Tuesday, August 30, 2022

संघर्ष से पहले पूर्वाग्रहों के अंतर्द्वंद का समीकरण / Equation of the Conflict of Prejudices Before the Conflict


                       (चिंतन


जब भी दो भिन्न विचारधाराओं के मेघ आपस में टकराते हैं तो, निश्चय ही इसके दो पहलू हो सकते हैं। पहला जो विवश होकर सत्य-असत्य के इस संघर्ष में विजय केवल सत्य के मार्ग के लिए चयन करता है। जैसे युद्ध में निर्मित स्थितियों में विजय के लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी का सहारा लिया जाता है। ठीक उस युद्ध के पूर्व एक शीतयुद्ध मन के अंतर्द्वंद में चलते रहता है। ऐसा भी नहीं है की सिर्फ दो व्यक्तियों,वर्गों, समूहों, क्षेत्रों या समुदाय के युद्ध का अवलोकन केवल दो पक्ष ही करते हैं। अपितु यह स्थिति है कि ये दोनो लोगों के बीच तो तनावपूर्ण होते हैं। लेकिन परिमाण कई फलकों पर देने वाले होते हैं। 
          स्वजनों को अपने लोगों की चिंता और चिताओं के बोझ को ढ़ोने का भय और संघर्ष के पूर्व अपने लोगों के चौबंद सुरक्षा की भावना का कभी सुनिश्चित करती है तो, कभी कचोटती रहती है। लेकिन भय का संसार तो परसरते रहता हैं। ऐसा भी नहीं है की सम्पूर्ण संघर्ष से केवल दो परिवर्तन जन्में की एक विजय दूसरा पराजय अपितु इसके कई प्रासंगिक परिणाम और परिवर्तन सामरिक व्यवस्था को उत्थल- पूथल करने का आमादा रखता है।
                लेकिन विचार करें की युद्ध के पूर्व की क्या वह परिस्थितियां है जो दो पक्षों को टकराव के मुहाने पर ला पटकती है। वास्तव में इस तर्क का यदि हम पीछा करें तो प्राप्त होता है कि ईष्या और कपट एवं स्व-वैभव की परिकल्पना के इर्दगिर्द बनाई गई स्वयं के लिए उत्कृष्ट और दूसरे के हिस्से के लिए कमतर सुख की कल्पना है। यही वैमनस्य भाव न जाने कितने द्वेषों, संघर्षों को जन्म दे। इन्ही संघर्षों के फलन वृहद परिवर्तन लक्षित होते हैं। एक जो अपने स्वार्थपन के लिए, तो दूसरा सत्य के सत्यापन के लिए इस भिडंत के लिए सुसज्जित होता है।
              इन परिस्थितियों को टालने, संघर्षों के पतन के लिए प्रयास तो कई होते हैं। लेकिन कई ऐसे भी विद्वानों का मत और अपने अपने मनोरथ को साध्य करने के लिए ये संघर्ष वृहदाकार होते जाता है। संघर्ष के पूर्व पूर्वाग्रहों के समीकरण, समीक्षा और सटिक विश्लेषण करते हुए। चिंतनशील वरिष्ठों के मन में भी परीणाम को लेकर हलचल तो लाजमी है। लेकिन क्या इन संघर्षों के जन्म के पूर्व खत्म करने की परिकल्पना को कोई आत्मसात् नहीं कर सकता है। संभवतः यही कारण है की आज भी लोगों में टकराव की स्थितियां निर्मित होती है। जहां एक पक्ष-दूसरे पक्ष पर हावी हो जाता है। 


लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़