(अभिव्यक्ति)
ऊर्जा के पर्याय कार्य करने की क्षमता से है। लेकिन परिभाषित रूप में सभी चर जैसे धर्म,दर्शन, विज्ञान, भौतिकी एवं विविध क्षेत्रों ने अपने अपने अनुसार इसकी व्याख्या की है। ऊर्जा को नाश्वर, ईश्वर या सामर्थ्य के रूप में बताया है। विज्ञान की भाषा में कहें तो, ऊर्जा वह स्फुरित स्थिति है जो कार्य करने की लिए प्रेरित करता है। सर्वभौमिक रूप में कहें तो किसी अयुक्त निकाय की कुल ऊर्जा समय के साथ नियत रहती है। अर्थात ऊर्जा का न तो निर्माण सम्भव है न ही विनाश। केवल इसका रूप बदला जा सकता है। उदाहरण के लिये गतिज ऊर्जा, स्थितिज ऊर्जा में बदल सकती है। विद्युत ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा में बदल सकती है। यांत्रिक कार्य से उष्मा उत्पन्न हो सकती है। अर्थात ऊर्जा अविनाशी है। उष्मागतिकी का प्रथम नियम भी वास्तव में ऊर्जा संरक्षण के नियम का एक परिवर्तित रूप है। इसे आध्यात्म से जोड़ने का प्रयास करें तो, ऊर्जा को पर्यायवाची आत्मा को लिया जा सकता है। जिसकी व्याख्या में आत्मा को नाश्वर और शरीर को पंचतत्वों के संयोजन का प्रतिरूप माना जाता है।
मानव आदिकाल से जिज्ञासु प्रवृतियों के कारण अाज के आधुनिकतम स्थितियों पर खड़ा है। जो भौतिक जगत् के विभिन्न आयामों को अपने कल्पनाधिन रखकर परिवर्तन करना सीख गया है। वह अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप चीजें उत्पन्न करने, उन्हें संवर्धित करने एवं उपयोगिता के अनुसार साकर करने में बुद्धिमान हो गया है। वह परिवर्तन के अनुरूप सीखने के ललक के कारण, कुछ हद तक परिवर्तन को सरलीकरण कर अपने जीवन के क्षणों में वैभव का अंकन करने लगा है।
ऊर्जा के कई प्रकार हैं जिनमें से कुछ का पूर्वनिर्मित स्थिति में हजारों और लाखों समयावधि निर्धारित है। वहीं कुछ ऐसे भी ऊर्जा स्त्रोंत हैं जिनका उपभोग लम्बें समय तक तलाश किया जा सकता है। मनुष्यों ने अपनी उपयोगिता के अनुसार प्रकृति के निर्धारित नियमों के प्रतिकूल जाकर ऊर्जा को उपभोग का विषय बना दिया है। जिसके फलन वर्तमान में कई प्रकृतिक संसाधनों में परिवर्तन होते रहे हैं। यह परिवर्तन सकरात्मक के बजाय नकारात्मक स्थिति की ओर होने लगा है। जिससे जैव पारिस्थितिकी के कई चक्रों का विलोपन होना प्रारंभ हो गया है। जो भावी समय में मनुष्यों के अस्तित्व के लिए बड़ा संकट बनने वाला है। हमने प्रकृति के गर्भ में अनगिनत प्रहार के रूप में खनिज़ों के तलाश में अतिक्रमण किया है। जिसके परिणामस्वरूप प्रारंभिक फल के रूप में प्रतिकूल वातावरण की स्थिति निर्मित हो चुकी है। यदि इसी गतिशीलता से अंधाधुंध हम प्रकृति के ऊर्जा के स्तरों को परिवर्तन करते रहेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी मानव विहीन निर्जल स्थाल के रूप में निरूपित हो जायेगा।
ऐसा नहीं है की हम केवल पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोंतों पर जैसे कोयला, पेट्रोलियम या तापीय ऊर्जा पर निर्भर हैं। हमारे पास सौर ऊर्जा के रूप में एक कभी ना खत्म होने वाली ऊर्जा स्त्रोंत के रूप में सुर्य सदैव प्रकाशमान होते रहेगा। इसी ऊर्जा शक्ति की या कहें सोलर एनर्जी की खोज 1839 में अलेक्जेंड्रे एडमंड बेकरेल ने की थी। उन्होंने फोटोवोल्टिक इफ़ेक्ट के द्वारा बताया की सूर्य की किरणों से बिजली कैसे पैदा की जाती है। हमारे पास हमारे सोलर सिस्टम में सूर्य के रूप में कभी ना खत्म होने वाली ऊर्जा स्त्रोंत है। जो प्रकृति के किसी भी फलक पर क्षय की भूमिका से इतर अक्षय ऊर्जा के चीर कालीन स्थायी स्त्रोत है।
सौर ऊर्जा ऊर्जा है जो सीधे सूर्य से प्राप्त की जाती है । यहीं धरती पर सभी प्रकार के जीवन (पेड़-पौधे और जीव-जन्तु) का सहारा है। वैसे तो सौर ऊर्जा को विविध प्रकार से प्रयोग किया जाता है़। किन्तु सूर्य की ऊर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने को ही मुख्य रूप से सौर उर्जा के रूप में जाना जाता है। सूर्य की ऊर्जा को दो प्रकार से विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है। पहला प्रकाश-विद्युत सेल की सहायता से उष्मा से गर्म करने के बाद इससे विद्युत जनित्र चलाकर सौर ऊर्जा सबसे अच्छा ऊर्जा है। यह भविष्य में उपयोग करने वाली ऊर्जा है। भारत में ऑन ग्रिड सोलर सिस्टम लगभग 80,000 रुपए में तत्कालीन समय में उपलब्ध है। और ऑफ ग्रिड सोलर सिस्टम 95,000 रुपए में उपलब्ध है। निचे दिये गये सोलर सिस्टम की कीमत में प्रॉडक्ट्स की घरों में सिस्टम का इंस्टालेशन संभव है। जिसकी औसत आयु 25-30 वर्ष है। यदि इसमें हम दैनिक बिजली खपत के औसत से देखें तो वर्तमान दरों के अनुसार 20वर्षों में आने वाले बीजली खपत के मूल्य के बराबर है। जिसका संधारण तो संभव है। एक निजी समाचार एजेंसी टीवी9 के आंकड़ों में जाति के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में 45.3 फीसदी एसटी, 31.5 फीसदी एससी, 22.6 फीसदी ओबीसी और 15.5 अन्य गरीबी रेखा से नीचे हैं. वहीं, शहरी क्षेत्रों में 24.1 फीसदी एसटी, 21.7 फीसदी एससी, 15.4 फीसदी ओबीसी और 8.1 अन्य गरीबी रेखा से नीचे हैं।
ग्रामीण इलाकों में लगभग 50 फीसदी लोग ऐसे है जो अपने दैनिक जरूरतों की पूर्ती के लिए रोज कुआँ खोदने और पानी पीने वाली स्थिति में हैं। जो वर्तमान समय में बीजली के बिल्स भरने में अपनी असमर्थता प्रकट करते हैं। जैसे-तैसे करके बिजली बिल का सब्सिडी के साथ भुगतान संभव हो पाता है। अमर उजाला में प्रकाशित मई 2018 खब़र के मुताबिक़, वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 85 फीसदी आबादी तक बिजली पहुंचाने का काम किया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 2010-2016 के बीच में भारत में हर साल तीन करोड़ उपभोक्तओं तक बिजली पहुंचाई गई है। प्रधानमंत्री के दावे के एक हफ्ते बाद आई इस गैर सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 125 करोड़ की आबादी वाले देश में केवल 15 फीसदी लोगों के पास ही बिजली नहीं है।
बहरहाल सौर ऊर्जा के विस्तार के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के द्वारा कई योजनाओं का संचालन हो रहा है। जिसमें कृषि से लेकर घरेलू उपयोग के लिए सोलर सिस्टम लगाने के लिए सब्सिडी प्रदत्त हैं। सौर सिस्टम के लिए सस्ते विकल्प विकसित करने के लिए कई अनुसंधान जारी है। जो भावी समय में सौर ऊर्जा ग्रीन एनर्जी की ओर हमारे बढ़ते कदम के नव पदानुक्रम को स्वर्णीम स्मृति चिन्ह् प्रदान करेंगे।
लेखक
पुखराज प्राज
इको केयर साईंस क्लब
छत्तीसगढ़
(विज्ञान प्रसार से पंजीकृत संस्था)