(अभिव्यक्ति)
वर्तमान परिदृश्य में जहाँ हम 21वी शताब्दी के दौर में जी रहे हैं। जहाँ सूचना विस्फोट और तेज इंटरनेट के 4जी-5जी की पीढ़ियों के लुत्फ़ उठाते लोगों के बीच किसी भी विषय में डिजिटल या टंकित पाठ्य सामग्री की कमी नहीं है। वर्तमान आधुनिक सभ्य समाज में यौनसम्बन्ध के विषय में वार्तालाप के संबंध में वरिष्ठ-कनिष्ठों के बीच में आज भी मानसिकता 50वर्ष पूरानी है। पालक, अभिभावक अपने बच्चों से इस संबंध में ना तो खुलकर बात करना चाहते हैं और ना ही इस विषय पर कभी विमर्श करते हैं। हालांकि बच्चों में अवेयरनेस के लिए गुड टच और बेड टच के संबंध में समाज थोड़ा तो जागरूक हुआ है। लेकिन उतना भी उत्कृष्ट नहीं है की स्थिति संतावना के स्तर को स्पर्श भी कर पाए। वहीं इंटरनेट के गिरफ्त में आदतन लती होती किशोरावस्था के बच्चों के लिए सैक्स एजुकेशन वर्तमान समय में नितांत आवश्यक है।
किशोरावस्था को जीवन का बसंतकाल माना गया है। इस काल काल की अवधि बारह से उन्नीस वर्ष तक रहता है, परंतु किसी- किसी व्यक्ति में यह बाईस वर्ष तक चला जाता है। यह काल भी सभी प्रकार की मानसिक शक्तियों के विकास का समय है। भावों के विकास के साथ साथ बालक की कल्पना का विकास होता है। इसी काल में बच्चों में भौतिक और शारीरिक बदलाव स्वमेव दिखते हैं। वह अपने आप को पूर्व की अवस्था से अधिक मजबूत और जोशपूर्ण अवस्था में पाता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से बात करें तो यह वह अवधि होती है जहाँ बच्चा अपने शारीरिक बदलाव के चलते अगल ही कपोल-कल्पना में रहता है। जो अपने आप को वयस्क की भांति तुलनात्मक नजरिये से देखता है। भौतिक बदलाव और जिज्ञासु मन के प्रश्नों के उत्तर तलाश करने में अभिवृत्ति प्रस्तुत करता है। लेकिन इसी दौर में उचित सैक्स एजुकेशन ना मिल पाने की स्थिति में ये बच्चे पथभ्रष्ट हो जाते हैं। इसी अवधि में बच्चों की मानसिक स्थिति या तो सिद्ध हुए तो शिखर और फिसल गए तो पतन वाली अधोगति में लिप्त रहता है। जहाँ समाज में सेक्स को लेकर एक तबका ऐसा भी है जो राय तो ओपन माइंडेड रखता है। लेकिन यदि यही राय अभिव्यक्ति के रूप में किसी उसके उम्र से कम व्यक्ति के द्वारा पुछा जाये तो ये ही बुद्धिजीवी प्राणी नाक-सिकोड़ते सोदाहरण देखे जा सकते हैं।
रही बात युवा वर्ग में सेक्स को लेकर कई विसंगतिपूर्ण तर्कों का संग्रह है। जिन्हें उचित मार्गदर्शन नही मिलने से भौतिक आकर्षण को भी प्रेम की संज्ञात्मक व्याख्या कर जीएफ-बीएफ की अनिवार्य परम्परा बताते हुए, अपने आप को आधुनिक होने की दलीलें देने लग जाते हैं। जबकि वास्तव में आकर्षण से कहीं ज्यादा युवाओं के जीवन पथ पर फिसलाव की स्थापना अमार्गदर्शन के कारण निर्मित होती है। ऐसे स्थिति में बच्चों के विभिन्न जिज्ञासु प्रश्नों की तृप्ति के लिए वैध-अवैध दोनो तरह से साहित्य की अपलब्धता भर-भर कर है। जिसमें से कहीं ज्यादा इन युवाओं को खिचाव की स्थिति में अवैध, अनैतिक, अश्लील और अशिष्ट साहित्य जो दृश्य, श्रव्य और पाठन समस्त संसाधनों में उपलब्धता भौतिक और आभाषी आयाम दोनो में है। जिसके चलते युवा पीढ़ी की मानसिकता कहीं ना कहीं व्यभिचारी प्रवृत्ति को जन्म देती है। एक ऐसी ही तर्काधिन एक उदाहरण का प्रस्तुत करने की जहमत ले रहा हूँ। एक किशोरी की तथाकथित प्रेम-प्रसंग की लिप्तता किसी हम उम्र युवक से हुआ। दोनो लगभग नाबालिग स्थिति में थे। पिता ने लोक-लाज और निंदा के डर से किशोरी को समझाने का प्रयास किया लेकिन पिता का रवैय्या समीक्षात्मक से थोड़ा उग्रता के तेज पर रहा, जिनमे पिता ने कुछ प्रतिबंध और घर में ही रहने का प्रतिबंध लगा दिया। इसी वाद-विवाद के दौर में किशोरी द्वारा पिता के ऊपर ही सवालिया शब्द बाण के रूप में कहा, 'आप मुझे छुने की चाह रखते हैं।' वास्तव में यह इसमें पारिवारिक संस्कार या पिता की कोई गलती नहीं है। इसका कारण है वर्तमान समय में इंटरनेट की सुगम उपलब्धता और बच्चे के द्वारा अशिष्ट साहित्य के अध्ययन से अंतर्मन में बनने वाली कुत्सित कपोल-कल्पना पर आधारित मानसिकता की यह संगम स्थली विचारधारा रही जो उस किशोरी के दृष्टिकोण में प्रदर्शित है।
बहरहाल, बच्चों के लिए सेक्स एजुकेशन वर्तमान समय की आवश्यकताओं में से एक है। विद्यालय के पाठ्यक्रमों के साथ-साथ बच्चों के पालकों/अभिभावकों की भी यह जिम्मेदारी है की वे अपने बच्चों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाएं। जहाँ बच्चों की जिज्ञासा और ऐसे प्रश्नों की उत्तर सहजता और गंभीरता से रखें जो आगे चलकर उन्हे उलझन के बजाय सुलझा हुआ नागरिक बनाने के लिए सहायक सिद्ध हो। बच्चों में वर्तमान समय में अस्थिर मानसिकता के और विकृति और अशिष्टता की ओर ढ़केलनें में ऐसे सेक्स एजुकेशन का अभाव भी है। अब वह दौर नहीं है की टेलीविजन पर किसी विज्ञापन में अतरंग दृश्य पर मूह फेर लेने या बहानों से विषय परिवर्तन कर लेने का दौर है। सूचना क्रांति के इस दौर में बच्चों को सेक्स एजुकेशन के मर्म के समझना भी आवश्यक है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़