Tuesday, August 30, 2022

सरकारी तंत्र में विलुप्ति के कगार पर लाइब्रेरियन नामक जीव / A creature called librarian on the verge of extinction in the government system


                     (अभिव्यक्ति)

पारिस्थितिकी या इकोलॉजी शब्द का प्रथम प्रयोग जर्मन जीव वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैकल ने सन् 1866 में अपनी पुस्तक 'जनरेल मोर्पोलॉजी देर ऑर्गैनिज़्मेन' में किया था। वहीं ब्रिटानिका पारिस्थितिक तंत्र को परिभाषित करते हुए कहती है, 'पारिस्थितिकी तंत्र ,जीवित जीवों का संरचनात्मक संबंध,उनका भौतिक वातावरण और विभिन्न घटकों के बीच एक विशेष इकाई में उनके सभी अंतर्संबंध हैं।' यानी एक पारिस्थितिक तंत्र में निहित समस्त कारकों की आवश्यकता महत्वपूर्ण और स्थान निश्चित होता है। बहरहाल, आपको प्राणीशास्त्र या वनस्पति शास्त्र के विस्तृत जाल में फसाने का मेरा उद्देश्य नहीं है। मेरा लक्ष्य है यह बताना की प्रत्येक तंत्र में हर स्तर पर जो जीवों की अवस्थिति निश्चित है, उसकी उपयोगिता, प्रासंगिकता और महत्ता पर प्रकाश डालने का प्रयास है।
             पुस्तकालय जो बौद्धिक और सामाजिक क्रियाओं की अभिवृद्धि का स्थल होता है। इस केन्द्र से पाठक के अनुभावों का ज्ञान, मानवीय रूप से बदलता है। एक पुस्ताकालय नवीनतम ज्ञान का खोज केन्द्र है। वास्तव में पुस्तकालय एक बौद्धिक प्रयोगशाला है, जहाँ हम अपनी बुद्धि के विकास हेतु सत्प्रयास करते हैं। वर्ष 2017 की नेशनल अचीवमेंट सर्वे रिपोर्ट कहती है कि, 'जो विद्यार्थी विद्यालय में पुस्तकालय का उपयोग करते हैं या जो कहानी की पुस्तकें पढ़ते हैं उनमें सीखने की क्षमता अधिक होती है।' कहने का तात्पर्य है की स्कूल शिक्षा में प्रारंभिक स्तर से ही पुस्तकालय का स्थान महत्त्वपूर्ण होते जाता है। यहीं से विद्यार्थियों में स्वाध्यायन की आदत को विकसित करने के लिए पुस्तकालय किसी बौद्धिक प्रयोगशाला से कम नहीं है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसार विद्यालयों में पुस्तकालय खोलने पर विशेष जोर दिया गया है। और डिजिटल लाइब्रेरी को बढ़ावा देने की बात कही गई है। शिक्षा व्यवस्था में पुस्तकालय को किसी भी शिक्षण संस्थान का रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। यानी शिक्षा संस्थान की उत्कृष्टता का परिमाण पुस्तकालय के सर्वनिष्ठ संचालन पर निर्भर करता है।
            पुस्तकालय का महत्व तो हमने समझ लिया आईये अब पुस्तकालय के स्थापना और पेशेवरों के लिए तैयार होने वाले युवा फौज की बात करें। विद्यालयों एवं विभिन्न सूचना केन्द्रों में पुस्तकालय का सृजन एक बड़ा विषय है। कई भारत वर्ष के समस्त राज्यों में यह विडम्बना है की केन्द्रीयकृत स्कूलों के अलावे राजकीय बोर्ड से संचालित अधिकांश प्लस टू विद्यालयों में पुस्तकालय भवन की अवधारणा ही नहीं है। जहाँ पुस्तकालय और पुस्तकालयाध्यक्ष के पद सृजित है। वहाँ बरसो से इन पदों पर भर्ती नहीं हुआ है। 10-15 वर्ष पूर्व भर्तियों में चयनित पुस्तकालय या प्रतिनियुक्ति के आधार पर कुछ पद तो भर दिए गए, लेकिन स्वीकृत पदों और कार्यरत् कार्मिको के गणित को संभवतः सरकारी तंत्र के लिए कोई विशेष बात नहीं लेकिन लाइब्रेरी के लिए प्रोफेशनल तैयार करने वाले खासकर नीजी संस्थान इसी अंतर को बखुबी समझने लगे हैं। जब-जब लाइब्रेरियन भर्ती की हवा चलती है। तब-तब ऐसे संस्थान ऐसे पाठ्यक्रमों की शिक्षण शुल्क में वृद्धि कर देते है। ऐसे ही कई प्रोफेशनल तैयार तो हो रहे हैं, लेकिन भर्तियो के अभाव में इनकी प्रतिभा केवल दीवार पर शोभायमान है। जो बताती है फलाँ ने एमलिब भी किया है।
         ज्ञातव्य है की शिक्षा संस्थाओं के लिए या कहें शिक्षा के पारिस्थितिक तंत्र में पुस्तकालय का वातावरण और कुशल पेशेवरों की नितांत आवश्यकता है। ज्ञान के संवर्धन के साथ-साथ कुशल पेशेवरों की उपस्थिति सूचना विस्फोट की स्थिति को नियंत्रित और सुनियोजित करने के लिए आवश्यक है। लेकिन वर्तमान स्थिति में सरकारी स्कूलों में पुस्तकालय कार्मिकों, पेशेवरों की भर्ती का सूखा और कार्यरत पदों के गणित का गिरता ग्राफ चिंता का सबब है। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़