(अभिव्यक्ति)
शतरंज की बिसात की महफिले तो बेहद प्राचीनतम समय से भारतवर्ष के मिट्टी से जुड़ा मिलता है। किंवदंतियों के अनुसार, शतरंज का आविष्कार गुप्त काल के समय में हुआ। वैसे तो महाभारत के प्रसंग में पांडव और कौरव पुत्रों के बीच चौसर का खेल प्रसिद्धि के शीर्ष पर रहा है। लेकिन शतरंज की बाजियों की तरह कई चौखाने वाले खेलों का सृजन हुआ है। बुद्धिजीवी के बौद्धिक शक्ति पर आधारित यह खेल गणितीय परिमाण के एक बड़े वर्ग के अंदर चौसठ समान छोटे वर्गों के बीच यह खेला जाता है। मूल रूप से भारत जैसे गौरवशाली राष्ट्र ने विश्व को शून्य दिया। ठीक उसी के भांति मनोवैज्ञानिक रूप से सुदृढ़ता के लिए विश्व को शतरंज दिया। शतरंज का आविष्कार 6 वीं शताब्दी के आसपास भारत में शुरू हुआ था। यह माना जाता है। तत्कालीन समय में यह राजाओं, महाराजाओं का खेल हुआ करता था। शतरंज को दो खिलाड़ियों के बीच खेला जाने वाला एक बौद्धिक एवं मनोरंजक खेल है। किसी अज्ञात बुद्धि-शिरोमणि ने पाँचवीं-छठी सदी में यह खेल संसार के बुद्धिजीवियों को भेंट में दिया। इस खेल का प्राचीन नाम चतुरंग के रूप में जाना जाता था। पुरातत्व विभाग के खनन में हड़प्पा, लोथल, चन्होदहडो और मोहनजोदडो से शतरंज के बोर्ड के दो नमूने मिले हैं।
शतरंज जिसे राजाओं का खेल कहा जाता था, यह जन मानस में भी लोकप्रिय हुआ। ताज्जुब की बात यह है कि शतरंज के चाल, शय और मात जैसे शब्दों के इर्द गिर्द तो कई धारावाहिक बने, राजनीति से लेकर आम जनों की भाषा में इस खेल के दाव पेच शब्दावली आज भी देखने को मिलते हैं। इसी तारतम्य में अक्टूबर 1924 में मुंशी प्रेमचंद की हिन्दी कहानी शतरंज के खिलाड़ी, जो माधुरी पत्रिका में प्रकाशित हुई। कहने का तात्पर्य यह है की इस खेल ना सिर्फ खिलाड़ियों, अपितु सामाजिकता के विभिन्न फलकों पर अमिट छाप छोड़ी है। प्रेमचंद जी के उसकी कहानी पर आधारित हिन्दी फ़िल्म 1977 में बनायी। जाने कितने ऐसे उदाहरण है जो इस खेल की लोकप्रियता को दर्शाते हैं।
शतरंज स्थिरता और संयम का खेल है, इसका मतलब है कि शतरंज में, एक व्यक्ति को अपनी और अपने प्रतिद्वंद्वी की हर चाल को याद रखना होता है। चालें, उद्घाटन योजनाएं और बिसात के नियम हर खिलाड़ी को सीखे जाने चाहिए। इसके लिए बच्चों को अपने विरोधियों के खिलाफ उपयोग किए जा सकने वाले सभी संभावित पैटर्न को याद रखने की आवश्यकता होती है। जब एक बच्चे को एक संभावित स्थिति का सामना करना पड़ता है, तो उसे बोर्ड के एक विशिष्ट क्षेत्र पर चाल और पैटर्न याद रखना चाहिए। ये याद किए गए, तो रक्षा चाल पैटर्न मस्तिष्क के अनुकूल होने के लिए काफी जटिल हैं। इसका मतलब है कि शतरंज सीखने से आपके दिमाग की याददाश्त और रिकॉर्डिंग क्षमता धीरे-धीरे बढ़ती है। मनोवैज्ञानिक के द्वारा बताया जाता है कि शतरंज खेलने से लोगों में आईक्यू स्तर यानी मानसिक क्षमताओं का ऊर्ध्वाधर विकास होता है। जहाँ खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंदी के साथ बौद्धिक रूप से टकराते है और उन्नत मस्तिष्क विजयश्री को प्राप्त करता है।
शतरंज के मोहरों से लेकर हर एक प्यादे ने इस खेल का रोमांच इतना बढ़ा दिया है की साहित्य जगत में वजीर से लेकर मोहरें तक के नाम पर आधारित कितनी कृतियाँ सृजन की जा चुकी हैं। यह खेल ना सिर्फ भारत ही नहीं वैश्विक रूप में कई देशों में खेला जाता है। बौद्धिक क्षमताओं को परखने वाला यह, जीवन के घटकों और तनावपूर्ण रास्तों में संयम के गुर सिखाते मनोबल को ऊँचा बढ़ाने के लिए सक्षम है। कभी चाय की चुस्कियों के बीच, तो कभी क्लब के मद्धम रोशनी के उजाले में कभी कक्षा के टेबल तो मीनारों के आशियाने में, कभी प्रतिस्पर्धा के धूरी पर इन चौसठ वर्गों के बीच तालमेल जमाते दो खिलाड़ियों के बौद्धिक टकराव में त्वरित फैसलों के दायरे बढ़ाते। जीवन के कई सबक सीखा जाते हैं। शतरंज बड़ी चीज है जनाब नासमझ कहाँ समझ पाते हैं।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़