(अभिव्यक्ति)
जल,जंगल और जमीन के ईर्दगिर्द घुमती जिंदगी के पर्याय आदिवासी जन जीवन है। कई संघर्ष जंगल के पृष्ठभूमि पर हुए हैं। जंगल जो आदिवासियों की धरा, मातृ और पोषित करने वाली जननी है। जंगल के संरक्षण के लिए कई उदाहरण हैं जब इसकी आस्मिता की लड़ाई के लिए आदिवासी या गिरिजन लामबंद हुए हैं। इसी परिदृश्य में सामुदायिक वन संसाधन अधिकार या सीएफआरआर एक अद्वितीय प्रयासों में से एक में गणना किया जायेगा। इसका प्रादुर्भाव वर्ष 2016 में ओडिशा सरकार सिमलीपाल राष्ट्रीय उद्यान के अंदर सामुदायिक वन संसाधन (सीएफआर) को मान्यता देने वाली पहली सरकार थी।यह अधिकार जो कि महत्त्वपूर्ण सशक्तीकरण उपकरण के रूप में परिदृश्य व्याख्या करती हैं। सरलार्थ में कहें तो वन के कुछ हिस्से जो ग्राम्य आबादी के ईर्दगिर्द हों। वहां के वन्य संसाधन का उपयोग और उपभोग स्थानीय लोगों को दिया जाता है। लेकिन गांँवों के बीच उनकी पारंपरिक सीमाओं के बारे में सहमति प्राप्त करना अक्सर चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों को मान्यता देने में छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य बन गया है। जिसने कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर एक गांँव के आम लोगों को यह वन्य संसाधन अधिकार दिया है। इन वन संसाधन अधिकारों की पृष्ठभूमि क्या हो सकती है? जो सामान्य वन भूमि है जिसे किसी विशेष समुदाय या सारकरण में कहें तो वन्य ग्राम निवासियों के द्वारा स्थायी उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से सुरक्षित और संरक्षित किया जाता है। यह साफ करता है की समुदाय द्वारा इसका उपयोग गाँव की पारंपरिक और प्रथागत सीमा के भीतर उपलब्ध संसाधनों तक पहुँच एवं ग्रामीण समुदायों के मामले में परिदृश्य के मौसमी उपयोगिता और उपभोगिता के लिये किया जाता है। यानी हर वह वन संसाधन अधिकार क्षेत्र में समुदाय और उसके पड़ोसी गांँवों द्वारा मान्यता प्राप्त पहचान योग्य स्थलों की एक प्रथागत सीमा निर्धारित होती है। चूंकि वन विभाग और वन्य नियमों के अधिन वन को कई श्रेणी में विभाजित किया गया है। जैसे राजस्व वन, वर्गीकृत और अवर्गीकृत वन, डीम्ड वन, ज़िला समिति भूमि, आरक्षित वन, संरक्षित वन, अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यान आदि हो सकते हैं। अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी, वन संसाधन अधिकार अधिनियम 2006 की धारा 3 (1)(आई) के तहत सामुदायिक वन संसाधन अधिकार सामुदायिक वन संसाधनों को संरक्षण, पुन: उत्पन्न या संरक्षित या प्रबंधित करने के अधिकार की मान्यता प्रदान किया गया है।
छत्तीसगढ़ राज्य का कुल वन संघनता 55 हजार 6 सौ वर्ग किलोमीटर है, जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 41 फीसदी हिस्सा है। इस क्षेत्र में वन्यजीव अभ्यारण्य के रूप में मान्यता प्राप्त संरक्षित क्षेत्र और संरक्षित क्षेत्र के बाहर या गलियारों के क्षेत्र शामिल हैं। वहीं सीएफआरआर के अंतर्गत धमतरी में अब तक 123 गांवों को सम्मिलित किया गया है। वही ऐसे ही वन ग्रामों में जंगल को बचाने और संरक्षित करने के प्रयास से ग्रामीण एकजुट हो रहे हैं। वनों के विनाश को रोकने के लिए बकायदा ग्रामीणों के द्वारा छोटे-छोटे समितियों का निर्माण किया जाना भावी समय में वनों के संरक्षण के लिए बेहतर परिणामों को जन्म देंगें।
हाल में ही वन संरक्षण के लिए आदिवासियों ने हसदो बचाओ के संघर्ष में भूखे-प्यासे होकर आंदोलनरत रहे। यह बतलाता है कि लोगों में खासकर आदिवासी भाईयों में जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा के लिए निरंतर प्रयास किये है। सीएफआरआर जो वनो को विकृति किये बगौर जनजाति समुदाय के पारंपरिक उपयोगिता का अधिकार देती है। जंगलों के उत्थान और जंगल के संवर्धन के लिए जन समुदाय का एकजुटता सुरक्षात्मक परिधि को जन्म देता है। वहीं वन्य पारिस्थितिकी में कई जीव आज भी अंधाधुंध शिकार चलते संकटग्रस्त स्थिति में है। जंगली जानवरों की सुरक्षा और उनके लिए अनुकूल वातावरण की जिम्मेदारी हम मानवों की है। क्योंकि जंगल के संरक्षण का तात्पर्य है शुद्ध हवा और पर्यावरणीय संतुलन के समीकरण को संकलन करती है। वनों के संरक्षण के दिशा में सीएफआरआर एक बेहतरीन विकल्प अवश्य साबित होंगा।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़