(अभिव्यक्ति)
हमारी भारतीय संस्कृति में कुछ ग्रंथों के अनुसार मां शब्द की उत्पत्ति गोवंश से हुई। गाय का बच्चा बछड़ा जब जन्म लेता है, तो वह सर्वप्रथम अपने रंभानें में जो स्वर निकालता है वह मां होता है। तात्पर्य यह है कि बछड़ा अपनी जन्मदात्री को ही मां के नाम से पुकारता है। इस प्रकार जन्म देने वाली को मां कहकर पुकारा जाने लगा। शिशु के जन्म के प्रारंभिक स्थिति से जन्म तक शिशु का पालन मां करती है। इस पृथ्वी पर जीवन का नवांकुरण के लिए माँ ही वह माध्यम है। जिससे पृथ्वी पर जीवन आधारित है। इस धरा पर समस्त जीवों में समरूप संततियों के संवर्धन और विकास की शक्ति मां है। जन्म के समय माँ का पहला दूध शिशु के लिए अमृत है। जिसे सुपरफुड की संज्ञा भी दी जा सकती है। शिशु के लिए प्रारंभिक अवस्था में स्तनपान बहुत महत्वपूर्ण होता है।यह उसके संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। शारीरिक विकास के साथ-साथ रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नवजात बच्चे में नहीं होती है। यह शक्ति माँ के दूध से शिशु को सुरक्षा कवच की भांति प्राप्त होती है। माता के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्त्व होता है। यह बच्चे की आंत में लौह तत्त्व को पृथक करने या रोकने में सक्षम बनाता है। जो लौह तत्त्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु उत्पन्न की अवस्था से रहित करने में उत्तरदायी है। माँ के दूध से आए साधारण जीवाणु बच्चे की आंत में पनपते हैं और रोगाणुओं से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें बढ़ने से रोकते और नष्ट करने में सहायक होते हैं। माता के आंत में वातावरण से पहुँचे रोगाणु, आंत में स्थित विशेष भाग के संपर्क में आते हैं, जो उन रोगाणु-विशेष के ख़िलाफ़ प्रतिरोधात्मक तत्त्व बनाते हैं। ये तत्त्व एक विशेष नलिका थोरासिक डक्ट से सीधे माँ के स्तन के जरिये बच्चे के शरीर में पहुँचते हैं। शिशु इस तरह माँ का दूध पीकर सदा स्वस्थ रहता है। माँ का दूध जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त रूप से पीने को नहीं मिलता, उनमें बचपन में शुरू होने वाली मधुमेह की बीमारी का खतरा अधिक बना रहता है। ऐसे बच्चों में बुद्धि का विकास दूध पीने वाले बच्चों की अपेक्षाकृत कमतर होती है। अगर बच्चा समय से पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो, तो उसे बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंटोरोकोलाइटिस हो सकता है। अगर गाय का दूध पीतल के बर्तन में उबाल कर दिया गया हो, तो उसे लीवर (यकृत) का रोग इंडियन चाइल्डहुड सिरोसिस हो सकता है। इसलिए माँ का दूध छह-आठ महीने तक बच्चे के लिए श्रेष्ठ ही नहीं, जीवन रक्षक भी होता है।
स्तनपान की महत्त्व को देखते हुए विश्व स्तनपान सप्ताह पहली बार 1992 में डब्ल्यू ए बी ए द्वारा मनाया गया था। जिसे यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन और 120 राष्ट्रों के सरकारों सहित उनके सहयोगियों द्वारा मनाया जाता है। वैश्विक स्तनपान संस्कृति को फिर से स्थापित करने और हर जगह स्तनपान के लिए सहायता प्रदान करने के लक्ष्य के साथ किया गया है। इस वर्ष डब्ल्यू बी डब्ल्यू की थीम 'स्तनपान के लिए कदम: शिक्षा और समर्थन' रखा गया है। स्तनपान के लिए सुरक्षा उपाय बनाने के लिए संगठनों और राष्ट्रों से आग्रह करके, यह विषय स्तनपान जागरूकता बढ़ाने की उम्मीद करता है।
जन्म के समय, मां का पहला दूध इम्यूनिटी और आंत को सुरक्षा प्रदान करता है। मां के दूध से बच्चे को 6 सप्ताह बाद एंटीबॉडी मिलती है। वहीं 3 माह बाद: कैलोरी बहुत बढ़ जाती है जो बच्चे के विकासशील अवस्था के लिए आवश्यक है। दूध में ओमेगा एसिड बढ़ जाता है और एक वर्ष बाद कैलोरी और ओमेगा एसिड का लेवल ज्यादा होता है, जो मांसपेशियों और दिमाग के विकास में सहायता करते हैं। वर्तमान दौर में असंतुलित भोजन और अनियमित कार्यशैली के कारण मां के दुध में कमी भी चिंता का सबब है। इस संदर्भ में स्वास्थ्य सेवाओं के कुशल पेशेवरों के द्वारा लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास किया जा रहा है। वहीं मां के दूध के महत्व को देखते हुए भारत में मौजूद 'मदर मिल्क बैंक ऐसे बीमार और कमजोर बच्चों की मदद कर रहे हैं। जिनकी माताओं का अपने बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं बन पाता है, जो बच्चे बीमार हैं या फिर जिन्हें दूध नहीं मिलता है। क्योंकि ये स्वास्थ्य बच्चे ही कल के सबल युवा पीढ़ी का निर्माण करने में सक्षम होगें।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़