Wednesday, July 20, 2022

छत्तीसगढ़ी ल अपनाय के होना चाही हमर प्राथमिकता /Our priority should be to adopt Chhattisgarhi language



  
                             (बिचार


हमर भुइँया ले उपजे कहावत हे कि हंड़िया के मुहूँ मा परई ढाँकबे मनखे के मुहूँ मा काला ढांकबे, मने जम्मो मनखे एक बरोबर नइ होवय। छत्तीसगढ़ राज म कइ किसम के लोगन मन निवास करथे। कइ अइसे मनखे घलो हवय जोन दूसर परदेस ले अइन फेर इहें रहिके पोठ होगे अऊ इहे के मनखे बनगे। माने जइसे रासा तइसे बासा, जिहाँ के भुइँया तिहें के भाखा ल अपना लीन, सिखिन अऊ बोले लगिन, फेर समस्या आजो उसने के उसने बने हे, जइसे पहिली रिहिस। ओ समस्या हरे भाखा के मान अऊ गुन करइया के कमी। छत्तीसगढ़ी जो घर-दुवारी के बोली-भाखा हरे। ओखरे तिस्कार छत्तीसगढ़िया मन खुदे करत हवय। इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर क्रॉस कल्चरल कम्युनिकेशन के डाहर ले कराय सर्वे के जिम्मेदारी ल बखुबी निभावत भारत देस म छत्तीसगढ़ी भाषी मनखे मन उपर होय समाजशास्त्रीय सर्वेक्षण के रिपोर्ट केली किल्गो बोहेम ह अप्रैल 1994 अउ अप्रैल 1995 के दौर के अंत के महिना नवम्बर में उही बछर रखिन। जेन रिपोर्ट म छत्तीसगढ़ी भाखा के पहिचान अउ छत्तीसगढ़ी राज के संगेसंग दूसर राज के क्षेत्र के तको उल्लेख हवय जिहाँ छत्तीसगढ़िया मन निवास करत रिहिन अउ अाजो घलो निवासी हवय।
            छत्तीसगढ़ी भाखा ल इंडो-आर्य भाखा कहे गे हवय। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश अउ बिहार संग कइ राज के मनखे मन के द्वारा बोले जाथे। हमर इतिहास ले बर्तमान तक के कइ उदाहरण हे, फेर कोन जनी भाखा ल चार झिन के बीच बोलचाल म परियोग करे के बेरा म धुत्कासी लगथे। कोनो सभा या बइठका म छत्तीसगढ़ी बोले के पहिली मनखे बकायदा कहिथे की छत्तीसगढ़ी म बोले के परियास करत हव। जबकि दाई के कोरा म खेलत-कुदत बाढ़त जेन भाखा ल हम सुनत हन, सिखत हन तेन भाखा म दू आखर कहेबर परियास करे के मर्म आज तक समझ नइ आवय।
             ए बछर के सुरूवात म छत्तीसगढ़ी सहित स्थानीय भाखा अउ बोली ल जनइया लइका मन के उपर प्राथमिक साला स्तर म सर्वे करे गे रिहिस। समाचार पत्र के हवाले ले छपे खबर म 29,255 स्कूल म चार लाख ले जादा लइका मन उपर होय सर्वे म पहिली कक्षा म पढ़इया 66 परतिसत म छत्तीसगढ़ी बोलथे,समझथे अउ प्रारंभिक भाखा के रुप म बार्तालाप करथे। ए सुनके हिरदे म जुड लागिस की नवा पौध मन छत्तीसगढ़ी ल जानथे  तो सही, फेर चिंता के लकीर माथा ले कम नइ होय हो। काबर की आप-हमर जइसे मनखे मन के अत्याधुनिक समाज जिहाँ भाखा ले पहिली लिप्यंतरण अऊ भाखा संकरण म अंग्रेज़ी के चाँय-चपर ह कपाल म बइठे हे। सोसलमिडिया म घलो अंग्रेजी के जानकार मनला कुल अऊ बाँचे भाखा ल इसने-उसने के हाना-ताना के बीच नदाये बर छोड़ दे जावत हे। अइसे नइ हे की जोन नवा पौध छत्तीसगढ़ी के बनत हे तिकर मन बर हमन बढ़िया बाताबरन के परियास नइ करत हन। फेर ये परियास करोड़ों के जनसंख्या म लाख के बरोबर हे। मन गरम तवा म पानी के छौंक बरोबर हे, जोन चन्न के अावाज तो करथे फेर दूसर भाखा के परियोग करइया मनखे के भीड़ म कमतर दिखत हे। छत्तीसगढ़ी के नवा पौध मन बर छत्तीसगढ़ी भाखा के सीखे के, सृजन करे, बोले के अउ छत्तीसगढ़ी म गुने के लइक बाताबरन हम सबो ल मिलके तियार करना पड़ही। नही त हसदेव के जंगल के पेड़ कस धड़-धड़ले ये नव पौध के बारी म अतिक्रमण होवत अउ भाखा के नंदावत बेरा नइ लगे। हमन ताली पिटत कहत रहिबोन छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया। 
             मोर बिचार हे, जेला अपन भाखा ल गोठियात लाज लगथे, वोहा का भाखा के मान-सम्मान करही। इसने मनखे मन खुद अपन भाखा के अपमान करे के जिम्मेदार हरे। 28 नवम्बर 2007 के सरकार ह हमर भाखा ल राजभाषा के दरजा देके बिल पास करिन। साल के जब नवम्बर महिना आथे त छत्तीसगढ़ी बोलइया मन के सोसल मिडिया ले लेके, चौक-चौराहा तक म एके दिन लोगन मन मुँहू ले छत्तीसगढ़ी सुने मिलथे। रथिया होइस दूसर दिन लगिस तहान छत्तीसगढ़ी के मीठ बोली, भाखा जबान ले अउट जथे। सन् 1888 म हमर भाखा के बियाकरन लिखइया हीरालाल काव्योपाध्याय के हिरदे सरग ले पीरा म छटपटावत होही कि का सोचे रहेव अउ का होवत हे मोर महतारी भाखा के बिकास म। बछर 1494 में चारन कवि रिहिन दलपत राव जेहा अपन साहित्य रचना म सबले पहली छत्तीसगढ़ी भाखा ले काम करिस। कवि गोपाल मिस्र ह बछर 1746 म अपन रचना खूब तमासा म हमर भाखा के उल्लेख करिन। अतेक गौरवशाली इतिहास के रहत ले हमला छत्तीसगढ़ी के उत्थान, बोलचाल के भाखा अउ संस्कृति के संरक्षण बर सोचे रगथे ये बड़े सवाल हरे। हमला जागना नइ हे छत्तीसगढ़ी ल संजोना हे, संवारना हे। माटी के मर्म रहस्य म छत्तीसगढ़ी के नवा फुल खिलाना हे। तब जग कहि, छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया। 

लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़