(व्यंग्य)
दफ्तर के बाहर बाबु साहब नये-नये नोटो के करारे नोट गिन रहे थे। देख कर लगा पगार मिला है। लेकिन महीनें के बीच में पगार का आना थोड़ा आश्यर्यचकित करने वाला मसला है। बाबु साहब के चेहरे पर चमक और नोटो की रंगत बता रही थी की ये नोट अभी-अभी एटीएम से निकल कर आये है। उनको देखते-देखते बिरझू भईया के टी-स्टाल में पहुच गए। बिरझू भईया भी बड़े पहुचे हुए। उनकी नजर की धार इतनी पैनी की किस समय कौन से बाबू बाहर आकर, नोट गिनने की मुद्रा में हो यह निश्चित ही बता देते हैं। फलां का टाइम आउट हो गया है। अब छोटे बाबू दौड़ते हुए बाहर निकलेंगे बोले, और फट से जैसे जादू मंतर हो जैसे छोटे बाबू निकले वो भी वहीं क्रिया कर रहे हैं। बिरझू भैया ना बताया, दफ्तर के अंदर सीसीटीवी नामक बीमारी है। जहां पैसे टेबल के नीचे ले तो लिए, लेकिन गिनने लगे तो कैमरा कैद कर लेगा इसलिए बाहर निकलकर नोटो के वादायगी का जाँच कर लिया जाता है। बहरहाल, लेने देन की प्रक्रिया को पैसे या भ्रष्टाचार बिलकुल नहीं कहाँ जाता है। हाँ चाय-पानी, हरियाली का सुख, लिफाफा, मिठाई या उपहार नामक संज्ञा दिया जाता है। पेशे से मैं भी बेरोजगार, बेरोजगारों का एक मात्र ठिकाना सोशलमीडिया जहाँ, पहले ही हिन्दू-मुस्लिम,कभी ईसाई हो रखा है। इससे पार पायें तो, दलित-सवर्ण, नहीं तो बचे खुचे में जवानी बढ़ाने वाले औषधीय विज्ञान या फिर नग्नता ग्राही मार्केटिंग लाईनों पर नाचती सुर्खियों के भंडार पर मत्था फोड़ लेते हैं। इसी बीच किसी विश्वविद्यालय के स्कालर को पेटेंट मिलने की खबर लिंक्स में पटकी मीली। पढ़ा तो लगा ये तो नया है, इंटरनेट ने वैसे भी लड़कों को बावरा बना रखा है। जो 30 सैकेंड की अतरंगी नाचती लड़की को महिने के तीसों दिन घूरते देखते रहते हैं। मैने पेटेंट के फायदे पढ़े। पेटेंट यानी एक ऐसा कानूनी अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी विशेष उत्पाद, खोज, डिजाईन, प्रक्रिया या सेवा के ऊपर एकाधिकार देता है। पेटेंट प्राप्त करने वाले व्यक्ति के अलावा यदि कोई और व्यक्ति या संस्था इनका उपयोग (बिना पेटेंट धारक की अनुमति के) करता है तो ऐसा करना कानूनन अपराध माना जाता है।
मैनें तुरंत सोच लिया,सूचना का अधिकार, लोकपाल और सीसीटीवी के जरिये भ्रष्टाचार कम होने के लिए जो कवायद लोगों के द्वारा हे रहे हैं। उस पर तो मैं चुटकियों में लगाम लगा सकता हूँ क्योंकि, भ्रष्टाचार पर पेटेंट अधिकार तो अवश्य ही पा सकता हूँ। पूरे इंटरनेट तक खंगाल डाले कहीं भी भ्रष्टाचार पर एकाधिकार नहीं मिला। मिला तो भ्रष्टाचार के जन्म, कारण, कथन और विद्वानों की परिभाषा कहीं नहीं थी, पेटेंट होल्डर, तो बढ़ गई मेरी आशा। सोचा पेटेंट कार्यालय जाकर तत्काल भ्रष्टाचार के लेन-देन प्रक्रिया की खोज को पेटेंट कराऊंगा। जैसे टेबल के नीचे से, दफ्तर के बाहर पान के ठेले से, चपरासी के सब सेटिंग है कहने वाले शब्द भी जोड़कर भ्रष्टाचार पर एकाधिकार जरूर पाऊँगा। मेरे मस्तिष्क में जाने विभिन्न विचारों के मेघ टकरा रहे थें। क्योंकि भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक (सीपीआई) 2021 में 180 देशों की सूची में भारत को 85वां स्थान मिला है। यानी मेरे भ्रष्टाचार पर पेटेंट होल्डर होने के बाद जो भी इन प्रक्रियाओं से चाय पानी लेंगे। वो मेरी मर्जी के बीना, टेबल के नीचे हाथ फैला नहीं सकते हैं। मेरे एनओसी के बगैर दो चार पैसे कमाने नहीं सकते, सोचकर मंद मुस्कुरा रहा था। पूरे भ्रष्टाचार पर एकस्व नियंत्रण पा रहा था।
तभी जोर की आवाज आई, प्राज उठ सुबह के 10 बज रहे हैं। काठ का उल्लू उठेगा कब??? फिर पानी के छीटें पड़े चेहरे पर, फिर चेहरे पर पानी का बाढ़ आया। आँख खूली मम्मी के हाथ में खाली ग्लास, मेरा चेहरा भीगा हुआ। मैंने कहाँ, मम्मी ये सब सपना है???
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़