(अभिव्यक्ति)
बेजुबां हैं मगर सब कुछ समझ जाते हैं।
जानवर हैं तो क्या, दोस्ती वो भी निभाते हैं।
मनुष्य और जानवरों के संबंध में विवरण वैसे तो प्राचीन काल से देखने को मिलता है। मनुष्य जो बुद्धिजीवी है, वह अपनी उपयोगिता के आधार पर वन्यजीवों, जानवरों के बीच आपसी व्यावाहरिक संबंध स्थापित किया। जिसमें मनुष्य स्वामी और जानवरों दासता के अधिन रहे हैं। इस तर्क का प्रमाण प्राचीन शैलचित्रों एवं विभिन्न आदिकालीन संसाधनों भी मिलता है। डार्विन के मानव और जानवरों के बीच भावनात्मक जुड़ाव के पहले भी हुए शोधों में मानव भावनात्मक जीवन ने मन और शरीर की पश्चिमी दार्शनिक श्रेणियों के लिए समस्याएं खड़ी की थीं। डार्विन की रुचि एक एडिनबर्ग मेडिकल छात्र के रूप में उनके समय और सर चार्ल्स बेल के एनाटॉमी एंड फिलॉसफी ऑफ एक्सप्रेशन के 1824 संस्करण में देखी जा सकती है। जिसमें विषय के आध्यात्मिक आयाम के लिए तर्क प्रदत्त किया गया था। वहीं इसके विपरीत, डार्विन का जैविक दृष्टिकोण जानवरों के व्यवहार में भावनाओं को उनके मूल से जोड़ता है, और सांस्कृतिक कारकों की अनुमति देता हैअभिव्यक्ति को आकार देने में केवल एक सहायक भूमिका। मनुष्य जो भावनात्मक रूप से जानवरों से जुड़ाव और उनके बीच संबंधों के कई उल्लेख मिलते हैं। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं की पालतू पशुओं की मौजूदगी में अकेलेपन के अवसाद से मनुष्य आसानी से उबर सकता है।
प्रारंभिक दौर के पश्चात् नव पाषाण काल तक आदिम मनुष्य ने पशु को पालना और खेती करने के प्रारंभिक तरीकों की खोज कर लिया।होमोसेपियंस अब समझ गया पशुओं की उपयोगिता से शिकार के साथ-साथ पशुपालन उसके लिए अति महत्वपूर्ण साबित होंगे। वह कई तरह के काम कर लेता था जैसे शिकार करने में कुत्ता, खेती करने में बैल, दूध प्राप्त करने में गाय, भैंस, बकरी मांस प्राप्त करने में, भेड़, भैंसा सवारी हेतु बैल, भैंस, घोड़ा आदि। पुरातत्वविदों के मतानुसार भारत में कृषि की शुरुआत आज से लगभग 10,000 साल पहले हो चुकी थी। वह घुमंतू जीवन के दौरान भी शिकारी कुत्ते, भेड़-बकरियाँ, ऊँट, घोड़ा जैसे जानवरों को पालतू बनाने की कला वह समझ चुका था। एक तरह से मनोवैज्ञानिक रूप में पशुओं पर वह भावनात्मक जुड़ाव और जानवरों का मनुष्यों के प्रति इमानदारी की समझ उन्नत होने लगी थी।
बहरहाल फ्रांसीसी कवि अनातोले फ्रांस ने एक बार कहा था, "जब तक आप किसी जानवर से प्यार नहीं करते, तब तक आपकी आत्मा का एक हिस्सा जागता नहीं है।" आमतौर पर, हर घर में एक व्यक्ति ऐसा होता है जो पालतू जानवर चाहता है और दूसरा उसके खिलाफ प्रतीत होता है। इसी बीच में पशुओं और मनुष्यों के बीच संघर्ष भी देखने को मिलते हैं। जिसके परिणामस्वरूप पशुओं के काटने से या उनकी शारीरिक अस्वस्थता का प्रभाव मानवों पर भी पड़ता है। 6 जुलाई, 1885 के पहले पशुओं के स्वास्थ्य एवं संघर्ष के लिए प्रतिजैविक दवाओं की खोज कम ही थी। 6 जुलाई 1885 को लुई पाश्चर ने रेबीज वायरस के खिलाफ पहला टीका सफलतापूर्वक प्रशासित किया था,जो एक जूनोटिक बीमारी है। इसी दिवस के उपलक्ष्य में हर साल 6 जुलाई को जूनोटिक रोगों के जोखिम के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व जूनोज दिवस मनाया किया जाता है। ज़ूनोज़ संक्रामक रोग (वायरस, बैक्टीरिया और परजीवी) हैं। यह जानवरों से मनुष्यों में फैल सकता हैं और इसके विपरीत, या तो जानवरों के सीधे संपर्क में या अप्रत्यक्ष रूप से, वेक्टर-जनित या खाद्य-जनित के जरिए फ़ैल सकता हैं। पाश्चर ने सहस्रों प्रयोग कर डाले। इनमें बहुत से खतरनाक भी थे। 1895 को रेबीज़ के खोजकर्ता वैज्ञानिक का निधन हो गया। बहरहाल, पशुओं और मनुष्यों के बीच भावनात्मक जुड़ाव आज भी नित नवीन मिशाल कायम कर रहा है। हाल में भारतीय चलचित्र उद्योग में पशु और मनुष्य के बीच भावनात्मक संबंधों पर केन्द्रित विषय पर फिल्म चार्ली ट्रीपल सेवन की फिल्मांकन की पराकाष्ठा से अंदाजा लगा सकते हैं की मनुष्यों और जानवरों के जुड़ाव-संबंधों कितने प्रगाढ़ हैं।
पालतू जानवर प्यारे जीवन साथी हैं। घर में पालतू जानवर रखने से तनाव से बचा जा सकता है। लेकिन अगर आप एक अपार्टमेंट में रह रहे हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि आप उन नियमों और विनियमों को जानते हैं जो आमतौर पर अपार्टमेंट मालिकों या समाजों द्वारा लगाए जा सकते हैं।जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम, 1960 की धारा 11 (3) में कहा गया है कि हाउसिंग सोसाइटियों के लिए पालतू जानवरों को प्रतिबंधित करने वाले प्रस्तावों को पारित करना अवैध है । साथ ही, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 ए (जी) के अनुसार, जीवित प्राणियों और जानवरों के प्रति दयालु व्यवहार करना प्रत्येक नागरिक का दायित्व है। वहीं भारतीय दर्शन में पशुओं की महत्ता एवं संरक्षण के उद्देश्य से इनमें ईश्वरीय शक्ति की कल्पना के प्रमाण भी मिलते हैं।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़