(अभिव्यक्ति)
शफदर हासमी साहब की कविता 'किताबें करती हैं बातें' को याद करते हुए विषय की प्रासंगिकता को प्राथम्य देने का प्रयास करता हूँ। बचपन की यादों में किताबें करती हैं बाते बीते जमानों की हमनें अवश्य पढ़ा है। किताबों के परिचय के संदर्भ में यह कविता गागर में सागर की अनुभूति वाली है। पुस्तकें जो बुद्धिजीवी के लिए एक अच्छा मित्र है। इस दोस्ती का नींव कितने गहराई पर होना चाहिए यह आपके विश्वास और पढ़ने के लगन पर निर्भर करता है। प्रत्येक किताब की अलग कहानी होती है। किसी किताब में विज्ञान के अनुसंधान के अमर चित्र हो सकते हैं। किसी किताब में भावनाओं के सागर शब्दों के गागर में हो सकते हैं। किताबों के पठन की यात्रा का चयन आपका होना आवश्यक है। जैसे किसी कहानी में डुबना, पढ़ना और कल्पना करना कि उसके पात्र के चरित्र के अनुसार या तो कोई चेहरा बुनते हैं। या फिर किसी व्यक्ति विशेष के अभिव्यक्ति के आधार पर उस पात्र का चित्रांकन कर देते हैं।
पुस्तक के कहानी से जुड़ाव की स्थिति आपको कल्पना के दुनिया में ले चलता है। बातें अगर इतिहास की हो तो, घटनाओं का सारा ताना बाना किताबों के पन्नों से निकल काल्पनिकता के उच्च श्रृंग तक हमारे मनःपटल के अंतर्मन में चलते रहता है। यदि बातें आधुनिकता, नुतन विचारों पर हो तो निश्चित ही आपको भावी दर्शक बनाने की फैंटसी देता है। जैसे हमनें भविष्य देख लिया हो। वास्तव में इन किताबों में लेखक का दृष्टिकोण होता है जैसे किताबों को हम पढ़ना प्रारंभ करते हैं। वैसे ही हमारा जुड़ाव लेखक के विचारों से होता है। यानी उसके विचारों की मित्रता हमारे विचारों से होती है। इस टकराव के दौरान हम इन दोनो विचारों से मिल जाते हैं। ये विचार बंधन जीतना ही बेजोड़ बनेगा। कहानी के प्रारंभ से लेकर अंतिम तक के सफर का रोमांच बना और बढ़ते रहेगा।
किताबें उन ज्ञान का संचय ही जिनका उपभोग पाठक अपने पठन यात्रा के दौरान करता है। इस यात्रा के दौरान पूर्व या भावी घटनाओं के परिवर्तन के दौर में लेखक के अनुभवों/परिकल्पना का अनुसरण करते हुए जब बाहरी दुनिया में प्रासंगिकता का तलाश करते हैं। तो निश्चय ही कई उदाहरण जीवंत हो जाते हैं। सारांश में कहें तो पाठक पुस्तक के लेखक के विचारों से जुड़कर अनुभव रूपी व्याख्या को ज्ञानार्जन करता है। यही ज्ञानार्जन की भूमिका एक अच्छी मित्रता में बदल जाती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो भाग-दौड़ भरी जिंदगी में किताबें तनाव दूर करने में भी मददगार साबित होती हैं। - किताबों को पढ़ने से शब्द भंडार बढ़ता है। रोजाना किताब पढ़ने से लेखन भावना पैदा होती हैं और लेखन क्षमता भी बढ़ती है।
वर्तमान के आपाधापी वाली जिंदगी में कुछ तो पाठक कमतर हुए हैं,लेकिन खत्म नहीं हुए हैं। नवीन युवा पीढ़ी के पौध को पठन कौशल के लिए अवश्य प्रेरित करना चाहिए। अक्सर ये युवा पौध बढ़ते डिजिटलीकरण के चकाचौंध में वर्चुअल दुनिया में खोकर वास्तविक मूल्यों से हाथ धो बैठ रहे हैं। आज के बच्चों को टचस्क्रीन वाली जींदगी ज्यादा प्यारी लग रही है। लेकिन रिडिंग हैबिट्स छूट रहा है। बहरहाल, समय के साथ-साथ पुस्तकों का भी अपडेट होना ते निश्चित है। पुस्तकें अब डिजिटल हो रही है, अब यही पुस्तकें अपने पाठकों से मित्रता के लिए आतुर है। सवाल यह है कि क्या आप पुस्तकों से दोस्ती करना चाहते हैं?
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़