Thursday, June 30, 2022

श्रम कानूनों में परिवर्तन की सुगबुगाहट /The flurry of changes in labor laws


                        (परिदृश्य
श्रम एवं श्रमिकों के कल्याण एवं नियोजन पर आधारित श्रम कानूनों में परिवर्तन की सुगबुगाहट का दौर इन दिनों मीडिया और समाचारपत्रों की सुर्खियों में देखने को मिल रहा है। आधिकारिक तौर पर वैसे तो सूचना प्रसारण नहीं किया गया है। लेकिन कयासों का दौर चल निकला है।  मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो 1 जुलाई से कार्यालयीन समय, छुट्टियां और नेट इनकम में बदलाव की संभावना बन सकती है। नए महीने की शुरुआत से कार्यालयीन समय 12 घंटे तक का हो सकता है। वहीं हफ्ते में 3 दिन का अवकाश संभव है। कार्य के दिनों में कमी से श्रममूल्य में उपलब्ध नकदी में कमी हो सकती है परंतु भविष्य निधि बढ़ सकती है।1 जुलाई से यदि श्रम कानून के नियमों को प्रासंगिक किया जाता है तो बड़े बदलाव तो निश्चित ही देखने को मिलेंगे। जैसे 1 जुलाई से कंपनियों/कार्यालयों  के पास काम के घंटे यानी वर्तमान के 8 घंटे काम के पर्याय को बढ़ाकर 12 घंटे करने का अधिकार होगा। लेकिन उसके बाद एक और दिन की छुट्टी मिलेगी। कहने का तात्पर्य है की कार्मिक के पास अब सप्ताह में 3 दिन की छुट्टी लेने का अधिकार होगा। नए नियम लागू होने के बाद कंपनियां कर्मचारियों को तीन दिन की छुट्टी दे सकेंगी। कार्मिकों को सप्ताह में चार दिनों में प्रतिदिन 10 से 12 घंटे काम करना होगा। नए कानूनों का से यह भी आशाय प्रदर्शित होते हैं कि अधिकतम ओवरटाइम घंटे 50 (कारखाना अधिनियम के तहत) से बढ़ाकर अब 125 घंटे किए जाएंगे।
             नए मसौदे के अनुसार, मूल वेतन कुल वेतन का 50फीसदी या उससे अधिक होना चाहिए। जिसके कारण अधिकांश कर्मचारियों के वेतन ढांचे में बदलाव निश्चित है। आधार वेतन में बढ़ोतरी से पीएफ के जमा दर में बढ़ोतरी सुनिश्चित है और ग्रेच्युटी पहले से ज्यादा कटेगी। पीएफ मूल वेतन पर आधारित होती है। पीएफ बढ़ने से घर की कमाई बढ़ेगी। वहीं दूसरी ओर सैलरी कम होती जाएगी। लेकिन इस का पर्याय यह नहीं हैै की लाभांश में कोई कटौती या हानि हो सकता है। जैसे-जैसे बोनस के साथ अंशदान पीएफ बढ़ेगा। जहिर सी बात है की पीएफ और अन्य कटौतियों से रिटायरमेंट के पश्चात् मिलने वाला धन भी बढ़ता जाएगा। सेवानिवृत्ति होने वाले कार्मिकों को बेहतर जीवन के लिए सुदृढ़ भावी कल प्राप्त होगा। पीएफ सहित बोनस में बढ़ोतरी से फर्मों की लागत भी बढ़ेगी क्योंकि उन्हें कर्मचारियों के पीएफ में भी अधिक योगदान करना होता है। जिसका असर उनकी बैलेंस शीट पर भी पड़ेगा।
            नये कानूनों में परिवर्तन को कार्य क्षमता में उर्ध्वाधर विकास और तीव्र सेवा प्रदान करने वाला माना जा रहा है। लेकिन महंगाई और वर्तमान परिदृश्य में कार्मिकों के वेतन से घर चलना वैसे भी मुहाल है। ऐसे में हाथ में आने वाले यानी मूल वेतन या ग्रास सैलरी से कटने के बाद मिलने वाले नेट सैलरी में कमी कहीं न कहीं घर के बजट पर गहरा असर छोड़ने वाली है। वहीं तंगहाली में चल रहे लोगों के लिए नये श्रम कानूनों किसी चिंता के सबब से कम नहीं है। वहीं निवेश के मद्देनजर श्रम कानून के चार नियमों के लागू होने से देश में निवेश को बढ़ावा और रोजगार के नवीन अवसर सृजित होंगे। श्रम कानून किसी भी राष्ट्र के संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। ज्ञातव्य हा कि 23 देशों ने श्रम कानून के नियमों के लिए नियम निर्धारित एवं स्थापित  किए हैं। भारतवर्ष के 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को 4 संहिताओं में विभाजित किया गया है। जिसमें मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक संबंध, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, काम करने की स्थिति आदि का समावेश किया गया है। रोजगार और देश की अर्थव्यवस्था में इन कानूनी नियमों का से संरचनात्मक संगठनों को कार्य प्रणाली की दिशा और दशा सुनिश्चित होता है। लाजमी है की नये कानून के परिवर्तन से लाभ पूरे राष्ट्र को होगा। यह परिवर्तन दूरगामी और राष्ट्र के विकास की सबलता को और सुदृढ़ करने में सहायक सिद्ध हो। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़