Wednesday, June 29, 2022

दूध की उपयोगिता, मांग और मिलावट के समीकरण : प्राज / Equations of utility, demand and adulteration of milk


                            (विचार

माँ का पहला दूध बच्चे के लिए अमृत समान होता है। प्रसवकाल के अंतिम क्षणों में किलकारी की आवाज के साथ बच्चे का रोना एक ओर जहाँ नए जीवन के प्राथम्य का उद्योतक है वहीं दूसरी ओर उस बच्चे की सुरक्षा कवच माँ का पहला दूध होता है। माँ के पहले दूध से कोलोस्ट्रम होता है। यह कोलोस्ट्रम स्तन ग्रंथियों द्वारा उत्पादित पहला मोटा दूध है। इसका उत्पादन आपकी गर्भावस्था की आखिरी तिमाही के दौरान शुरू होता है और प्रसव के बाद कुछ ही दिनों के लिए जारी रहता है। दूध जो होमोसेपियंस का प्रारंभ पोषक होता है। इसके बाद धीरे-धीरे ही बढ़ते बच्चे को अन्य आवश्यक भोज्य पदार्थों की ग्रहण करने के लिए तैयार किया जाता है। दूध, जब एक सफेद रंग के तरल के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो मादा स्तनधारियों की स्तन ग्रंथियों द्वारा उनके युवा को पोषण प्रदान करने के लिए स्रावित होता है, तो इसका वैज्ञानिक नाम नहीं है।इसमें कई तरह के पोषक तत्व जैसे कैल्शियम, पोटैशियम, प्रोटीन, फास्फोरस इत्यादि मौजूद रहते हैं। यह बोन्स को मजबूत करने से लेकर शरीर की अन्य परेशानी दूर करने में लाभकारी होता है। दूध  हड्डियों के साथ-साथ मांसपेशियों को मजबूत बनाए रखने में लाभकारी है।इसमें मौजूद मैग्नीशियम और कैल्शियम हड्डियों को मजबूत करता है। यानी हर व्यक्ति को दूध अवश्य पीना चाहिए।
                     सहकारी स्तर पर ठोस प्रयासों के माध्यम से दूध की आपूर्ति में भारी वृद्धि को श्वेत क्रांति के रूप में जाना जाता है । ऑपरेशन फ्लड के अड़तालीस साल बाद - जिसने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बना दिया। भारत कृषि उपज और उत्पादकता में अगली सफलता की तलाश में है। श्वेत क्रांति 2.0 ने दूध और दूध उत्पादों के लिए डेयरी फर्मों की विपणन रणनीति को प्रभावित किया है, उत्पाद-बाजार मिश्रण के दृष्टिकोण को पुनर्जीवित किया है। तकरीबन करीब 7 करोड़ कृषक परिवार में प्रत्येक दो ग्रामीण घरों में से एक डेरी उद्योग से जुड़े हैं। बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी, पशुपालन, डेयरी व मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार के 2019-20 के आकड़े बताते हैं की दूग्ध उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। इस वर्ष के आकड़े बताते हैं की प्रति व्यक्ति प्रति दिन 406 ग्राम दूध की उपलब्धता सुनिश्चित होती है।
                 दूध की उपयोगिता के साथ-साथ लम्बें समय तक रखने के उद्देश्य से उसका शुष्क करण संभव है। सर्वप्रथम सूखे दूध की पहली आधुनिक उत्पादन प्रक्रिया का आविष्कार रूसी डॉक्टर ओसिप क्रिचेव्स्की ने 1802 में किया था। और व्यावसायिक उत्पादन 1832 में रूसी रसायनज्ञ एम. डर्चॉफ द्वारा प्रारंभ किया गया । 1855 में, टीएस ग्रिमवाडे ने सूखे दूध की प्रक्रिया पर एक पेटेंट लिया,हालांकि विलियम न्यूटन ने वैक्यूम सुखाने की प्रक्रिया का पेटेंट 1837 की शुरुआत में कराया था। आज बाजार में लिक्विड दूध के साथ-साथ सूखे दूध की प्रचुरता है। दूध और डेयरी फार्मिंग में लगे लोगों के स्वरोजगारोन्मुखी पहल तो सरहानीय है। लेकिन दूध में कृत्रिम मिलावट भी खतरे की ओर इशारा करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी दूध में मिलावट के खिलाफ भारत सरकार के लिए एडवायजरी जारी कर चुका है। इसमें संगठन ने साफ कहाँ हैं कि यदि देश में मिलावटी दूध और उससे बनने वाले उत्पादों पर रोक नहीं लगाई तो आने वाले वर्ष 2025 तक भारत की 87 फीसदी आबादी कैंसर जैसे जानलेवा रोगों की गिरफ्त में होगी। इसके साथ ही अगर मिलावटी दूध पर रोक नहीं लगी तो वो दिन दूर नहीं जब दूसरे देशों से दूध को मंगवाना पड़ेगा। दूध की मिलावट को लेकर कानून तो कई बने हैं, लेकिन इनका पालन सिर्फ कागजों में ही होता है। मिलावट करने वालों के लिए कानून बने है लेकिन अफसर इन पर कड़ी कार्रवाई नहीं करते है। आज भी कई ऐसी जगह है जहां पर बार-बार छापा पड़ता है लेकिन लोग छूट जाते हैं।
                वहीं दूसरी ओर दूध के बढ़ते दाम भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों के लिए ऊँचे दीवाल की कील है। जिस तक पहुंच बनाना भी टेढ़ी खीर है। वहीं मिलावट के कारोबार में डर यह भी लगता है की शुद्ध दूध पी रहे हैं या सफेद जहर यह एक बड़ा प्रश्न है। कभी चाय की चुस्की में दूध, कभी मक्खन की रबड़ी में दूध। दूध जो पौष्टिकता से भरपूर है, जिससे शरीर सबलता ग्राही होता है। जो दूध डेरी से डब्बों में पैक्ड होकर, गांवों की गलियों को पार करते हुए। नगर, शहर, या बिहड़ तक पहुंच जाती है। जिसका व्यावसायिकता तेजी से बढ़ रही है। उसकी शुद्धता का मानकीकरण होना भी अनिवार्य है। 



लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़