(अभिव्यक्ति)
खबर यानी सूचनात्मक विवरण जो कोई असाधारण घटना, क्रियाकलाप, जिसमें नयापन हो और आम आदमी को उसकी जानकारी नहीं हो और जन कल्याण के उद्देश्य से संचार के माध्यम उसे प्रसारित कर रहे हों, तो उसे समाचार कहा जाता है। प्रातःकाल के समाचार पत्र की प्रतीक्षा से लेकर टीवी चैनलों में प्रसारित होने वाले समाचार चैनलों के ब्रेकिंग न्यूज़ तक हर कहीं सूचना का विस्फोट होते रहता है। जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन खबरों तक पहुँच रखता है। पत्रकारिता जो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है। चौथी खंभा शब्द वकालत की स्पष्ट क्षमता और राजनीतिक मुद्दों को तैयार करने की निहित क्षमता दोनों में प्रेस और समाचार मीडिया है। भारत वर्ष में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की 31 अक्टूबर 2017 की रिपोर्ट कहती है की उक्त तिथि तक भारत में 389 चैनल न्यूज और करेंट अफेयर्स कैटेगरी में संचालित हैं। यही नहीं भारत दुनिया का सबसे बड़ा समाचार पत्र बाजार है। जहाँ प्रत्येक दिन 100 मिलियन से अधिक प्रतियां बिकती हैं। अखबारों और मीडिया संस्थानों में हजारों की संख्या में पत्रकार सूचनाओं के इस क्षेत्र में लगे हैं। जिनके द्वारा छोटी सी छोटी घटना, कार्यक्रम और विभिन्न सूचनाओं को ग्राऊड जीरो से उठाकर गंभीरता के अनुरूप 135 करोड़ की जनसंख्या के बीच परोसा जाता है।
एडेलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर के द्वारा प्रतिवर्ष विभिन्न क्षेत्रों जैसे राजनिति, संस्थान, मीडिया, शासन के संदर्भ में लोगों की विश्वसनीयता के आधार पर रैंकिंग रिपोर्ट उपलब्ध कराया जाता है। इस रिपोर्ट में अशांति और अनिश्चितताओं से चिह्नित एक अद्वितीय वर्ष के बाद हुए परिवर्तन के कई कारकों पर प्रकाश डालता है। 2021 एडेलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर 19 अक्टूबर से 18 नवंबर, 2020 के बीच भारत सहित 28 वैश्विक बाजारों में 33,000 उत्तरदाताओं के बीच आयोजित किया गया था। जिसमें भारतीय मीडिया के पर 69 फिसदी लोग मीडिया खबरों पर विश्वास एवं रखते हैं। सीधे अर्थ में कहें तो भारतीय जनमानस एक बड़ा तबके के लिए मीडिया के द्वारा चलाए जा रहे समाचार, सूचना तंत्र पर भरोसा रखते हैं। यानी मीडिया में जो खबरे चलाई जाती हैं। उनका दर्शकों के मन:पटल पर अवश्य ही प्रभाव पड़ता है।
चैनलों पर प्रस्तुत की जाने वाली सभी प्रसारणों से सीधे-सीधे आम लोग जुड़े रहते हैं। इस प्रसारणों के दौरान निरर्थक चर्चाओं में टीवी रेटिंग बढ़ाने के उद्देश्य से शब्दों की गरिमा को तार-तार किया जाता है। वहीं मीडिया में परोसी जा रही शोध रहित, स्तरहीन, सनसनीखेज़ खबरों से लेकर असभ्य वार्तालाप, असंस्कारी आचरण, शाब्दिक पत्थरबाजियों और नकारात्मकता से देश का टेलीविज़न दर्शक, श्रोता परेशान हो रहे हैं। परिणामस्वरूप समाज में वैमनस्य, आक्रोश, आपसी नफरत, वैचारिक, व्यावहारिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रदूषण फैल रहा है। जिसे हम सभी अनुभव तो कर रहे हैं, परंतु व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से सोची-समझी साजिश से जैसे हमारी मानसिकता तथा जीवन परिवेश को बदलने का कोई विचारधारा के संकेत देखने को मिलते हैं। जहाँ बड़ी-बड़ी घटनाओं को संख्यात्मक बाहुल्यता और अल्पता के मापनी से माप कर मुद्दे बनाने की रणनीति से भारी परिवर्तन देखने को मिलता है। जहाँ एक वर्ग शोषित तो दूसरे वर्ग में अपमानित, अवक्षेपण का संतति का विकास हो जाता है। जो सामाजिक ढांचा पर एकता को विघटित करने के प्रयासों के रूप में देखा जा सकता है।
ऐसा भी नहीं है की पूरी मीडिया पर दोषारोपण किया जाये लेकिन, बढ़ते फर्जी खबरों और वैमनस्य विचारों के पीछे मार्केटिंग स्ट्रेटजी के समीकरणों में टीआरपी तलाशते प्रबंधकों के कारण मीडिया स्तर गिरने लगा है। वहीं बार-बार किसी विषय की खीझ कहीं ना कहीं समस्या को जन्म देने के लिए कारक की भूमिका निभाती है। यही कारण है की संतुलन की अवस्था में भी कई ऐसे पक्ष होते हैं, जो वैचारिक मतभेद को जन्म देने का प्रयास करते हैं। लाजमी है की इसके परिणाम राष्ट्रहित में तो प्रदर्शित नहीं दिखाई पड़ते हैं।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़