(अभिव्यक्ति)
वर्तमान दौर में प्रमोशन या प्रचार का असर इतना है की मिट्टी को भी सोना बना देने वाली आकाशीय पुष्प खिलाने का माद्दा मार्केटिंग के कुशल पेशेवर रखते हैं। वे प्रारंभिक तौर पर तो 4-पी यानी प्रॉडक्ट, प्राइस, पापुलेशन और प्रमोशन के समेकित फार्मूले पर कार्य करते हैं। जिसमें प्रॉडक्ट कैसा भी क्यों ना हो, प्रमोशन अगर दमदार है तो ब्रांड बन ही जाती है। प्रमोशन का नियम तो यह कहता है की पहले ग्राहक का ध्यान खींचों यानी "ऐसी वाणी बोलिये, की सब सम्मोहित होय। जो ना चाहे वो खरिदे, जो चाहे उसकी डिमांड दोगुनी होय।" इसी विचार धारा ने जन्म दिया बेमतलबी मगर लोगों को उत्सुक और आकर्षित करती टैग-लाइन के द्वारा प्रचार के समीकरण तो तेज किया जाये। इसके साथ नग्नता ओढ़ती मानवीय काया का सौन्दर्यबोध कराती आकर्षित या कहें नग्नता के घणी फ्लेवर से कस्टमर के ब्रेन वास करने की क्षमता दोगुनी हो जाती है। इसी स्ट्रेटजी ने मार्केटिंग को बाजारूपन की हदें पर कर दी है।
मार्केटिंग या प्रमोशन के लिए बेहतर विकल्प कौन-कौन से हैं? पहला जो आधारभूत हों, तो वह है टीवी, रेडियो एवं पारंपरिक प्रचार शैली, लेकिन एक और संसाधन है जहाँ प्रमोशन या प्रचार के लिए कोई रोक टोक नहीं है। चुकीं बाजार का मूड भी कहता है की आवाज वहीं तेज होनी चाहिए जहाँ भीड़ ज्यादा हो और बढ़ने की उम्मीद हो। बहरहाल, उस संसाधन का नाम है इंटरनेट, जहाँ तेजी से यूजर्स के आकड़ों में इजाफा दिनों दिन हो रहा है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट बताती है कि, 'वर्ष 2022 के प्रारंभिक महिने यानी जनवरी में भारत में 626 मिलियन इंटरनेट यूजर्स दर्ज किए गए। कहने की तात्पर्य है की भारत की आबादी का कुल 47 फीसदी, यानी एक बड़ा हिस्सा मोबाइल में इंटरनेट यूज करता है।' इसके कारणों में से एक कारण है कि, कोविड-19 के बाद से शिक्षा प्रणाली में बड़े बदलाव के दौर में आनलाइन लर्निंग और इंटरनेट के माध्यम से शिक्षा की अनिवार्यता ने गरीब से गरीब पालकों, अभिभावकों को अपने बच्चों तक स्मार्टफोन की पहुँच बनानी ही पड़ी। कुछ तो पालक ऐसे भी रहे जिनके परिवार का मासिक खर्च के बराबर स्मार्टफोन की रेंज थी, लेकिन बच्चों के भविष्य के लिए आधा पेट काट कर बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन दे दिया गया। बच्चे, किशोर और युवा जो भावी कल के नागरिक बनेंगे अब उनके हाथ में बे-लगाम इंटरनेट पहुँच गया। और आनलाइन लर्निंग के बाद इंटरनेट गेमिंग,चैट,सोशलमीडिया से वाया होते हुए प्रमोशनल विडियो, लिंक्स और ग्राहक खींचों मानसिकता के लिए संमोहन के टैग लाइन इन्ही युवाओं तक पहुँचें। किशोर-युवावस्था वह अवस्था है जिज्ञासा तेज होती है। वह जानना चाहता है की आखिर उस पार क्या होगा। तो वो ऐसे विज्ञापनों के फेर में पड़ ही जाता है। चूंकि इंटरनेट में प्रचार की कोई बंदिशे नहीं है तो वह हर यूजर्स को वयस्क मानकर प्रचारक वस्तुएं प्रस्तुत करता है। यांत्रिकी को थोड़ी पता है की बच्चा या बड़ा कौन उसे एक्सेस कर रहा है। इसी परिपाटी के फलन इंटरनेट में अडल्ट कंटेंट के लिए मांग युवाओं में बढ़ने लगती है। अब भारत में पोर्नोग्राफी तो बैन हैं लेकिन आज के परिदृश्य में अंग-तरंग दृश्यों के लाग-लपेट में प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री जिसे सेंसर ए कैटेगरी देकर 18+ के समीकरण से देखती है। वो भी तो इन युवाओं के दिमाग से खेलने के लिए काफी है। ऐसा नहीं है की युवा पीढ़ी में किशोर या युवा नवयुवक ही इंटरनेट के लती हो रहे हैं। बल्कि चौकाने वाली बात है की किशोरी, और नव युवतियों में भी इंटरनेट की लत बढ़ रही है।
लाइव मिंट डॉट कॉम की एक रिपोर्ट कहती है कि, 12 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के एक्टिव इंटरनेट यूजर्स की संख्या अब 59.2 करोड़ हो गई है। वर्ष 2019 के मुकाबले इसमें 37 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। ग्रामीण इलाकों में एक्टिव यूजर्स 45 फीसदी बढ़े हैं तो शहरों में यह तेजी 28 फीसदी रही है। पिछले दो वर्षों में महिला इंटरनेट यूजर्स की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है तथा इस मामले में उन्होंने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है। दो सालों में इंटरनेट यूज करने वाली महिलाओं की संख्या में 61 फीसदी का उछाल आया है, जबकि पुरुषों की संख्या इस अवधि में केवल 24 फीसदी बढ़ी है। यानी इटरनेट के गुलाम होती युवा पीढ़ी चिंता का सबब है। ये भीड़ ऐसी युवाओं की है जो हमारे कल की भावी पीढ़ी है। इंटरनेट की उपयोगिता तो अनिवार्य है। लेकिन इंटरनेट को लत नहीं जरूरत की तरह उपयोग किया जाये, तो यह बेहतरीन संसाधन है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़