(अभिव्यक्ति)
पान ठेले के सामने टशन के साथ सिगरेट के धूएं से छल्ले बनाते युवा, वयस्क और वृद्धों को आप ने अवश्य ही देखा होगा। कुछ ऐसे भी हैं जिन्हे देखकर भावी समय के युवाओं को नशे के जद में जाते हम देख रहे हैं। कुछ तो ऐसे भी होंगे जो खूद भी धुम्रपान की तल से ग्रसित होगें। आपको पता है वनस्पति जगत के सोलानेसी परिवार के जीनस निकोटियाना में कई पौधे पाये जाते हैं। इन पौधों की स्वस्थ पत्तियों से तैयार की गई किसी भी उत्पाद के लिए सामान्य शब्द तंबाकू है। तंबाकू की 70 से अधिक प्रजातियां इस पृथ्वी पर पायी जाती हैं। उनमें से मुख्य व्यावसायिक फसल एन टैबैकम है।
प्रारंभिक दौर की बात करें तो तंबाकू सबसे पहले 6000 ईसा पूर्व, में मेसो-अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के देशी लोगों द्वारा खोजा गया और यहीं से तंबाकू उत्पादन प्रारंभ हुआ। प्रारंभिक दौर में किसे पता था तात्कालिक खोज जो औषधीय और औपचारिक उद्देश्यों के अलावा पाइपों से इसे धूम्रपान करने के लिए था। वह भावी समय में बहुत बड़ी समस्या को जन्म देने वाला था। अक्टूबर सन् 1492 में, क्रिस्टोफर कोलंबस को मूल अमेरिकी ऐराविक के द्वारा, सूखे तंबाकू के पत्तों को उपहार में दिया गया। कोलम्बस के हाथों से होते हुए ये बहामा, यूरोप तक पहुचा, जहाँ इस पर शोध हुए। सन् 1609 में, जॉन रॉलफे इंग्लिश कोलोनिस्ट जे अमेरिका के वर्जीनिया के जेम्सटाउन शहर में व्यावसायिक उपयोग करने वाला पहला व्यावसायिक बन गया।
भारतवर्ष में तंबाकू के प्रचलन का साक्ष्य अकबर बादशाह के समय से मिलता है। उनको चिलम बहुत पसन्द आई, उन्होनें चिलम पीने की कला पुर्तगाली से सीखा। अकबर को धूम्रपान करते देखकर उसके दरबारियों को बहुत आश्चर्य हुआ। इस प्रकार भारत में सन् 1609 के आस-पास धूम्रपान की शुरूआत हुई। भारत में तम्बाकू का पौधा पुर्तग़ालियों द्वारा सन 1608 ई. में लाया गया था। तंबाकू की खेती भारत में तभी से प्रारंभ माना जाता है। भारत विश्व के उत्पादन का लगभग 7.8 प्रतिशत तम्बाकू उत्पन्न करने वाला राष्ट्र है। तंबाकू के उद्योग से सालाना 6,000 करोड़ रुपये की विदेशी आय है। भारत में लगभग 4.57 करोड़ लोग तंबाकू उद्योग और इससे संबंधित क्षेत्र में रोजगार से जुड़े हैं। रिपोर्ट के अनुसार देश के 60 लाख किसान तंबाकू की खेती रोजगार स्वरूप करते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे के अनुसार, भारत की कुल 130 करोड़ आबादी में से 28.6 फीसदी लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। रिपोर्ट में ज्ञातव्य है कि, करीब 18.4 फीसदी युवा न सिर्फ तंबाकू, बल्कि सिगरेट, अफीम, गांजा जैसे अन्य खतरनाक मादक पदार्थों का सेवन करते हैं और ये आकड़े दिनो दिन बढ़ रहे हैं।
ये आकड़े चौंकानें वाले हैं और भावी समय के लिए चेतावनी भी है। तनाव, डिप्रेशन और अतिमहत्वाकांक्षा के चलते विफल परिणामों के कारण नशे के जद में युवा पीढ़ी आ रही है। वर्तमान समय में स्कूलों में पढ़ने वाले छोटे बच्चों में भी खैनी, तंबाकू, पान-मसाला और गुटखा खाने की स्थिति भी किशोर और युवाओं के मानसिक अवसाद का कारण है। जो भावी समय के लिए चिंता का विषय है। वहीं बच्चों को नशे की खेप की ओर ढ़केलने वाली परम्परा के उद्योतक कोई और नहीं बल्कि उनके अपने है। जो उनसे इन नशीले पदार्थों की खरीदारी करने भेजते हैं। इसे वे मनोवैज्ञानिक रूप से तंबाकू के सेवन के लिए भी लालायित होते रहते हैं। वहीं धड़ल्ले से बिक रहे तंबाकू उत्पादों पर नियंत्रण ना होना परेशानी का सबब है। तंबाकू का प्रयोग वैज्ञानिक मधुमेह सहित कई ऑटोइम्यून और सूजन संबंधी बीमारियों के लिए दवाओं का उत्पादन करने के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित तंबाकू के पौधों का उपयोग करने में सफल रहे हैं। जो तंबाकू की उपयोगिता के लिए एक नवीन अौषधि के रूप में प्रासंगिक हों,तो ज्यादा उचित होगा।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़