Wednesday, June 29, 2022

एल्बिऩिज्म से पीड़ित लोगों का उपहास नहीं,सहयोग करें/ Do not ridicule people with albinism, cooperate



                              (विचार

बेहद सरल शब्दों के फेरों से प्राथम्य का आरोहण करना चाहता हूँ, जिसमें एल्बिऩिज्म से जुझ रहे लोगों के विभिन्न सामाजिक पहलूओं के परिदृश्य में समझने का प्रयास करते हैं। वो कहते हैं ना, 'जो सबके जैसा नहीं होता होता है। उसे सब भी अपने जैसे नहीं समझते हैं। चाहे उसकी व्यावहारिक प्रकृति सबके जैसे क्यों ना हो?' थोड़े असमंजस में पड़ गए आप तो, चलिए कान उल्टा नहीं सीधे तरीके से पकड़ने की कोशिश करते हैं। हम सभी ने जीवन में कभी ना कभी ऐसा व्यक्ति देखा जरूर होगा, जो पूर्णरूपेण स्वेत-मानव के समान दिखाई दिया होगा। जिसकी तुलनात्मक भाषा में खिल्ली ऊड़ाते हमें अंग्रेज़े भी कह दिया होगा। जबकी वास्तविक से हम अंजान रहते हैं। बस फर्क सिर्फ इतना है की वो हमारे रंग से भिन्न, रंगहीन प्रदर्शित होता है। ये बिना सोचे, बिना जाने ही मजाकियें लहजे में तानाकशी के गुलेल मार देते हैं। कुछ मूह छुपाते हसते हुए, प्रतिकात्मक विरोधाभास प्रदर्शित करते हैं।ग्रामीण इलाकों में ऐसे बच्चों और बड़ों को अंधविश्वासों से गढ़े कहानियों के कई प्रतिनिधि पात्र बना दिये जाते हैं। इसी संदर्भ में वर्ष 2000 के मध्य में, तंजानिया में एल्बिनिज़्म से पीड़ित लोगों पर अचानक हमले होने लगे, यह खबरें जब देश-दुनियाँ तक पहुंची तो लोग सन्न रह गए। इन लोगों पर हमले की उद्देश्यिका जादूई शक्ति को बताया गया और यह भी कहा जाता रहा है कि एल्बिनिज़्म से पीड़ित लोगों के पास जादुई शक्तियां होती है। अब जादुई शक्तियाँ हैं को जाहिर सी बात है, उन्हें लकी चार्म और गुप्त अनुष्ठानों में उपयोग के लिए अंगों के लिए शिकार किया गया था। यह बेहद अमानवीय और अनैतिक था, लेकिन घटनाएं तो घट ही रही थी। वर्ष 2015 में लगभग 70 लोग मारे गए और कई लोगों घायल किए गए। तंजानिया एल्बिनिज़्म सोसाइटी और अन्य गैर-सरकारी संगठनों ने एल्बिनिज़्म से पीड़ित लोगों के अधिकारों की रक्षा की पैरवी की थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा में वर्ष 2014,18 दिसंबर को एक प्रस्ताव  स्वीकृति प्रदान करते हुए,13 जून को अंतर्राष्ट्रीय एल्बिनिज़्म जागरूकता दिवस के रूप में 2015 से घोषित किया गया।
            रंगहीनता जन्म के समय मौजूद एक दुर्लभ गैर-संक्रामक आनुवंशिक रूप से अंतर है। इस बीमारी में त्वचा पर पिगमेंट की अल्पता हो जाती है। जिससे त्वचा का रंग हल्का होने लगता है। त्वचा व बालों को रंग मेलेनिन नामक एक पिगमेंट से मिलता है। लेकिव, कुछ लोगों में यह तत्व बहुत कम होता है, जिसे ऐल्बनिज़म कहा जाता है। केवल इंसान ही नहीं बल्कि जानवर, पेड़-पौधे और पादपों में भी रंगहीनता की बीमारी होती है। युएन के अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन के आकड़े बताते हैं की ना सिर्फ तंजानिया, केन्या, अफ्रिका सहित कई देशों में इस बिमारी से शिकार लोगों पर हमले हुए हैं। वहीं भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में लगभग एक लाख लोग एल्बिऩिज्म के शिकार हैं।
             एल्बिऩिज्म से पीड़ित लोग कोई अलग नहीं है। वो भी हमारी तरह जीवन-यापन करते हैं। जैसे हमें हमारी प्राइवेसी और सोसाइटी राइट्स मिले हैं। उनके भी राइट्स समान होते रंग के नाम पर या थोड़े अलग दिखने के कारण उनका मजाक या अंधविश्वासों से गढ़ीत कहानियों के तर्क पर उन लोगों को परेशान करने या प्रताड़ित करने का अधिकार किसी को नहीं है। हमें तो खूले दिल सभी लोगों को आपसी सौहार्द्र बनायें रखने के लिए एकता का प्रयास करना चाहिए। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़