(मंथन)
जीवन के विभिन्न पहलु, काल एवं प्रत्येक क्षण में कोई ना काई नव स्मृति सृजित होती है। यह स्मृति यदि रोचक हो तो तर्क और यदि अनुभवात्मक हो तो अनुभव-सार के रूप में संकलित होता है। इन अनुभवों को कहने के तरिके में यदि रोचकता हो या गद्यकाव्य के माध्यम से सृजन हो, तो यह अनुभव कहानी हो सकती है। समय के प्रत्येक काल में कहानियों के इर्दगिर्द कई परिदृश्य खींचे जाते हैं।
मुंशी प्रेमचन्द जी कहानी को परिभाषा के परिधि में गढ़ते हुए कहते है-, ‘‘गल्प (कहानी) एक ऐसी गद्य रचना है, जो किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करती है । कहानी के विभिन्न चरित्र, कहानी की शैली और कथानक उसी एक मनोभाव को पुष्ट करते हैं । यह रमणीय उद्यान न होकर, सुगन्धित फूलों से युक्त एक गमला है।’’
सारांश में कहें तो अतीत के अनुभवों में कहानियों के पीछे अनुभवात्मक तर्क एवं वैज्ञानिकता का बोध होना आवश्यक है। किसी कहानी का प्रारंभ सुख से होकर विभिन्न पहलुओं और चक्रों के बीच गुजरते जाते हैं एवं अंत में सुखांत या दुखांत के सागर में मिल जाते हैं। इसी प्रकार के उदाहरणों में विशाल वृक्ष के शाखाओं के टकराव की कहानी जिसमे इतिहास रचा दिया। संभवतः हर कहानी के पीछे एक जीवंत क्षण जरूर रहता है। जिसे कहने के तरीकों से अलग अलग प्रकार से कहा जा सकता है। कभी तर्कसंगत, कभी विरोधाभास, कभी समर्थन या कभी केवल उपेक्षा के माध्यम से कहानी में कई पात्र गढ़े जाते हैं। ये पूर्णतः काल्पनिक तो हो सकते हैं। लेकिन इनका रवैय्या सृजनकार के परिवेश में से जन्मता है। उद्देश्य केवल सीमांत रहता है जो कहानी के कई पड़ावों, कई उतार-चढ़ाव के समाहित करे पाठक, दर्शक या श्रोता के मन में शनैः-शनैः परिणामस्वरूप प्रदर्शित होता है।
जैसे गीता के इस श्लोकानुसार, 'पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्। व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥' जहाँ युद्ध स्थल पर सैन्य निरिक्षण के दौर में तृतीय श्लोक अपनो के शक्ति और बल को संकलित कर उन्हे वृहदाकार के व्यूहों के संदर्भ में तर्क दिये गए हैं। वस्तुतः यह युद्ध वैश्विक स्वरूप में बेहद विशाल रहा है। लेकिन यही युद्ध कोई भाषाओं, क्षेत्रों और राज्यों के लिए पहले उदाहरण, फिर अनुभव, फिर कहानियों और किवदंतियों के रूप में कहीं न कहीं संकलित रहा है। ऐसे ही कई कहानियाँ जो गढ़े गए, वे इतिहास के पन्नों का वास्तविक रहस्य भी है। जो समय के साथ, कहने वाले के कथनों में चलकर काल्पनिकता के चादर ओढ़ गया। लेकिन वास्तव में कहानी सिर्फ कल्पना के सागर का निचोड़ नहीं है। यह धरातलीय अतीत के गौरव का, अनुभव का एक सर्वनिष्ठ उदाहरण है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़