएं अब देश में सम्मानित पदों पर हैं, लेकिन अगर हम पर्दे के पीछे देखें तो, हम देखते हैं कि उनका शोषण किया जा रहा है। हर दिन हम अपने देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले भयानक अपराधों के बारे में पढ़ते हैं जैसे कि यह एक आदर्शता की बात हो।
किसी भी राष्ट्र के लिए नागरिक सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है। विषय जब राष्ट्र की आधी आबादी की गरिमा से संबद्ध हो तो मामला और भी विचारणीय हो जाता है। आजादी के 75वें वर्ष में पदार्पण कर चुकी व्यवस्थाएं नारी-सुरक्षा को लेकर कितनी संजीदा हैं। इसका सहज अनुमान मीडिया, समाचारपत्रों में अक्सर सुर्खियां बन कर उभरने वाले दुष्कर्म के प्रकरणों से लगाया जा सकता है। दिन प्रति दिन बढ़ते महिलाओं पर हिंसा, शोषण, अपराध, बालात् हिंसा के मामलों का राष्ट्रीय स्तर पर सूचीबद्ध किया जाए तो निश्चय ही हमारे रौंगटे खड़े हो जाएंगे। यह शर्मनाक स्थिति है और चिंतन का विषय है कि नैतिकता में विश्वगुरु रहे भारत को 2018वर्ष में को जारी थॉमसन रॉयटर्स फाऊंडेशन की एक रिपोर्ट बताती है की महिलाओं के लिए सुरक्षा के लिहाज़ से चिंताजनक स्थान घोषित किया गया। बीते कुछ वर्षों से दुष्कर्म मामलों का आंकड़ा तेजी से बढ़ी है। पिछले 10 वर्षों के दौरान शील भंग के 4 लाख सत्तर हजार से अधिक, महिला अपहरण के तीन लाख पंद्रह हजार, बलात्कार के दो लाख तिरालीस हजार तथा महिला दुव्र्यवहार के एक लाख से अधिक अनुमानित मामले दर्ज किए गए। वहीं अनेक मामलों में रिपोर्ट दर्ज ही नहीं हो पाई, औसतन प्रति मिनट कोई न कोई स्त्री यौन हिंसा की शिकार बनती है। यह राष्ट्र के सभी नागरिकों के लिए चिंता का विषय है।
स्त्री के गरिमा का किसी भी स्तर पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हनन अमानवीय कृत्य की श्रेणी में आता है। इस संदर्भ में अनेक कानून बनाए और लागु भी किए गए हैं। परंतू, कितने भी कानून बने हों, घटनाओं की पुनरावृत्ति स्पष्ट संकेत है कि अब तक कोई भी कानून इतनी कड़ाई से क्रियान्वित नहीं हो पाया कि नारी समाज में निर्भीकता से गरिमामय जीवन जी पाए। महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आम लोगों को जागरूक और हिंसा के अवरोधक बनकर, निवारक उपाय कर सकता है। महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाए जाने चाहिए। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के संबंध में कानूनों को और सख्त बनाया जाना चाहिए। पुरुषों को कम उम्र से ही महिलाओं का सम्मान करना और उनके साथ समान व्यवहार करने का नैतिक ज्ञान और संस्कार घर की पहली पाठशाला से दिया जाना आवश्यक है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़