Saturday, May 21, 2022

पारिस्थितिकी तंत्र का अभिन्न हिस्सा हैं सरीसृप वर्ग : प्राज / Reptiles are an integral part of the ecosystem


                      (अभिव्यक्ति


प्राचीन समय से ही हमारी संस्कृति,सभ्यता और दर्शन प्रगाढ़ रही है। जिसमें दूरदर्शी दृष्टिकोण और वैज्ञानिकता प्रधान तत्व के रूप में समाहित है। प्रत्येक जीवन के पड़ाव, पहलुओं, संस्कारों और कर्तव्यों के पीछे दूरगामी परिणामों का संरक्षण देखने को मिलता है। हमारी संस्कृति में पशु, पक्षी, जीवित और निर्जीव सभी के लिए एक यथा स्थान अवश्य है। यह पूरातन काल से चली आ रही संस्कृति में विचारों का आदान-प्रदान पीढ़ी दर पीढ़ी होते रहा है। लोगों ने हमारी संस्कृति विरासतों और परम्पराओं में निहित वैज्ञानिकता को समझ कर पेटेंट कृति कर अपने आप को वैभवशाली समझने के मिथक-मरीचिका में जी रहे हैं। हमनें सर्वे भवन्तु सुखिनः का नारा दिया जिसका तात्पर्य है। सभी को सुख मिले। यानी पृथ्वी पर जीतनी भी जीवित, मृत चर या अचर हैं उनका कल्याण हों। इस दर्शन जैविक विविधता के रूप सभी के पारिस्थितिकी में अवश्य का सिद्धांत निकाला गया है। जिसमें प्रत्येक जीव के उपस्थिति के महत्व पर केन्द्रित स्तर मॉडल निर्मित किया गया। ऐसे ही कई पारिस्थितिकी में एक जीव है सर्प,पृष्ठवंशी सरीसृप वर्ग का प्राणी है। जिसे डच में कोबरा, फ्रैंच में सरपेंट, स्वीडिश में ओर्म कहते हैं। इस सरीसृप का पारिस्थितिकी में अद्वितीय योगदान होता है।
               सर्प जिनका हमारी संस्कृति में पूजनीय स्थान है। लोक कथाओं में सर्प के संरक्षण के संबंध में उसकी हत्या की मनाही है। वहीं इसका मनोवैज्ञानिक रूप में डर बिठाने के लिए सर्प के आखों में मारने वाले की तस्वीर के अंकन जैसी मनगढंत बातें भी मिलती है। जिससे सर्प के साथियों के द्वारा बदला और सर्प के इच्छाधारी जैसे कई किवदंतियाँ, कहानी और मान्यताओं का साक्ष्य अवश्य ही मिल जायेगा। जिसके पीछे की वैज्ञानिकता थी सापों का संरक्षण निरंतर और निर्बाधता से होता रहे। लोगों में तर्कसंगत विचारों के कहीं अधिक धार्मिकता से जुड़े विचार होते हैं। जिसके फलन सर्पों की पूजा भी सम्मिलित है।
                परिस्थितिकी के अंतर्गत सभी जीवों की हिस्सेदारी आवश्यक है। तर्ज करें की यदि किसी पारिस्थितिकी में किसी भी एक जीव का विनाश होना। निश्चित है की उस पारिस्थितिकी के विलोपन का कारण बनता है। जैसे पहले उपभोक्ता का यदि पारिस्थितिकी के चक्र में शून्यता हो तो, द्वितीय उपभोक्ता और तृतीयक के जीवन पर संकट आयेगी। वहीं उत्पादकों की संख्या में वृद्धि होगी। जिसके भक्षण ना होने से बेतहाशा वृद्धि भी संभव है। इसी बात को समझाने के प्रयास से श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि, 


 एतावज्जन्मसाफल्यं देहिनामिह देहिषु।
प्राणैरर्थधिया वाचा श्रेय एवाचरेत् सहा॥

तात्पर्य है की प्रत्येक जीव का अपना दायित्व और कर्तव्य है कि वह अपने प्राण, धन, बुद्धि तथा वाणी से अन्यों के लाभ हेतु कल्याणकारी कर्म करे। वर्तमान समय में मनुष्य के इंस्टैंट मैगी वाली विचारधारा के चलते पारिस्थितिकी तंत्रों का विलोपन प्रारंभ हो गया है। सरीसृप का लोगों में देखते ही मार देने की विचारधारा के चलते सापों की अवस्थिति संकट में है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित होने के बाद,सर्प के पाए जाने पर वन विभाग को जानकारी देना अनिवार्य है। जहां इस सांप का डॉक्युमेंटेशन होता है। इस सांप को मारना और तस्करी करना कानूनन अपराध है। 
            वहीं सर्पों की तस्करी भी होने लगी है। इसका मूल कारण है सर्प का इंटरनेशनल मार्केट में करोड़ों रूपये में खरीदी होना है। मध्य एशिया के देशों में ऐसी मान्यता है कि दोमुंहे सांप का मांस खाने से व्यक्तियों की बीमारी ठीक हो जाती है। सांपों के सेवन से पुरूषों की जवानी मौत होने तक बनी रहती है। वहीं कुछ आदिम कबीलों की ऐसी भी मान्यता है कि इस सांप से सर्वशक्तिमान ईश्वरीय ताकत को भी अपने नियंत्रिण में किया जा सकता है। बेहद लगनशील सरीसृप जीव सर्प जीवन भर लोगों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करते रहता है। जैसे खेतों के चूहे जो फसल को नुक्सान पहुचाते उनको खाकर कहीं ना कहीं फसलों की रक्षा करता है। लेकिन उसका दुर्भाग्य है की लोग उसे देखते ही मारने के लिए उत्तेजित हो जाते है। वहीं बिगड़ते जलवायु के कारण उनके जीवन की नैय्या वैसे भी काल के भँवर में फसती जा रही है। 



लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़