(अभिव्यक्ति)
मुहावरों के प्रयोग को लेकर मास्टर जी हमेशा पढ़ाते वक्त बच्चों की गलती देखकर गुड़-गोबर कर दिये कह कहकर तंज कस देते थे। स्वभाविक अर्थ था कि काम खराब कर देने को मुहावरे में ऐसे ही संज्ञा देते हैं। गोबर शब्द के प्रासंगिक होने के आम बोलचाल प्रयोग में तात्पर्य कुछ विशेष नहीं उल्टा इसे व्यर्थ का बोधार्थक मान लिया गया है। लेकिन आपको जानकार आश्चर्य अवश्य होगा की गोबर यानी पशुओं के अपशिष्ट को संवर्धित कर नव अनुप्रयोगों के सांद्रण के साथ ऐसी वस्तुओं का निर्माण हो रहा है जो विशेष तो हैं। इसके साथ-साथ पर्यावरण हितैषी भी उत्पाद है। 20 जुलाई 2020 की सुबह छत्तीसगढ़ में अलग ही योजना का प्राथम्य किरण लेकर प्रकाश के साथ उदित हुई। यह योजना थी, गोधन न्याय योजना। जिसके अंतर्गत शासन के द्वारा पशुओं के गोबर क्रय करने के संदर्भ में विचार सामने आए। इस योजना के सुभारम्भ के समय राज्य के गांवों से लेकर शहरों तक और मीडिया से सोशलमीडिया मीडिया तक अजीब ही हलचल थी। कोई सरहाना तो कई गोबर के क्रय को व्यंग्यात्मक रूप से टिका-टिप्पणी के साथ प्रस्तुत कर रहे थे। बहरहाल, इस योजना के प्रादुर्भाव के साथ गोबर के उपयोगिता और क्रय किये गोबर को संबोधित करने के संदर्भ में प्रयास प्रस्तावित थे। मुख्यमंत्री गोधन न्याय योजना के तहत सरकार पशुपालन करने वाले किसानों से गाय का गोबर खरीदेगी और खरीदी किए गोबर से गौठानों में संचालित स्व-सहायता समूह की महिलाएं कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट, सुपर कंपोस्ट, गोबर से गुलाल, जिसे दीया, गमला इत्यादि चीजों का निर्माण करने जैसे नवीन अनुप्रयोग प्रासंगिक हो गए। जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार, गोधन न्याय योजना आज पूरे देश में सुर्खियां बटोर रही है। पशुपालकों, किसानों और ग्रामीणों के लिए शुरू की गई। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करना और स्थानीय स्तर पर रोजगार प्रबंधन को बढ़ावा देना है। ताकि गांवों में आर्थिक तंत्र को मजबूत किया जा सके और ग्रामीणों को आत्मनिर्भर। इस योजना में सरकार पशुपालकों से 2 रूपए प्रति किलो की दर से गोबर खरीद रही है। जिसमें प्रदेश के 75.38 लाख क्विंटल गोबर की खरीदी कर गोबर विक्रेताओं को 150.75 करोड़ रुपए का भुगतान डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से हितग्राहियों के खातों में भेजा गया है। गोधन न्याय योजना से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आय के अवसर बढ़े हैं, यही कारण है कि स्थानीय रोजगार बढ़ने से शहर की ओर पलायन कम हुआ है। इस योजना ने हजारों परिवारों की आर्थिक स्थिति मजबूत बनाई है।
छत्तीसगढ़ शासन पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के आकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में कुछ 20619 गांव हैं। वहीं गोधन न्याय योजना के प्रासंगिक होने के कारण इन गाँवों के गोठान से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार के विकल्प तलाशे जा रहे हैं। गौठानों में कई नवाचारी पहल को बढ़ावा देने के लक्ष्यों के प्रति कटिबद्ध है। गोबर से विद्युत उत्पादन की शुरुआत भी की जा चुकी है। गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने के लिए कुमारप्पा नेशनल पेपर इंस्टिट्यूट जयपुर, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय भारत सरकार के खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड एवं छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग के मध्य एमओयू के तहत् राज्य के 75 चयनित गौठान में गोबर से पेंट निर्माण की यूनिटें स्थापित की जा रही है। रायपुर के समीप हीरापुर-जरवाय में गोबर से प्राकृतिक पेंट का उत्पादन सह विक्रय शुरू हो चुका है। छत्तीसगढ़ सरकार की पहल पर गौठानों में दाल मिलों एवं तेल मिलों की स्थापना की जा रही है। पहले चरण में 197 गौठानों में दाल मिल और 161 गौठानों में तेल मिल की स्थापना की प्रक्रिया जारी है। इसके साथ ही गौठानो में प्रसंस्करण, पैकेजिंग की सुविधा में भी क्षेत्रीय विशेषता के आधार पर विस्तार किया जा रहा है। गोधन न्याय योजना आज ग्रामीणों, किसानों और पशुपालकों के लिए आमदनी का एक मजबूत जरिया बन गई है। गौरतलब है कि राज्य में गौठानों से 12,013 महिला स्व-सहायता समूह से 82,725 महिलाएं जुड़ी हैं। जो प्रदेश की अर्थव्यवस्था और उन्नति में महिलाओं की बराबर भागीदारी सुनिश्चित करता है।
योजना की दस्तक से गांवों के अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के केन्द्र तो स्थापित है। लेकिन कई गाँव आज भी ऐसे है जहाँ गोठान निर्माण की प्रक्रिया में तत्परता देखने को मिली। लेकिन आज भी इन गोठानों का सूनापन अलग ही कहानी को बयां करते हैं। लोगों में जागरूकता से लेकर निर्धारित प्रबंध सिद्धांत के पोस्डकॉर्ब का पालन की उदासीनता के चलते आज भी कई गाँव इसके लाभ से अछूते रह गए हैं। बहरहाल, प्रयासों का दौर तो निरंतरता से जारी है। इंतज़ार सिर्फ लोगों की इच्छाशक्ति और निर्धारित प्रबंध की है। वहीं बाजार में आज भी गोबर से उत्पादित वस्तुओं की मांग समय के साथ बढ़ने लगी है। जो इस प्रकार के भागिरथ प्रयास को अवश्य ही नव ऊँचाईयों के प्रदान करने में सहायक सिद्ध होंगे।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़