(हिन्दी पत्रकारिता दिवस)
सुबह की पहली किरण के साथ-साथ ढ़लती निशा के दरमियाँ बेतरतीब दौड़ भाग करता एक विशेष वर्ग हमारे बीच निवास करता है। इस वर्ग के लोगों का उद्देश्य केवल और केवल सूचनाओं को सटीकता से लोगों के बीच पहुचाना है। इसी संदर्भ में डॉ. अर्जुन तिवारी कहते हैं कि, 'ज्ञान और विचारों को समीक्षात्मक टिप्पणियों के साथ शब्द, ध्वनि तथा चित्रों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाना ही पत्रकारिता है। यह वह विद्या है जिसमें सभी प्रकार के पत्रकारों के कार्यो, कर्तव्यों और लक्ष्यों का विवेचन होता है। पत्रकारिता समय के साथ समाज की दिग्दर्शिका और नियामिका है।' आप समझ ही रहें हैं, मैं जिस वर्ग की बात कर रहा हूँ वह वर्ग पत्रकारों का है।
एक पत्रकार जो सूचनाओं, घटनाओं, विशेष परिस्थितियों को स्व विवेक से अवलोकन करता है। उसे लगता है की वह उसकी गंभीरता के अनुरूप विचार-विमर्श करता है। मुद्दा यदि लोकहित में हो, तो निश्चय ही उसे अखबार या सूचना विस्फोट के किसी भी संसाधन के माध्यम से प्रसारित करता है। इसे विस्तृत रूप में डॉ. बद्रीनाथ कपूर कहते हैं कि, 'पत्रकारिता पत्र पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख एकत्रित तथा सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश देने का कार्य है।' लेकिन प्रकाशन के पूर्व भी सूचनाओं के संकलन, पूनर्निरीक्षण में एक पत्रकार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस पर प्रकाश डालते हुए हिन्दी शब्द सागर के कथनानुसार, 'पत्रकार का काम या व्यवसाय पत्रकारिता है। वहीं इसको विस्तार प्रदान करती परिभाषा श्री प्रेमनाथ चतुर्वेदी के शब्दों में मिलता है।जिसके अनुसार, 'पत्रकारिता विशिष्ट देश, काल और परिस्थिति के आधार पर तथ्यों का,परोक्ष मूल्य का संदर्भ प्रस्तुत करती है।'
बात करें हिंदी पत्रकारिता के जड़ों के संदर्भ में तो 30 मई 1826 को भारत में प्रकाशित होने वाला पहला हिंदी भाषा का अखबार, उदंत मार्तंड शुरू हुआ। इस अखबार की प्रारंभिक पाँच सौ कापियों से लेकर आज भारतीय समाचार/मीडिया दूनिया का दूसरा सबसे बड़ा सूचनाओं का विस्तृत क्षेत्र है। ट31 मार्च 2018 तक, भारतवर्ष के समाचार पत्रों के रजिस्ट्रार के पास एक लाख से अधिक प्रकाशन पंजीकृत थे। भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा समाचार पत्र बाजार है, जिसमें दैनिक समाचार पत्र 2018 तक 240 मिलियन से अधिक प्रतियों के संयुक्त संचलन की रिपोर्ट करते हैं। जिसमें हिन्दी का बोलबाला है।
एक पत्रकार, जो सूचना को लोगों तक पहुँचाने के प्रयास में लगे रहते हैं। जिनका लक्ष्य सारकरण के साथ-साथ सारगर्भित सूचनाओं को तात्कालिक परिदृश्य के साथ उतारने की प्रयास किया जाता है। लोगों की वेदनाओं और संवेदनाओं को लोगों तक पहुचाने वाले इन पत्रकारों का दर्द आखिर कौन बयाँ करें। कुछ चिन्हाँकित पत्रकारों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल जाता है। लेकिन संवाददाताओं के हितों के प्रति विचार-शक्ति लगभग शून्यता की ग्राही हो जाता है।
बहरहाल, रिपोर्टर्स विथाउट बॉर्डर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 'भारत, पत्रकारिता के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में शामिल है।वास्तव में, इसी संस्था द्वारा जारी 2021 की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 142वां स्थान मिला था। जो बताता है कि भारत में पत्रकारिता की स्थिति कितनी खराब है।' इन रंजिशों के पीछे कही ना कही लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारिता के स्वरों को मुखर करते तथाकथित पत्रकारों की है जो समाज सेवा की इस पवित्र क्षेत्र में डोपिंग के छीटें मारने की कोशिश करते हैं। लगातार बढ़ते संस्करण और पत्रकारिता के होने वाले नवांकुरण से सूचनाओं के छुपने या दबने का सवाल नहीं है। संभव है, आगामी समय में हम पत्रकारिता के स्तंभ को और सशक्त बनाएंगे।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़