Tuesday, August 30, 2022

घरेलू हिंसा की आग में जलती नारी की स्थिति / Status of woman burning in the fire of domestic violence




                       (अभिव्यक्ति

संबंधों के प्रगाढ़ता की आधारशिला विश्वास और ईमानदारी के गठबंधन से संभव होता है। और जब बात विवाह संबंधों की हो, तो पति-पत्नि के बीच के रिश्तों की गहराई विशेषता यह होती है की दोनों में प्रेम एवं एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना होती है। वर्तमान परिदृश्य में वैवाहिक संबंधों में पारदर्शिता से कहीं अधिक प्रत्यास्थता का बोध होने लगा है। सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में विभिन्न प्रकार के डोपिंग, परिवर्तन, अंतर्संग्रहण की प्रक्रिया से पारिवारिक संबंधों में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। जहाँ संयुक्त से एकल परिवार की भूमिका के इर्द गिर्द जीवन के भौतिक सुख के प्रति लोलुपता और विलाशता की चाह ने मनुष्य को संबंधों में फायदों के तलाश करने की अभिवृत्ति बढ़ा दी है। संभवतः इसी कारणों में वैवाहिक संबंध के गठबंधन के अवसर पर उपहार या दहेज के पर रिश्तों के मोल भाव का समीकरण तैयार कर लिया जाता है। एक ओर जहाँ दहेज प्रथा को हम कानूनी दायरे में जकड़ कर खत्म करने की बात करते हैं। वहीं दूसरी ओर बेटी के लिए उपहार कह कर इसी प्रथा के बबुल को पानी देने का प्रयास कर रहे हैं। 
          अधिकांश घरों में विवाह के उपरांत विवादास्पद स्थितियों में नारी हिंसा, घरेलू प्रताड़ना इत्यादि के मामलों में धन, वस्तू या दहेज के नाम पर विवाद की स्थिति होती है। वहीं दूसरी ओर वैवाहिक दम्पति के बीच कलह का कारक अधिक धन की चाह ही होती है। जिसके पूर्ति के लिए पत्नि के पिता के घर से डिमांड रखी जाती है। समय पर यदि मांगें पूरी होती है तो ठीक अन्यथा मांग अनुरुप धन नहीं मिलने से खिझ की भरपाई नारी को शारीरिक यातनाओं और वेदनाओं के आधार न्यायोचित समझा जाता है। 
          गंभीर विषय यह भी है कि यदि स्त्री-पुरुष में विवाद की स्थिति में तथाकथित समाज के ठेकेदारो पुरुषप्रधान मानसिकता के सहयोगी साबित होते हैं। जहां समझाइश के नाम पर नारी के अभिव्यक्ति स्वरों को तोड़कर पारिवारिक लोगों को राजी-खुशी से रहने की हिदायतें भी थमा दिए जाते हैं। दाम्पत्य जीवन में घरेलू हिंसा के पहलू में यौनाचार एवं अतृप्त भावना भी एक कारक है। शारीरिक अक्षमता, भौतिक विषमता के आधार पर विभिन्न लोगों में यौनाचार के संदर्भ में अरूचिकर भावना भी होती है। यौनाचरण की पूर्ति नहीं होने की स्थिति में पति-पत्नि के बीच आपसी कलह की छद्म स्थिति निर्मित होती है। जो आगे चलकर घरेलू हिंसा का कारण बनती है।
           भारतवर्ष में घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 को संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है। जिसका उद्देश्यिका घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है और पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता उपलब्ध कराना है। यह 26 अक्टूबर 2006 को लागू हुई। उल्लेखनीय रूप से घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के अनुसार, एक पीड़ित व्यक्ति या एक सुरक्षा अधिकारी या सेवा प्रदाता सहित पीड़ित व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक या अधिक राहत के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। लेकिन कहीं कहीं ऐसे नियमों की प्रासंगिकता से अधिक नारी के लिए हथियार और पुरुष के लिए बेड़ियों का भी काम करती है। कुछ ऐसे भी मामले सामने आये है जिनमे घरेलू हिंसा अधिनियम के उपयोग से नारी पुरुष को प्रताड़ित कर सकती है। बहरहाल, वर्तमान समय में एेसे मसलों के अलावे कई मामले रोज देखने को मिलते हैं। जहाँ पुरुष अपनी वर्चस्वता के आड़ में महिलाओं के साथ चार दीवारी के अंर्तगत बरबरतापूर्ण व्यवहार करता है। समय के साथ-साथ महिलाओं में जागरूकता आ रही है, और वो अपने अधिकारों के प्रति सजग हो रहे हैं। यह प्रशंसनीय विषय है। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़