Wednesday, June 29, 2022

भारत के 15वें राष्ट्रपति पद के चुनाव में पहली बार आदिवासी समीकरण/ Tribal equation for the first time in the 15th presidential election of India


                      (परिदृश्य
आदिवासी शब्द से तात्पर्य है आदि+वासी से जिसका अर्थ मूल निवासी होता है। भारत की जनसंख्या का 8.6 फिसदी यानी 10 करोड़ जितना एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है। पुरातन लेखों में आदिवासियों को अत्विका कहा गया है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आदिवासियों को गिरिजन कह कर पुकारा है। इतने बड़े जनमानस समूह के लिए आजादी के बाद लगभग 74-75 वर्षों तक देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद से चयन के संदर्भ में कई बार राजनीतिक गलियारें में हलचल मचीं। लेकिन हलचल को ठंडे बस्ते में जाते देर कहाँ । इस बार भारत के 15वें राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में ओड़िशा की रहने वाली और झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू जो कि झारखंड की पहली महिला राज्यपाल रही हैं। 18 मई 2015 को उन्होंने झारखंड की पहली महिला और आदिवासी राज्यपाल के रूप में शपथ ली थी। वह छह साल, एक महीना और 18 दिन इस पद पर रहीं। बहरहाल ये झारखंड की पावन धरती जहाँ ऐतिहासिक आदिवासियों के गौरव गाथा आज भी विद्यमान है। जहाँ बिरसा मुंडा जैसे महानायकों की बिहार और झारखंड के विकास और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका है। श्रद्धेय मुंडा के कार्यों और आंदोलन की वजह से बिहार और झारखंड में लोग बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजते हैं। बिरसा मुण्डा ने मुण्डा विद्रोह पारम्परिक भू-व्यवस्था के जमींदारी व्यवस्था में बदलने का प्रमुख कारण रहा है। वहीं आदिवासियों के प्रेरणा श्रोत और माउंटेन मैन दशरथ माँझी है। जो बिहार में गया के करीब गहलौर गाँव के एक गरीब मजदूर थे। जिन्होंने सिर्फ एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली।
            ऐसे ही उदाहरणों में छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य से आने आ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल वीर सेनानी छत्तीसगढ़ के तात्या टोपे यानी बस्तर के बागा धुरवा का नाम जेहन में आता है। गुंडाधुर विद्रोह के कारण अंग्रेजों ने ही बागा धुरवा को गुंडाधुर की उपाधि दी थी। इतिहास के पन्नों में दर्ज शहीद गुंडाधुर का व्यक्तित्व और कृतित्व आज भी लोगों में मन में जिंदा है। ऐसे ही उदाहरणों में वीर नारायण सिंह सहित कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे जो देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। वर्तमान समय में भी आदिवासी के द्वारा राष्ट्र को समर्पित सैन्य सेवाओं से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक और राजनीति पहलुओं से विज्ञान केे क्षेत्रों तक आदिवासी सजग, जागरूक और आधुनिक हो रहा है। लेकिन जल, जंगल और जमीन से जुड़े आदिवासी समुदाय के लोगों के हाथों संवैधानिक पद में पदासीनता से पृथक रखने का मंशा का गुबार इस बार टूट गया है।
               बीते 21 जून की शाम बड़े एतिहासिक सूचनाओं को जन्म देने वाला था। उस शाम बीजेपी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा की। आदरणीया द्रौपदी मुर्मू जो नई दिल्ली से 16 सौ किलोमीटर दूर ओडिशा के राय रंगपुर में अपने निवास में रहती हैं। उनका एक दिन पूर्व ही 20 जून को जन्मदिन था। उनके लिए यह जन्मदिन के अवसर पर 135 करोड़ लोगों के द्वारा अविस्मरणीय भेंट के समान है। बहरहाल, राजनितिक समीकरणों में आदरणीया मुर्मू के नाम का राष्ट्रीय पद के उम्मीदवार के रूप में सामने रखना और चुनावी परिणाम के उपरांत यदि वह विजयश्री प्राप्त करती हैं तो वे, भारतवर्ष में पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में आनंदित होगीं। इसके साथ ही आदिवासी समुदाय के किसी सदस्य का सर्वोच्च संवैधानिक पद पर नहीं बैठने का मलाल भी खत्म हो जायेगा। वहीं सीधे-सीधे 8.6 फिसदी आदिवासी समुदाय का वोट बैंक का आशीष एनडीए की ओर होगा। वहीं उभरते, जागते और बढ़ते आदिवासी समुदाय के युवाओं के लिए आदरणीया द्रौपदी मुर्मू एक प्रेरणा स्त्रोत होंगी जिन्होंने सर्वोच्च संवैधानिक पद की आसंदी को धारण किया है। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़