(अभिव्यक्ति)
छटवीं कक्षा के हिन्दी के पर्चे में विज्ञान के चमत्कार का निबंध लिखने पर दस अंक निर्धारित होते हैं। स्कूली स्तर की शिक्षा में हमनें यह भी अवश्य देखा है की यह प्रश्न साल दर साल दसवी के परीक्षा तक साथ देता है। कुछ रट्टामार पद्धति के उत्कृष्ट विद्यार्थियों ने छटवी के निबंध का रट्टा संधारण कर रखा था। जो हर साल ज्यों का त्यों उतार देते थे। लेकिन बड़ा प्रश्न जो मेरे मन में घर करता था वह प्रश्न था की, भला हिन्दी के निबंध में विज्ञान की अवधारणा का प्रवाह आखिर क्यों होता है। संभवतः यह प्रश्न कई स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम उत्तीर्ण छात्रों के मन में अवश्य ही आया होगा। कुछ ऐसे भी लोग होंगे जिन्हे सिर्फ दस नम्बर पाने से मतलब रहा होगा। लेकिन मन तो अपना भी मानता भी नहीं है।
निबंध को परिभाषित करते हुए बाबू गुलाबराय कहते हैं की, 'निबंध उस गद्य-रचना को कहते हैं, जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छंदता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।'
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल निबंध को और उच्च स्तर की ओर ले जाते कहते कि, 'यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है, तो निबंध गद्य की कसौटी है। भाषा की पूर्ण शक्ति का विकास निबंध में ही सबसे अधिक सम्भव होता है।'
सरलार्थ में कहें तो, निबंध लिखने का मुल उद्देशिका किसी विषय-वस्तु को तर्क और तथ्यों के ढांचे में संजोकर व्यवस्थित रूप देना है। ताकि उस विषय वस्तु को और अधिक गहराई से समझा जा सके और परखा जा सके। किसी भी विषय केन्द्रीत निबंध को लिखने के लिए उस विषय के बारे में पूर्ण जानकारी अनिवार्य शर्तों में से एक है।
हम निबंध की उद्देशिका तो समझ गए, लेकिन प्रश्न अभी भी अडिगता से खड़ा है की हिन्दी के पर्चे में विज्ञान के चमत्कार पर निबंध क्यों? इसका जवाब है स्कूल स्तर से ही विज्ञान के विषय में बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और विज्ञान के प्रति रूचि पैदा करना है। निबंध के सृजन कौशल का मूल है विषय की पूर्ण समझ, सीधे शब्दों में कहें तो बच्चे जो विज्ञान के चमत्कार निबंध लिखते हैं। उसके साथ उनमें विषय की रूचिशुचि और विज्ञान के आगामी कक्षाओं में पठन की ललक और जिज्ञासु प्रवृत्ति तैयार होती है। जो हाई स्कूल सर्टिफिकेट की परीक्षा के उत्तीर्णोपरांत, हायर सेकेंडरी में विज्ञान के विभिन्न शाखाओं में अध्ययन करें।
प्रारंभिक शिक्षा में दसवी के बाद, वैसे भी अधिकांश बच्चों में विज्ञान चयन को लेकर भय/फोबिया दिखाई पड़ता है। वे विज्ञान से कहीं ज्यादा सरल विषयों के समझ की ओर बढ़ जाते हैं। प्रायः किशोरियों की संख्या विज्ञान जैसे संकाय में कम देखने को मिलता है। वहीं उच्च शिक्षा के चौखट तक पहुचते-पहुचते कई स्वच्छ और उत्कृष्ट मस्तिष्क विज्ञान से किनारा कर लेते हैं। इससे एक ओर जहाँ भावी पीढ़ी में अनुसंधान की अल्पता प्रदर्शित होती है। वहीं दूसरी ओर उत्कृष्ट मस्तिष्क का अन्यत्र विषयों में अपने क्षमता को लगा देते हैं।
वास्तव में हमें स्कूली स्तर पर छात्रों में विज्ञान के प्रति रुचि का विकास, विज्ञान संचारकों एवं शिक्षकों का प्रशिक्षण,उच्च शिक्षण संस्थानों में विज्ञान संचार के औपचारिक अध्ययन तथा अध्यापन और वैज्ञानिक संस्थानों में कुशल विज्ञान संचारकों की नियुक्ति को प्रोत्साहन दिया जाए तो विज्ञान जैसे गंभीर और अन्वेषण वाले विषय में नव युवा वैज्ञानिकों की खोज करने में मदद मिल सकता है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़