(अभिव्यक्ति)
एक घटना तार्रुफ़ करता हुए इस आलेख को प्राथम्यता देने का प्रयास कर रहा हूँ, बात है 16 दिसंबर 2014 को पाकिस्तान के पेशावर के एक आर्मी स्कूल में हुए आतंकी हमले में 148 लोग मारे गए थे, इनमें 132 स्कूली बच्चे थे। गौरतलब है कि इस हमले के बाद गठित एक मिलिट्री कोर्ट ने 4 आंतकवादियों को फांसी की सजा सुनाई थी। ध्यान देने वाली बात यह है की बंदूक,कारतूस और फटते बमों के आवाज में कहीं ना कहीं मासुमियत सहम जाती है। दो राष्ट्रों या दो से अधिक राष्ट्रों के बीच जारी जंग में कई बच्चें यतीम और बेघर हो जाते हैं। ऐसा भी नहीं है की केवल जंग ही बच्चों के बौद्धिक, सामाजिक, पारिवारिक, शारीरिक या आर्थिक रूप से शोषण करता है। बल्कि समाज में आज घट रही घटनाएं चिंता का विषय है। इसी संदर्भ में यूनिसेफ कहता है, बच्चों के खिलाफ हिंसा पर रोक
सभी बच्चों को हिंसामुक्त,सुरक्षित वातावरण में विकसित होने का अधिकार है। बच्चों के खिलाफ हिंसा न केवल उनके जीवन और स्वास्थ्य को,बल्कि उनकेभावात्मक कल्याण और भविष्य को भी खतरे में डालती है। भारत में बच्चों के खिलाफ हिंसा अत्यधिक है और लाखों बच्चों के लिए यह कठोर वास्तविकता है। दुनिया के आधे से अधिक बच्चों ने गंभीर हिंसा को सहन किया हैं और इस तादाद के 64 प्रतिशत बच्चे दक्षिण एशिया में हैं।
सभी बच्चों को हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार से सुरक्षित रहने का अधिकार है। फिर भी,दुनिया भर में सभी सामाजिक- आर्थिक पृष्ठभूमि के सभी उम्र,धर्मों और संस्कृतियों के लाखों बच्चे हर दिन हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं। यह हिंसा शारीरिक,यौन और भावनात्मक हो सकती है और उपेक्षा का रूप भी ले सकती है। यह हिंसा अंतर्वैयक्तिक हो सकती है और उन संरचनाओं का परिणाम है जो हिंसक व्यवहार को अनुमति और बढ़ावा देते हैं।
सर्वप्रथम हमनें हिंसक मर्मस्पर्शी उदाहरण से समझा की बच्चों के मन:स्थिति को तोड़ने के लिए बारूदी गंध काफी है। लेकिन बौद्धिक और शारीरिक रूप से क्षरण सामाजिक पृष्ठभूमि पर होता है। आंकड़े कहते हैं की प्रत्येक तीन में से दो बच्चे शारीरिक शोषण के शिकार बने। शारीरिक रूप से शोषित 69 प्रतिशत बच्चों में 54.68 प्रतिशत लड़के थे। 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे किसी न किसी प्रकार के शारीरिक शोषण के शिकार थे। पारिवारिक स्थिति में शारीरिक रूप से शोषित बच्चों में 88.6 प्रतिशत का शारीरिक शोषण माता-पिता ने किया। साक्ष्य दिखाते हैं कि हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार अक्सर बच्चे के जानकार व्यक्ति द्वारा किया जाता है। इसमें माता-पिता,परिवार के अन्य सदस्य,उन्हें देखभाल करने वाले,शिक्षक, मालिक, कानून प्रवर्तन अधिकारी, राज्य और गैर-राज्य संबंधित और अन्य बच्चे शामिल हैं।
ऐसा भी नहीं है की केवल सामाजिक पृष्ठभूमि तक बाल-शोषण सीमित है। वर्तमान प्रौद्योगिकी के दौर में इंटरनेट के द्वारा भी बाल शोषण हो रहा है। कुछ तथाकथित लोगों में बच्चों को इंटरनेट पर अश्लील सामग्री और कामुकता परोसने का व्यापार धड़ल्ले से चल रहा है। जहाँ ऐसे घटनाओं के शिकार बच्चों के बौद्धिक विकास को पूर्णरूपेण अवरूद्ध कर समाज से पृथकतावादी विचारधारा के समूह में ला खड़ा करता है। बहरहाल, समय को साथ बहुत अवेयरनेस भी पेरेंट्स में बढ़ रही है। यह अच्छे परिवर्तन का द्योतक है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़